बीते कुछ समय में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर भारत में भूजल के स्तर में सर्वाधिक कमी आई है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी)-गांधीनगर द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। अध्ययन के मुताबिक, देश में भूजल के स्तर में जितनी कमी आई है, उसमें 95 फीसद कमी उत्तर भारत से है।
अध्ययन में पाया गया है कि भविष्य में बारिश में वृद्धि पहले से ही समाप्त हो चुके संसाधनों के पूरी तरह से पुनर्जीवन करने के लिए अपर्याप्त होगी। आइआइटी-गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि भारत में भूजल की कमी तब तक जारी रहेगी, जब तक भूजल के अत्यधिक दोहन को सीमित नहीं किया जाता है, जिससे भविष्य में जल स्थिरता के मुद्दे सामने आएंगे। शोधकर्ताओं ने कहा कि गैर-नवीकरणीय (अस्थिर) भूजल दोहन का भूजल भंडारण पर मुख्य रूप से प्रभाव पड़ता है, जिससे जल स्तर घट जाता है।
आइआइटी-गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग और पृथ्वी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर विमल मिश्रा ने कहा, ‘भूजल के गहरे स्तर के अत्यधिक दोहन को रोकने के लिए नलकूप की गहराई को सीमित करना और निकासी लागत को शामिल करना फायदेमंद है।’प्रोफेसर विमल मिश्रा ने कहा, ‘वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित करने से उत्तर भारत में भूजल भंडारण को लाभ मिल सकता है।’ यह अध्ययन हाल ही में वन अर्थ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, इसमें भूजल भंडारण परिवर्तनशीलता का अध्ययन करने के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्लूबी) द्वारा भूजल स्तर और उपग्रह अवलोकन से प्राप्त डेटा का विश्लेषण किया गया।
केंद्रीय भूजल बोर्ड व जल आयोग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण सघन कृषि क्षेत्र वाले उत्तरी राज्यों पंजाब- हरियाणा मे पिछले 50 वर्षों से लगातार धान- गेहूं फसल चक्र अपनाने के कारण भूजल स्तर आधा मीटर प्रतिवर्ष गिरने से इन राज्यों के आधे से ज्यादा ब्लाक गंभीर भूजल संकट में आ चुके हैं।
इसे रोकने के लिए, इन राज्यों ने वर्ष 2009 में कानून बनाए, जिसमें 15 जून से पहले धान फसल की रोपाई पर प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन इन सब सरकारी प्रयासों के बावजूद अभी तक जल संरक्षण खासतौर पर भूजल संरक्षण के प्रयास निरर्थक साबित हुए हैं।