दिसंबर का महीना था, 12 साल पहले 2012 में एक लड़की की अस्मिता को ऐसी चोट दी गई कि पूरा देश उसके समर्थन में खड़ा हो गया, आक्रोश की ऐसी अलख जगी कि तब की कांग्रेस सरकार औंधे मुंह गिरी। अब मणिपुर में इस साल 4 मई को दिल को दहला देने वाली घटना होती है। दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर सड़क पर घुमाया जाता है, उनके साथ छेड़छाड़ होती है। मदद की गुहार लगाई जाती है, लेकिन बेशर्म आरोपी वीडियो बनाते हैं और फिर उसे वायरल कर देते हैं।
वो सवाल जो मोदी सरकार के लिए बन सकते काल
अब 2012 में महिला सुरक्षा को लेकर यूपीए की सरकार पूरी तरह फेल मानी गई थी। सेम सवाल और ज्यादा गंभीरता के साथ वर्तमान की एनडीए यानी कि मोदी सरकार से पूछा जाना चाहिए। दो महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है, मणिपुर अभी भी जल रहा है, 100 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी, महिलाओं की अस्मिता के साथ खिलवाड़ हो रहा है, लेकिन सरकार चुप है। खानापूर्ति करने के लिए बयान जारी किए जा रहे हैं। लेकिन जमीन पर कोई परिवर्तन नहीं, कोई बदलाव नहीं। यानी कि क्या इतिहास खुद को दोहरा रहा है? क्या निर्भया कांड की तरह ये मणिपुर मामला बीजेपी की सत्ता को हिला देगा? क्या लोगों का आक्रोश एक बार फिर एक सरकार को औंधे मुंह गिराने का काम करेगा? इन सवालों के जवाब इतिहास के पन्नों में छिपे हैं क्योंकि इन सवालों के जवाब जानने के लिए 11 साल पीछे जाना जरूरी है, उस आक्रोश को समझना जरूरी है जिसने देश में महिला सुरक्षा को लेकर नए सिरे से बहस शुरू कर दी थी।
निर्भया के साथ क्या हुआ था?
16 दिसंबर 2012 को निर्भया (बदला हुआ नाम) अपने दोस्त के साथ फिल्म देखने गई थी। फिल्म खत्म होने के बाद द्वारका जाना था। लेकिन सड़क पर ट्रांसपोर्टेशन का ऐसा हाल रहा कि निर्भया को घर तक के लिए कोई बस नहीं मिली। फिर एक ऑटो में बैठ मुनीरका बस स्टैंड तक आया गया। सोचा गया कि वहां से घर के लिए सीधा ऑटो मिल जाएगा। लेकिन वो ऐसी रात थी कि निर्भया को कोई मदद नहीं मिली। जब काफी देर तक मुनीरका बस स्टैंड पर कोई ऑटो नहीं आया तो दोस्त को एक प्राइवेट बस दिख गई। बस के बाहर खड़ा एक युवक ‘द्वारका-द्वारका’ चिल्ला रहा था।
उस समय दोनों को ये नहीं पता था कि बस में मौजूद लोग कोई सवारी नहीं बल्कि नशे में धुत घटिया मानसिकता वाले वो राक्षस थे जिनके दिमाग में हैवानियत सवार थी। उस समय में बस में निर्भया और उसके दोस्त के अलावा 6 और लोग थे। वो सभी 6 जने एक दूसरे को जानते थे, साजिश के तहत कुछ बड़ा करने वाले थे। ऐसा हुआ भी जब रात के करीब साढ़े 9 बजे बस महिपालपुर के पास पहुंची। छोटी सी बात पर नोकझोंक शुरू हुई और फिर मौके के फायदा उठाकर पहले निर्भया और उसके दोस्त को जमकर पीटा गया। फिर एक-एक कर 6 आरोपियों ने निर्भया का बलात्कार किया। हैवानियत की सारी हदें पार करते हुए लोहे की रॉड को उसके शरीर में डाल दिया।
राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था पर उठे थे सवाल
ये आरोपी सोच रहे थे कि निर्भया मर गई, उसके दोस्त ने दम तोड़ दिया, ऐसे में बिना सोचे समझे देर रात बीच सड़क पर दोनों को फेंक दिया गया। करीब एक घंटे चली उस हैवानियत के वक्त वो सफेद बस दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में चक्कर काटती रही। लेकिन पुलिस सुरक्षा ऐसी कि किसी को कोई भनक नहीं लगी।
आनन-फानन में कुछ लोगों की नजर निर्भया और उसके दोस्त पर पड़ी और दोनों को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती करवाया गया। डॉक्टरों को बोलना पड़ गया- इतना भयावह अपराध कभी नहीं देखा। निर्भया की आंतें तक शरीर से बाहर निकाल दी गई थीं। हालत ऐसी थी कि निर्भया का बचना मुश्किल था। सवालों में मनमोहन सरकार थी, ऐसे में अचानक से फैसला लिया गया कि निर्भया को सिंगापुर शिफ्ट किया जाएगा। एक दिन तक सिंगापुर के अस्पताल में इलाज भी चला, लेकिन फिर निर्भया हमेशा के लिए सो गई। भारत की बेटी दुनिया को अलविदा कह चुकी थी।
लोगों का सब्र का बांध टूटा और यूपीए की उल्टी गिनती
निर्भया की जब तक सांसें चल रही थीं, लोग भी अपने सब्र के बांध को रोककर चल रहे थे, लेकिन उसकी मौत ने उस बांध को ऐसा तोड़ा कि क्या देश की राजधानी दिल्ली, क्या बेंगलुरु, क्या हैदराबाद, हर जगह से विरोध की आवाज उठी, सरकार के खिलाफ आक्रोश फूटा और महिला सुरक्षा को लेकर नई बहस शुरू हो गई। सड़क पर नारे लगाए गए- लड़की के कपड़े नहीं, अपनी सोच बदलिए। बलात्कारियों को फांसी देने की मांग भी उठती रही।
महिला सुरक्षा के कानूनों में बदलाव, जमीन पर कुछ नहीं बदला
विरोध को रोकने के लिए जो काम हर प्रजा तंत्र करता है, वो यूपीए ने भी तब किया। इंडिया गेट पर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर आंसू गैसे के गोले दागे गए, वॉटर टैंक से सभी को तितर-बितर करने की कोशिश हुई। लेकिन निर्भया के लिए इंसाफ की मांग ने ऐसी अलख जगा रखी थी, सरकार का कोई हथकंडा काम नहीं आया और लगातार हुए विरोध प्रदर्शन ने ही महिला सुरक्षा को लेकर कई कानून बदलने का काम किया। सबसे बड़ा बदलाव तो ये हुआ कि 16 से 18 साल की उम्र वाले अपराधियों को भी वयस्क अपराधियों के तौर पर देखा जाएगा। इसके अलावा बलात्कार पर मिलने वाली सात साल की सजा को भी उम्र कैद में तब्दील करवा दिया गया।
11 साल बाद कांग्रेस वाले सवाल बीजेपी पर कॉपी
अब सरकार ने आनन-फानन में कई कानून बदले, लेकिन लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। ये नहीं भूलना चाहिए कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने महिला सुरक्षा का मुद्दा भी जोर-शोर से उठाया था। नेरेटिव सेट हो चुका था कि यूपीए महिला सुरक्षा में विफल रही है। लेकिन अब उस घटना के 11 साल बाद मणिपुर में जो कुछ हुआ है, उसने बीजेपी को भी उसी कठघरे में खड़ा कर दिया है। सिर्फ किरदार बदल गए हैं, लेकिन मुद्दा वहीं है, विवाद वहीं है और लोगों का गुस्सा फिर सड़कों पर आता दिख रहा है। इस समय कांग्रेस सहित दूसरी विपक्षी पार्टियां मोदी सरकार से जवाब मांग रही हैं, सीएम के इस्तीफे की भी डिमांड रख दी गई है। लेकिन जैसे उस जमाने में कांग्रेस ने कोई एक्शन नहीं लिया था, बीजेपी भी चुप चाप मामले के शांत होने का इंतजार कर रही है।
इस मामले में मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी तो हुई है, लेकिन 50 दिनों बाद भी कई सवालों के जवाब मिलना बाकी है। सबसे बड़ा सवात ये कि सेना मौजूद है, पुलिस तैनात है, फिर भी एक छोटे राज्य में हिंसा को नहीं रोका जा रहा। दिल्ली में दंगे भड़के थे, कई लोगों ने जान भी गंवाई, लेकिन पुलिस की सक्रियता ऐसी कि कुछ दिनों में हालात सामान्य होते चले गए। लेकिन पूर्वोत्तर के इस राज्य में ये कैसी कानून व्यवस्था है कि सरकार के तमाम दावे फेल हो रहे हैं, गृह मंत्री का दौरा सिर्फ औपचारिकता लगता है और जमीन पर हिंसा का दौर जारी रहता है।
चुनावी मौसम का सबसे बड़ा झटका, लोगों का गुस्सा पड़ेगा भारी?
चुनावी मौसम में कोई भी पार्टी ऐसी स्थिति में खुद को नहीं देखना चाहती है। माना पूर्वोत्तर का राज्य है, हिंदी पट्टी वाले ज्यादा धान नहीं देते। लेकिन महिलाओं के इस एक वायरल वीडियो ने सभी की आंख से वो चुप्पी वाली पट्टी हटा दी है। आलम ये है कि 9 सालों में शायद पहली बार लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इस्तीफा मांग रहे हैं, ट्विटर पर इस हैशटैग को ट्रेंड भी करवाया जा रहा है। यानी कि बीजेपी के खिलाफ इस एक घटना ने माहौल बनाना तो शुरू कर दिया है, किस तरह से डैमेज कंट्रोल किया जाता है, इस पर सभी की नजर रहेगी।