ये सूक्ष्मजीव प्लास्टिक रीसाइक्लिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इन सूक्ष्मजीवों की खोज स्विटजरलैंड के ‘फेडरल इंस्टीट्यूट फार फारेस्ट, स्रो एंड लैंडस्केप रिसर्च’ (डब्ल्यूएसएल) के शोधकर्ताओं ने की है। इस खोज के नतीजे जर्नल ‘फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलाजी’ में प्रकाशित हुए हैं।

आज दुनिया के सामने प्लास्टिक एक विकराल समस्या बन चुका है। वैज्ञानिक इससे छुटकारा पाने के रास्ते ढूंढ रहे हैं। इसी खोज में वैज्ञानिक ऐसे सूक्ष्म जीवों की जांच में लगे हुए हैं जो प्लास्टिक के घटकों को तोड़कर उनको खत्म करने के काबिल हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक पहले भी ऐसे सूक्ष्मजीव पाए जा चुके हैं, जो प्लास्टिक को हजम कर सकते हैं, लेकिन वो आमतौर पर केवल 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान पर ही काम करते हैं।

इसका मतलब है कि उन्हें प्लास्टिक को खत्म करने के लिए बहुत ज्यादा तापमान की आवश्यकता होती है। ऐसे में औद्योगिक रूप से इनका उपयोग काफी महंगा है, क्योंकि इसके लिए बहुत ज्यादा ऊर्जा और धन की आवश्यकता होती है। इनका उपयोग कार्बन न्यूट्रल भी नहीं है।

अब जो नए सूक्ष्मजीव खोजे गए हैं, बेहद कम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस पर भी प्लास्टिक को खत्म करने में सक्षम हैं। इससे पहले भी वैज्ञानिकों ने कोरिया में बीटल लार्वा की एक नई प्रजाति को खोज निकाला था, जो प्लास्टिक का सफाया कर सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, सूक्ष्मजीवों की कुछ प्रजातियां एंजाइम उत्पन्न करती हैं, जो प्रोटीन के बने होते हैं। यह एंजाइम प्लास्टिक को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर हजम करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

एंजाइम एक तरह का प्रोटीन है जो कोशिकाओं के अंदर पाया जाता है। यह एंजाइम शरीर में रसायनिक प्रतिक्रियाओं को तेज करने में मदद करते हैं। यह एंजाइम भोजन को पचाने के साथ विषाक्त पदार्थों को खत्म करने में मददगार होते हैं। शोधकर्ताओं ने ग्रीनलैंड, स्वालबार्ड और स्विटजरलैंड में प्लास्टिक कचरे पर पाए जाने वाले बैक्टीरिया के 19 उपभेदों और फंगी के 15 उपभेदों के नमूनों को एकत्र किया था। इन नमूनों को उन्होंने 15 डिग्री सेल्सियस पर प्रयोगशाला में अंधेरे में सिंगल स्ट्रेन के रूप में तैयार किया। यह जानने की कोशिश कि क्या यह सूक्ष्मजीव अलग-अलग प्रकार के प्लास्टिक को हजम कर सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक के चार प्रकारों- नान-बायोडिग्रेडेबल पालीएथिलीन (पीई), बायोडिग्रेडेबल पालिएस्टर-पालीयूरेथेन (पीयूआर), पालीब्यूटिलीन एडिपेट टेरेफ्थेलेट (पीबीएटी) और पालीलैक्टिक एसिड (पीएलए) के दो व्यावसायिक रूपों पर इनकी जांच की है। पाया गया कि सूक्ष्मजीवों के 19 उपभेद, जिनमें 11 कवक और आठ बैक्टीरिया शामिल थे, वे 15 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पालिएस्टर-पालीयूरेथेन (पीयूआर) को हजम करने में सक्षम थे। हालांकि, 126 दिनों के बाद भी इनमें से कोई भी स्ट्रेन, पालीएथिलीन (पीई) को खत्म करने में सक्षम नहीं था। वहीं 14 फंगी और तीन बैक्टीरिया पीबीएटी और पीएलए के मिश्रित प्लास्टिक को खत्म करने में सक्षम थे।

कभी मानवता के लिए वरदान समझा जाने वाला प्लास्टिक अब दुनिया के लिए अभिशाप बन चुका है। जो न केवल पर्यावरण बल्कि इंसानी स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन चुका है। धरती पर आज शायद ही कोई जगह हो जहां प्लास्टिक के अंश मौजूद न हों। यह कितना खतरनाक है इसका खुलासा एक शोध में किया गया है, जिसके मुताबिक प्लास्टिक में मौजूद केमिकल्स केवल इसी पीढ़ी को ही नहीं बल्कि अगली दो पीढ़ियों को भी प्रभावित कर सकते हैं।

वहीं दिनों-दिन बढ़ते कचरे के बारे में ओईसीडी द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आया है कि अगले 37 वर्षों में यानी 2060 तक प्लास्टिक कचरे की मात्रा तीन गुणा बढ़ जाएगी। अनुमान है कि 2060 तक हर साल 100 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा पैदा होगा, जिसका एक बड़ा हिस्सा करीब 15.3 करोड़ टन बिना शोधन के पर्यावरण में मिल जाएगा।