पंजाब एंड हरियाणा HC ने लिव इन रिलेशनशिप के एक मामले में कहा कि कुछ दिन साथ रहने के दावे से रिश्ता वैध नहीं हो जाता। कोर्ट का कहना था कि लिव इन कानून तौर पर वैधता दी गई है लेकिन उसके लिए कुछ शर्तें भी पूरी करनी होती हैं।
कोर्ट ने 20 साल के युवा और 14 साल की लड़की के मामले में याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उनका दावा ठीक नहीं है। प्रेमी युगल ने अपनी याचिका में कहा था कि वो दोनों लिव इन में हैं। दोनों ने अपने अभिभावकों के खिलाफ याचिका दायर कर सुरक्षा की मांग की थी। जस्टिस मनोज बजाज ने अपने फैसले में कहा कि भारत में लिव इन को मान्यता दी गई है, लेकिन ये बात ध्यान में रखनी होगी कि रिश्ते की अवधि कितनी है और युगल एक दूसरे के प्रति कितने प्रतिबद्ध हैं। इस पर गौर करने के बाद ही इस तरह के रिश्ते को वैवाहिक संबंध माना जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि इस तरह की याचिकाएं बड़ी तादाद में आ रही हैं, जहां प्रेमी युगल लिव इन के नाम पर कोर्ट से मदद की गुहार लगाते हैं। लेकिन इनसे न केवल कोर्ट का समय जाया होता है बल्कि इनकी वजह से दूसरे अहम मामले लंबित रह जाते हैं। मौजूदा मामले पर माता-पिता लड़की के विवाह की तैयारी कर रहे थे, बावजूद इसके कि वो नाबालिग है। लड़की अपने प्रेमी के साथ भागकर चली आई और फैसला लिया कि बालिग होने तक वो लिन इन में रहेंगे। बालिग होने तक वो आपस में शारीरिक संबंध नहीं बनाएंगे।
जस्टिस बजाज ने कहा कि इंदिरा सर्मा बनाम वीकेवी सर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि लिन इन कानून के तहत लाभ हासिल करने के लिए जरूरी है कि ऐसे रिश्तों की अवधि के साथ साझा घर, संसाधन, वित्तीय प्रबंध, घरेलू व्यवस्थाएं, शाररिक संबंध जैसी चीजों पर ध्यान दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में लड़का नाबालिग लड़की का दोस्त होने का दावा कर रहा है। जबकि उसके ऊपर उसे अगवा करने का भी आरोप है। इसलिए उसका ये दावा कि वो लड़की का कानूनी प्रतिनिधि है, गलत है।