मध्य प्रदेश से राज्य सभा सांसद अनिल माधव दवे को पर्यावरण मंत्रालय का जिम्मा दिया गया है। उनसे पहले यह काम प्रकाश जावड़ेकर के पास था लेकिन वे अब मानव संसाधन मंत्री बनाए गए हैं। दवे की शख्सियत काफी अलग है। वे बड़े बांधों के खिलाफ हैं, प्राकृतिक खेती के पक्षधर हैं, त्रिपुरा के सीएम माणिक सरकार जो मार्क्सवादी हैं, कि तारीफ कर चुके हैं और नदियों को बचाने के लिए काम करते हैं। वे आठ किताबें लिख चुके हैं। इनमें से एक का नाम है, ”संभल के रहना घर में छुपे हुए गद्दारों से।” वे पहली बार मंत्री बने हैं। नदियों, पानी, जंगल, प्रदूषण और खेती पर वे संसद के अंदर और बाहर बोलते रहे हैं।
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दवे स्वदेशी के पक्षधर हैं और खेती में देशी तकनीक व सार्वजनिक तौर पर हिंदी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के समर्थक हैं। विदेश जाने पर वे केवल फल खाते हैं। इस बारे में एक बार उन्होंने बताया था, ”वे लोग कई चीजों में गाय का मांस मिला देते हैं और मैं गलती से भी गाय के मांस को हाथ नहीं लगाना चाहता।” एक अन्य भाषण में वे छात्रों से शब्दों के चयन में सावधानी बरतने को कहते हैं, ”शब्दों का गलत चयन गौ हत्या से भी बुरा हो सकता है।” हालांकि दवे नई तकनीक को सीखने के भी समर्थक हैं। वे जर्मनी और इजरायल जैसे देशों के प्रशंसक हैं। वे कहते हैं कि वह अंग्रेजीयत के खिलाफ हैं न कि अंग्रेजी भाषा के।
दवे मूलत: गजरात से हैं लेकिन रहते मध्य प्रदेश में हैं। वे स्वामी विवेकानंद, छत्रपति शिवाजी और चंद्र शेखर आजाद के बड़े प्रशंसक हैं। अपने भाषणों और लेखों में वे इनकी बातों का उल्लेख भी करते हैं। उनके अनुसार शिवाजी ने 30 साल तक सुशासन दिया। वे नर्मदा बचाओ अभियान के सदस्य भी हैं और इसलिए बड़े बांध बनाए जाने के खिलाफ हैं। ससंद में अपने भाषण के दौरान उन्होंने कहा था, ” 20 साल पुराने बांधों की सामाजिक और आर्थिक ऑडिट किए जानी चाहिए कि इनसे हमें क्या फायदा और क्या नुकसान हुआ है।”
नए पर्यावरण मंत्री अपने भाषणों में राजनीतिक मामलों को न के बराबर उठाते हैं। भारत की समस्याओं के लिए वे 65 साल के बुरे शासन को जिम्मेदार ठहराते हैं लेकिन कांग्रेस का नाम नहीं लेते। वे त्रिपुरा के सीएम माणिक सरकार की भी तारीफ कर चुके हैं। उन्होंने अपने भाषण में कहा था, ”वह बहुत साधारण आदमी हैं। वह अपने कपड़े खुद धोते हैं। उनकी पत्नी अब भी ऑटो में सफर करती हैं। वे सुशासन के उदाहरण हैं।” दवे पद के पीछे दौड़ने वाले नेताओं को भी लताड़ लगाते हैं। उन्होंने एक बार कहा था, ”जब एक व्यक्ति पैदा होता है तो उसका भाग्य मस्तक पर लिखा होता है। जो वहां लिखा है उसे मिटाया नहीं जा सकता लेकिन कोई भी उसे नए सिरे से नहीं लिख सकता।”
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हालांकि उनकी कई बातें वर्तमान सरकार की नीतियों से उलट है। जैसे कि सरकार की गंगा सफाई योजना और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट। 2013 में उन्होंने संसद में सीवेज प्लांट को बड़ा धोखा बताया था। गंगा सफाई पर उन्होंने संयम रखने को कहा था। दवे ने कहा था कि इस नदी को साफ करने के लिए दो पीढि़यां लगेंगी। प्रकृति में अचानक से कुछ नहीं होता। इसे समय देना होगा। आवेग में लिए गए फैसले नुकसान पहुंचा सकते हैं।