छत्तीसगढ़ में अजित जोगी की पार्टी से गठबंधन और मध्य प्रदेश विधान सभा चुनावों में 22 उम्मीदवारों के नाम का एलान कर बसपा सुप्रीमो मायावती ने जहां कांग्रेस पर दबाव बढ़ा दिया है, वहीं संभावित विपक्षी महागठबंधन नेताओं की भी धड़कनें बढ़ा दी हैं। अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि तीनों राज्यों के विधान सभा चुनाव में गठबंधन की संभावना नहीं रह गई है क्योंकि बसपा ने यह भी एलान कर दिया है कि वो एमपी और राजस्थान में सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। हालांकि, बसपा और कांग्रेस के नेता अभी भी कह रहे हैं कि बातचीत जारी है। 2013 के चुनावों में मध्य प्रदेश में कुल 34 सीटें ऐसी थीं जहां कांग्रेस और बसपा के वोट बंटवारे की वजह से बीजेपी की जीत हुई थी। दरअसल, दोनों दल एक-दूसरे पर दबाव की राजनीति कर रहे हैं। बसपा को लग रहा है कि अगर विधान सभा चुनावों में बीजेपी की जीत होती है तो लोकसभा चुनावों में संभावित महागठबंधन में उसे सम्मानजनक सीटें मिल सकती हैं और कांग्रेस को लग रहा है कि अहर अपने बूते उसने तीनों राज्यों में बेहतर प्रदर्शन कर लिया तो लोकसभा चुनावों में उस पर क्षेत्रीय पार्टियां कम दबाव बना पाएंगी क्योंकि इन तीनों राज्यों से लोकसभा की कुल 65 सीटें आती हैं।
सीटों का बंटवारा: 10 सितंबर को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नवनियुक्त कोषाध्यक्ष अहमद पटेल के साथ बसपा महासचिव सतीशचंद्र मिश्रा ने नई दिल्ली में बैठक की और संभावित महागठबंधन की रूपरेखा पर चर्चा की थी। बैठक में बसपा ने उत्तर प्रदेश को छोड़कर अन्य छह राज्यों में 39 संसदीय सीटों की मांग की। 10 सितंबर को ही बसपा ने पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ बुलाए गए भारत बंद से खुद को अलग कर लिया था और पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के लिए बीजेपी के साथ- साथ कांग्रेस को भी जिम्मेदार ठहराया था।
30 पर अड़ी कांग्रेस: चार दिन पहले से ही मायावती बार-बार बोल रही थीं कि सम्मानजनक सीटें नहीं मिलने पर वो गठबंधन नहीं करेंगी और अकेले हाथी दौड़ाना पसंद करेंगी। दरअसल, मध्य प्रदेश विधान सभा के लिए बसपा ने 50 सीटें कांग्रेस से मांगी थी लेकिन कांग्रेस 30 से ज्यादा सीट नहीं देने पर अड़ी थी। राज्य में 230 विधान सभा सीटें हैं। पिछले चुनावों में बसपा ने चार सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस ने 58 सीटें जीती थीं। बीजेपी को 165 सीटें मिली थीं। सर्वे के मुताबिक अगर दोनों दलों का गठबंधन होता तो बीजेपी को लगभग चालीस सीटों पर नुकसान उठाना पड़ सकता था। तब कांग्रेस-बसपा गठबंधन और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला हो सका था। हालांकि, कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि अभी भी गठबंधन के लिए बातचीत जारी है।
चंद्रशेखर बने चुनौती: मायावती के एकला चलने के पीछे भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर उर्फ रावण भी एक बड़ा कारण हैं। चंद्रशेखर की रिहाई पर मायावती की भी भौहें तनी हैं। उन्हें लगता है कि चंद्रशेखर के पीछे कांग्रेस का हाथ है। मायावती का शक और तब मजबूत हुआ जब चंद्रशेखर की रिहाई के बाद तुरंत कांग्रेस नेता इमरान मसूद उससे मिलने पहुंचे। आर्मी बसपा को समर्थन नहीं दे रहा, इससे मायावती के दलित वोट बैंक में सेंध के आसार हैं जो कांग्रेस की तरफ जा सकते हैं।
महागठबंधन पर ग्रहण?: पूर्व बीजेपी नेता और महागठबंधन के हिमायती रहे यशवंत सिन्हा ने आगामी विधान सभा चुनावों में गठबंधन नहीं होने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है और कहा है कि इसका असर लोकसभा चुनावों पर भी पड़ सकता है। मायावती की इस चाल से विपक्षी कुनबें में खलबली है। सचमुच अगर लोकसभा चुनावों में भी महागठबंधन नहीं बना तो बीजेपी के लिए जीत की राह आसान हो सकती है।