मणिपुर, 3 मई को शुरू हुई हिंसा के बाद देश का यह राज्य अभी भी हालात के बेहतर होने का इंतज़ार कर रहा है। इस जातीय हिंसा ने बड़ी तादाद में लोगों को बेघर कर दिया है। वहीं अपनी जिंदगी को बचाने के संघर्ष में पढ़े-लिखे युवा भी बंदूक उठाने को मजबूर हैं।
मणिपुर में तनाव लगातार बढ़ रहा है और ज़मीनी हालात ख़ासकर उन इलाकों बेहद खारब है जहां मैतेई समुदाय का प्रभुत्व है और यह कुकी आबादी के लिए एक आम रास्ता भी है। सबकुछ बंद है और लोग इन हालात के साथ जीने पर मजबूर है।
गृहमंत्री अमित शाह ने 24 जून को दोपहर 3 बजे मणिपुर के हालात पर चर्चा करने के लिए तमाम राजनीतिक दलों को चर्चा करने लिए बुलाया है। जबकि विपक्ष प्रदेश के हालात पर पीएम मोदी की चुप्पी को लेकर लगातार सवाल उठा रहा है।
बंदूक उठाने पर मजबूर हैं आम लोग
हालात इतने बदतर हैं कि आम लोगों को बंदूक उठाने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की ओर से शाया की गई रिपोर्ट में दो ऐसे ही युवाओं का ज़िक्र है जिन्हें ना चाहते हुए भी बंदूक उठानी पड़ी है।
इंडियन एक्सप्रेस को रिपोर्टिंग के दौरान दो नौजवान मिले – एक 25 वर्षीय मैतेई हार्डवेयर दुकान का मालिक और दूसरा 23 वर्षीय कुकी विज्ञान विषय का शिक्षक – जिन्होंने पिछले कुछ सप्ताह अपने गांवों में खोदी गई खाइयों में बिताए हैं और किसी भी तरह के हालात सामना करने के लिए कई रात जागे हैं।
क्या है कहानी?
दीमापुर-चुराचांदपुर राजमार्ग के पूर्व में तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरे एक मैतेई गांव में 25 वर्षीय एक नौजवान को याद है कि कैसे रात भर पहाड़ियों से गोलियों की आवाजें आती रहती थीं। रेत की बोरियों और टिन की छत से बने एक अस्थायी बंकर में उन्होंने एक सिंगल बैरल बंदूक रखकर रातें बिताई हैं। वह कहते हैं, “मैं इस एक बैरल से इतनी भारी गोलीबारी का मुकाबला नहीं कर सकता। यह ठीक से फायर भी नहीं करता है. मेरा काम गतिविधियों पर नज़र रखना और वीडीएफ और पुलिस को सूचित करना है, पुलिस ही इस गोलीबारी पर जवाबी कार्रवाई करती है।”
यह 25 साल की उम्र का नौजवान बिष्णुपुर जिले के एक कॉलेज से ग्रेजुएट है। लेकिन फिलहाल वह गांव के दक्षिण में बंकर में हर दिन 12 घंटे से अधिक समय बिताता है, जहां उसके साथ पांच और लोग होते हैं।
कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाला एक और नौजवान जिसकी भी उम्र सिर्फ 25 साल ही है। इस हिंसा की आग की मार झेल रहा है। वह चुराचांदपुर में हार्डवेयर की दुकान चलाता था। हालांकि उनकी दुकान को बचा लिया गया है, क्योंकि उनका कहना है कि संपत्ति कुकी जमींदार की है। 3 मई को जब हिंसा भड़की तो उनके कुकी दोस्तों ने उन्हें चुराचांदपुर न जाने के लिए कहा था। उसका कहना है, ‘मैंने कभी ऐसा होने की उम्मीद नहीं की थी. मुझे बहुत बुरा लगा जब हमारे मंदिर को भी अपवित्र किया गया। हालाँकि समुदायों के बीच हमेशा कुछ तनाव रहता था, लेकिन ऐसी चीज़ पहले कभी नहीं हुई थी,’
25-वर्षीय इस नौजवान ने बंकर में कई दिन बिताए हैं लेकिन फिर भी गोलियों की आवाज से चौंक जाता है। उसका कहना है, ”मेरे दोस्त अक्सर इसके लिए मेरा मज़ाक उड़ाते हैं…उन्हें विश्वास नहीं है कि स्थिति जल्द ही आसान होने वाली है, और वह उस जीवन के लिए तरस रहे हैं जो उन्होंने पहले जिया है वह कहते हैं, ”अगर सब कुछ सामान्य हो गया तो मैं चुराचांदपुर वापस जाना चाहूंगा और अपनी दुकान पर काम फिर से शुरू करना चाहूंगा।”
मेरे स्कूल के दोस्त मैतेई थे…
शिलांग के एक कॉलेज से स्नातक एक 23 वर्षीय नौजवान जिसके पिता किसान हैं, कहता है, “मैं विरोध रैली में शामिल नहीं हुआ था लेकिन मैंने सुना कि किसी ने उस दोपहर कुकी युद्ध स्मारक के गेट में आग लगा दी थी। तभी हमने एक गांव में फायरिंग की आवाज सुनी. हम सब डरे हुए थे. जैसे ही आसपास के गांवों से आगजनी की खबर मिली, महिलाएं और बच्चे गांव छोड़कर चले गए, जबकि जवान वहीं रुक गए। उस रात, हमारे पास केवल चार सिंगल-बैरल बंदूकें थीं। हम पूरी रात खेत में मिट्टी के मेड़ों के पीछे बैठे रहे,’।
3 मई से पहले यही नौजवान पास की झील पर अपने मैतेई दोस्तों के साथ समय बिताता था। वह कहता है, ‘स्कूल के मेरे ज़्यादातर दोस्त मैतेई हैं। कुछ समय पहले तक मैं उनके संपर्क में रहता था. लेकिन 3 मई के बाद से हमने बात नहीं की है. इस स्थिति में, जहां पड़ोसियों ने एक-दूसरे के घर जला दिए हैं, दोस्तों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है,।