मणिपुर में जो हिंसा हो रही है, उसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। आखिर कैसे इतने महीनों से लगातार भारत का एक राज्य जल रहा है? आखिर क्यों तमाम आश्वासन के बावजूद भी हिंसा पर रोक नहीं लग पाई है? सवाल कई हैं, आरोप कई हैं, लेकिन इस पूरे विवाद की एक क्रोनोलॉजी है जो कोई कुछ महीने पुरानी नहीं, बल्कि सालों पुरानी है। मणिपुर में जो भी कुछ हो रहा है, उसकी नींव कुछ घटनाओं ने पहले ही डाल दी थी।
संकेत नंबर 1
24 मई, 2022 को Mark T Haokip की गिरफ्तारी हुई थी। वे उस Churachandpur से सामाजिक कार्यकर्ता थे जहां पर इस समय सबसे ज्यादा बवाल देखने को मिल रहा है। अब Mark T Haokip ने अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट में मैतेई समुदाय के दो पहाड़ Mt Koubru और Mt Thangjing का जिक्र किया, जोर देकर कह दिया कि इन पर कुकी समुदाय का हक होना चाहिए। अब विवाद इस बात को लेकर रहा कि ये दोनों ही पहाड़ मैतेई समुदाय के लिए आस्था का प्रतीक हैं। ऐसे में अधिकारों की लड़ाई शुरू हुई और देखते ही देखते Mark T Haokip की गिरफ्तारी हो गई।
उस एक गिरफ्तारी ने बवाल की पहली चिंगारी सुलगा दी थी। Churachandpur में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन देखने को मिला, सीएम एन बीरेन सिंह ने क्योंकि Mark T Haokip को म्यांमार का बता दिया, ऐसे में उस पर भी आपत्ति दर्ज करवाई गई। उस बवाल के बाद पिछले साल 28 मई को समाजिक कार्यकर्ता को जमानत दे दी गई। अब इस एक गिरफ्तारी और उस पर होई बयानबाजी ने कुकी और मैतेई समुदाय के बीच नफरत की दीवार को मजबूत कर दिया था।
संकेत नंबर 2
इसी वजह से जब पिछले साल मैतेई समुदाय के कुछ लोग Thangjing हिल्स पर जा रहे थे, उन्हें कुकी समुदाय ने जाने से रोक दिया। उस समय तब भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं को हस्तक्षेप करना पड़ा और तब जाकर मैतेई समुदाय के लोगों को एंट्री मिली। लेकिन इस घटना ने भी बता दिया था कि दो समुदायों के बीच तल्खी बढ़ रही थी। अब जिस समय ये तल्खी बढ़ रही थी, बीरेन सरकार एक और विवाद को जन्म देने की तैयारी कर रही थी। पिछले साल अगस्त में एक नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया।
संकेत नंबर 3
कहा गया कि Churachandpur और Noney इलाके में जो 38 गांव मौजूद थे, वो अवैध थे, जंगल वाले इलाके में बना दिए गए थे। लेकिन जिस समय ये नोटिफिकेशन जारी हुई, कुकी समुदाय वाले भड़क गए। जोर देकर कहा गया कि बिना बातचीत के ही ऐसा फैसला ले लिया गया। अब पिछले साल तो सिर्फ नोटिफिकेशन आया था, इस साल मार्च में उस पर अमल करना शुरू किया गया। लेकिन सरकार के उस प्रयास ने भी नाराजगी बढ़ा दी और हिंसा की वो भी एक बड़ी जड़ बनी। इसके अलावा तीन साल पहले मैतेई लीपन और अरमबई तेंगोल नाम के दो संगठन बने। दोनों ही मैतेई समुदाय से जुड़े रहे, लेकिन दूसरे वाले ने हिंसा का रास्ता चुना और उस पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि कुकी समुदाय पर उसी की तरफ से वार हो रहे हैं।
अब ये सारे वो संकेत थे जिन्हें अगर समय रहते पकड़ लिया जाता तो शायद मणिपुर में इतना बवाल नहीं मचता। अगर पहले कार्रवाई हो जाती, पहले उन गतिविधियों से बच लिया जाता तो 150 से ज्यादा लोग अपनी जान नहीं गंवाते।