Parliament Budget Session: अडानी समूह विवाद (Adani Row) पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की जांच की मांग करते हुए संसद में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Congress president Mallikarjun Kharge ) ने लुई वीटॉन का बेशकीमती स्कार्फ (The Louis Vuitton scarf) पहना था। राज्यसभा में बुधवार को उस पर विवाद खड़ा हो गया था। सत्ता पक्ष भाजपा ने कहा कि स्कार्फ की कीमत की जांच की जानी चाहिए। इसके बाद संसद में सांसदों के पहनावे को भी राजनीतिक माने जाने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है।
TMC MP महुआ, मिमी और नुसरत भी बन चुकी हैं निशाना
पिछले साल अगस्त में, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा (TMC MP Mahua Moitra)को लोकसभा में मूल्य वृद्धि पर चर्चा के दौरान अपने लुई वीटॉन बैग (The Louis Vuitton bag) को कथित तौर पर “छिपाने” की कोशिश करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा था। अभिनेत्री और पश्चिम बंगाल से टीएमसी सांसद मिमी चक्रवर्ती और नुसरत जहान भी साल 2019 में अपने पहले संसद सत्र के लिए पहने गए आउटफिट के लिए सोशल मीडिया पर जमकर आलोचना की गई थी।
गुजरात विधानसभा से टी-शर्ट के चलते निकाले गए विधायक
इससे पहले साल 2021 में गुजरात में सोमनाथ निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस विधायक (Congress MLA) विमल चुडास्मा को ‘फ्री स्पिरिट’ छपी टी-शर्ट पहनकर सदन में आने के लिए राज्य विधानसभा (Gujarat Assembly) से बाहर कर दिया गया था। उन्होंने जवाब दिया कि उन्होंने इस पोशाक में ही प्रचार करते हुए वोट हासिल किया और चुनाव भी जीता थे। उनकी पार्टी ने भी स्पीकर के फैसले का विरोध किया। पार्टी ने तर्क दिया कि विधानसभा में एक विधायक को कैसे कपड़े पहनने चाहिए, इस बारे में कोई नियम नहीं है। हालांकि, स्पीकर ने यह कहते हुए झुकने से इनकार कर दिया, “क्योंकि आप एक विधायक हैं, आप किसी भी तरह से, किसी भी कपड़े में सदन में नहीं आ सकते हैं। यह खेल का मैदान नहीं है। आप छुट्टी पर नहीं हैं। वर्दी का एक प्रोटोकॉल होता है।”
महात्मा गांधी ने किया खादी पहनने का आग्रह
दूसरी ओर जहां तक औपचारिक नियमों की बात है संसद या किसी विधानसभा में किसी राजनीतिक नेता की पोशाक के संबंध में कोई नियम नहीं है।
हालांकि, कपड़े एक राजनीतिक बयान देने का अभिन्न अंग रहे हैं। खादी को लेकर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) का आग्रह इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। आजादी के बाद भी खादी को पर्याप्त संरक्षण मिलता रहा है। देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) के पास खादी में एक शानदार गैर-पश्चिमी लुक था। उनकी लंबी शेरवानी के साथ तंग चुड़ीदार पायजामा और अब नेहरू जैकेट (Nehru Jacket) के रूप में प्रसिद्ध उनकी सदरी एक स्टाइल स्टेटमेंट बना हुआ है।
खादी को गांधी परिवार और सरकार का बढ़ावा
सामाजिक मानवविज्ञानी एम्मा टारलो ने अपनी किताब ‘क्लोदिंग मैटर्स: ड्रेस एंड आइडेंटिटी इन इंडिया (Clothing matters: Dress and identity in India)’ में लिखा है, “आजादी के बाद अपने आस-पास पहनावे के भ्रम से चिंतित पंडित नेहरू ने पोशाक पर एक आधिकारिक नोट लिखकर सरकारी कार्यालयों के उच्च ग्रेड वालों को यूरोपीय कपड़ों जो ‘उन्हें एक विशेषाधिकार प्राप्त, अराष्ट्रीयकृत और बाहर के रूप में चिन्हित करता था से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने लिखा कि ऐसे कपड़ों को अपनाना जो उन्हें आम लोगों के करीब ले जाए।’ गैर-यूरोपीय लुक के प्रति नेहरू की प्रतिबद्धता उनकी बेटी इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को भी सौंपी गई थी। वह सार्वजनिक रूप से ज्यादातर हथकरघा सूती साड़ियों में देखी जाती थीं। 1984 में सत्ता में आने के बाद राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने भी खादी का समर्थन किया।
संविधान सभा की बहस में क्या कहा गया था
यह मामला संविधान सभा की बहस (Constituency Assembly debates) के दौरान भी उठा था। 29 अप्रैल, 1947 को रोहिणी कुमार ने किसी भी राष्ट्रीयता द्वारा पहने जाने वाले परिधान के प्रति भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया। कुमार ने कहा, “आज भी जब हम आजादी की दहलीज पर हैं, ऐसे होटल हैं जो भारतीय शैली के कपड़े पहने लोगों का स्वागत नहीं करते हैं।” “मैं भविष्य से नहीं डरता, क्योंकि मेरा मानना है कि जब भारत स्वतंत्र होगा तो इस तरह के प्रतिबंध गायब हो जाएंगे। लेकिन मुझे इस बात का डर है कि ऐसे यूरोपीय दिमाग वाले लोगों और यूरोपीय पोशाक में लोगों को होटलों में आने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसी कारण से मैं विशेष रूप से यह चाहता हूं कि इस संशोधन को इस सभा द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिये।”
(Adrija Roychowdhury के इनपुट के साथ)