केंद्र सरकार द्वारा मिड-डे मील योजना को आधार से जोड़े जाने के बाद तीन राज्यों से भ्रष्टाचार का पता चला है। झारखंड, मणिपुर और आंध्र प्रदेश में सरकारें करीब 4.4 लाख ऐसे छात्रों को खाना खिला रही थीं, जो असल में है ही नहीं। मिड-डे मील योजना के तहत कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों को स्कूल में भोजन उपलब्ध कराया जाता है। इसी महीने की शुरुआत में, मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने मिड-डे मील के लिए छात्रों का आधार नंबर जरूरी कर दिया था। इस कदम का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ, मगर आंकड़ों से पता चला है कि इन तीन राज्यों के कई स्कूलों ने फर्जी छात्रों के नाम पर अतिरिक्त फंड्स मांगे। हिंदुस्तान टाइम्स (एचटी) की रिपोर्ट के अनुसार, आंध्र प्रदेश के कुल 29 लाख आधार लिंक्ड छात्रों में से 2.1 लाख छात्र सिर्फ कागजों पर मौजूद थे। सरकार के संज्ञान में आने के बाद उनकी पात्रता रद्द कर दी गई। एचटी से बातचीत में मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ”हम अभी भी राज्यों से डाटा इकट्ठा कर रहे हैं, लेकिन जितने आंकड़े आए हैं, उससे पता चलता है कि सरकारी स्कूलों में फर्जी पंजीकरण कराए गए थे। जब सभी राज्यों से डाटा आ जाएगा तो ये संख्या और बढ़ सकती है।”
झारखंड में स्कूल रिकॉर्ड्स से 2.2 लाख छात्रों के नाम हटाए गए हैं। राज्य सरकार के स्कूलों में पंजीकृत 48 लाख छात्रों में से 89 प्रतिशत ने आधार नंबर दिए हैं, वहीं मणिपुर में फिले फर्जी छात्रों की संख्या 1,500 बताई गई है। मिड-डे मील योजना के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच खर्च में 60:40 का अनुपात होता है। उत्तरी-पूर्वी राज्यों में यह आंकड़ा 90:10 हो जाता है।
भारत के 11.5 लाख स्कूलों में 13.16 करोड़ छात्र हैं, इनमें से 10.03 करोड़ छात्रों को 2015-16 में भोजन मिला। फर्जी छात्रों को बाहर करने के बाद सरकार का कितना पैसा बचेगा, एचआरडी मंत्रालय अभी इसकी गणना कर रहा है। आधार के नई योजनाओं के जुड़ने से कई राज बाहर आ रहे हैं। केरल के आम शिक्षा विभाग द्वारा 2014 में की गई एक पायलट स्टडी में पता चला कि वहां के स्कूलों में 3,892 शिक्षक ज्यादा थे।
वर्तमान में देश भर के सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक पंजीकृत 11 करोड़ छात्रों में से सिर्फ 30 प्रतिशत के पास ही आधार कार्ड है। केंद्र सरकार की योजना इस साल जून तक सभी छात्रों और शिक्षकों को आधार से जोड़ने की है।