मणिपुर में हिंसा का दौर फिर लौट आया है। पिछले एक साल से पूर्वोत्तर के इस इलाके में संघर्ष तो जारी था ही, लेकिन अब फिर हालात बेकाबू होते दिख रहे हैं। केंद्र सरकार का दोबारा AFSPA लगाना भी बिगड़ते हुए हालात की तस्दीक करता है। मणिपुर के कई जिले इस समय कर्फ्यू की चपेट में हैं, इंटरनेट बंद कर दिया गया है और हर सड़क पर, हर चौराहे पर सिर्फ तनाव की स्थिति देखने को मिल रही है।

इस बार मणिपुर हिंसा का केंद्र जिरीबाम जिला बना हुआ है। पिछले कई महीनों से इस इलाके में कोई हिंसा देखने को नहीं मिल रही थी, अगर बाकी मणिपुर जल भी रहा था, असम से सटा यह जिला सुरक्षित था। इसे जानकार मणिपुर के एंट्री प्वाइंट के रूप में भी जानते हैं, मैतेई समुदाय के लिए व्यापार के लिहाज से इसे लाइफलाइन तक कहा जाता है, कई जरूरी सामान का आना-जाना इसी जिले की सड़क से होता है।

मणिपुर की हाल की घटनाओं की टाइमलाइन

लेकिन अब मणिपुर के इसी इलाके में सबसे ज्यादा हिंसा देखने को मिल रही है। असल में पिछले महीने तक तो मणिपुर में हिंसा की छिटपुर खबरें ही सामने आ रही थीं, लेकिन 11 नवंबर को सुरक्षाबलों के साथ हथियारबंद संदिग्ध चरमपंथियों के साथ एक कथित मुठभेड़ हुई, उसमें 10 लोगों की जान चली गई। उसके बाद ही मणिपुर का मिजाज फिर बिगड़ गया और कई इलाकों में तकरार की स्थिति पैदा हो गई। बड़ी बात यह रही कि इस 11 नवंबर वाली घटना के बाद ही हिंसा की छींटे जिरीबाम जिले तक आ पहुंची।

इस इलाके में कर्फ्यू लागू-इंटरनेट बंद

अब समझने वाली बात यह है कि इस साल 15 अक्तूबर को केंद्र सरकार ने मणिपुर में जारी हिंसा को रोकने के लिए एक बड़ी पहल की थी। उनकी तरफ से दोनों कुकी और मैतेई समुदाय के विधायक-मंत्रियों को दिल्ली बुलाया गया था। उस बैठक में संकल्प दिलवाया गया था कि दोनों ही समुदाय अब एक दूसरे पर गोली नहीं चलाएंगे। लेकिन हैरानी की बात यह रही कि दिल्ली की उस बैठक के मात्र तीन दिन बाद हिंसा की एक बड़ी घटना सामने आ गई। 18 अक्तूबर को जिरीबाम जिले के कालीनगर में कुछ संदिग्ध चरमपंथियों ने कुकी समुदाय के एक स्कूल को आग के हवाले कर दिया। फिर इसी जिले में अगले दिन फायरिंग तक हो गई। इसके बाद 21 अक्तूबर को मणिपुर का जिरीबम पूरी तरह झुलस पड़ा और ऐसी खबरें आईं कि मैतेई समुदाय के कई घर जला दिए गए।

यानी कि कुकी और मैतेई समुदाय के बीच में एक सीधी जंग सी छिड़ गई, एक दूसरे को नुकसान पहुंचाने की कसमें खाई गईं। इसके बाद 7 नवंबर को कुछ चरमपंथियों ने एक जिरीबाम में ही एक कुकी कबीले की महिला को गोली मार दी और उसके मकान को भी कथित तौर से जला दिया गया। इन घटनाओं के बाद ही 11 नवंबर को वो बड़ी कथित मुठभेड़ हुई जिसमें 10 चरमपंथियों की मौत हो गई। उसके बाद से ही पूरे इलाके में हिंसा फैल गई और हालात बेकाबू जैसे बन गए।

जिरीबाम जिले की हिंसा क्यों ज्यादा चिंताजनक?

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिरीबाम जिले में कई युवकों ने अपने-अपने समुदायों की रक्षा करने के लिए प्राइवेट आर्मी बना ली हैं, अब यह आर्मियां ही सुरक्षाबलों से टक्कर ले रही हैं, कई मौकों पर दूसरे लोगों को नुकसान भी पहुंचा रही हैं। इनके पास क्योंकि सारे हथियार भी मौजूद हैं, इस वजह से यह ज्यादा खतरनाक बन गए हैं। इसके ऊपर जिरीबाम के लोकल नेता बताते हैं कि इस जिले में हिंसा का एक कारण यहां की सियासत भी है। इस जिले में हर पार्टी अपना विस्तार करना चाहती है।

बीजेपी एक बार भी यहां से नहीं जीत पाई है, ऐसे में उसकी पूरी कोशिश है कि उसका संगठन यहां जरूर मजबूत हो जाए। इसी तरह दूसरी पार्टियां भी इसी काम में लगी हैं, ऐसे में वचर्स्व की इस लड़ाई में हिंसा का दौर भी देखने को मिल रहा है।

मणिपुर का इतिहास, हिंसा की क्या जड़?

अब इस बार की हिंसा को तभी ठीक तरह से समझा जा सकता है, जब मणिपुर के बैकग्राउंड को भी समझ लिया जाए। असल में मणिपुर में तीन समुदाय सक्रिय हैं- इसमें दो पहाड़ों पर बसे हैं तो एक घाटी में रहता है। मैतेई हिंदू समुदाय है और 53 फीसदी के करीब है जो घाटी में रहता है। वहीं दो और समुदाय हैं- नागा और कुकी, ये दोनों ही आदिवासी समाज से आते हैं और पहाड़ों में बसे हुए हैं। अब मणिपुर का एक कानून है, जो कहता है कि मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में रह सकते हैं और उन्हें पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होगा। ये समुदाय चाहता जरूर है कि इसे अनुसूचित जाति का दर्जा मिले, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है।