Malegaon Blast Case 2006: मालेगांव ब्लास्ट केस में 19 साल बाद मुंबई की एक विशेष अदालत ने मंगलवार को चार आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए है। इन आरोपियों के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने आरोपपत्र दाखिल किया था। मालेगांव शहर में हुए चार विस्फोटों में 31 लोगों की मौत हुई थी। हालांकि, आरोपी मनोहर नरवारिया, राजेंद्र चौधरी, धन सिंह और लोकेश शर्मा ने आरोपों से इनकार किया।

स्पेशल जज सीएस बाविस्कर ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की हत्या और आपराधिक साजिश सहित अन्य धाराओं और गैरकानूनी (गतिविधियाँ) निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत आरोप तय किए। इसके बाद मुकदमे का रास्ता साफ हो गया है। विशेष लोक अभियोजक प्रकाश शेट्टी ने पहले ही आरोपियों के खिलाफ आरोपों का मसौदा पेश कर दिया था।

31 जुलाई को एक स्पेशल कोर्ट ने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में फैसला सुनाते हुए सभी सातों को बरी कर दिया था। हालांकि, 2006 के मामले में कई उतार-चढ़ाव आए। विस्फोटों के कई साल बीत जाने के बावजूद मुकदमा शुरू नहीं हो पाया। 8 सितंबर, 2006 को मालेगांव में चार बम विस्फोट हुए, जिनमें से तीन हमीदिया मस्जिद और बड़ा कब्रिस्तान परिसर में जुमे की नमाज के तुरंत बाद हुए, और चौथा मुशावरत चौक में हुआ, जिसमें 31 लोगों की जान चली गई और 312 लोग घायल हो गए।

मामले की जांच शुरुआत में महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने की थी। ATS ने दावा किया था कि विस्फोट के पीछे 13 मुस्लिम लोग थे। इनमें से नौ लोगों को एटीएस ने गिरफ्तार किया था। एटीएस ने दावा किया था कि वे 6 मई, 2006 को उनमें से एक की शादी के दौरान एक षड्यंत्रकारी बैठक में मिले थे। इसके बाद मामला सीबीआई को सौंप दिया गया, जिसने उन्हीं लोगों के नाम लेकर एक पूरक आरोपपत्र दायर (Supplementary Chargesheet) किया।

तीसरी एजेंसी, एनआईए ने 2011 में इस मामले की जांच अपने हाथ में ले ली, जब स्वामी असीमानंद, जो उस समय अजमेर शरीफ और मक्का मस्जिद विस्फोटों के आरोपी थे। उन्होंने 2010 में मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि 2006 के मालेगांव विस्फोट कथित तौर पर दक्षिणपंथी कार्यकर्ता सुनील जोशी और उनके आदमियों का काम थे। अंततः यह बयान वापस ले लिया गया, लेकिन एनआईए की जांच के बाद 2013 में एक और पूरक आरोपपत्र दाखिल किया गया, जिसमें कहा गया था कि पहले गिरफ्तार किए गए नौ मुस्लिम व्यक्ति विस्फोटों में शामिल नहीं थे। एक विशेष अदालत ने 2016 में एनआईए के आरोपपत्र के आधार पर नौ लोगों को बरी कर दिया, हालाकि उन्हें बरी करने की कार्यवाही के दौरान एजेंसी ने अपना रुख बदल लिया और मामले में दोनों आरोपियों को बरकरार रखने की मांग की।

एनआईए की चार्जशीट में उन चार लोगों के नाम हैं जिनके खिलाफ मंगलवार को आरोप तय किए गए। एनआईए ने दावा किया कि आरोपियों ने मध्य प्रदेश में एक साजिश रची थी। जहां उन्हें हथियार बनाने और बम बनाने का प्रशिक्षण भी दिया गया था। एजेंसी ने यह भी दावा किया कि इन लोगों की अलग-अलग भूमिकाएं थीं, जैसे साइकिल खरीदना, उन्हें फिट करना और विस्फोट स्थल तक पहुंचाना।

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एटीएस ने 2016 में गिरफ्तार किए गए नौ मुस्लिम व्यक्तियों को आरोपमुक्त किए जाने को चुनौती दी थी। वहीं वर्तमान आरोपियों ने भी इस आदेश को चुनौती दी थी और बॉम्बे हाई कोर्ट में उनके खिलाफ मामला रद्द करने की मांग की थी, जो अभी लंबित है।

2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने चार आरोपियों को जमानत दे दी थी, जिसने तब कहा था कि ये लोग बिना मुकदमा शुरू हुए छह साल से अधिक समय से जेल में थे और यह भी कहा कि ट्रायल कोर्ट को पिछली जांच एजेंसियों, एटीएस और सीबीआई द्वारा दायर आरोपपत्रों सहित पूरे रिकॉर्ड पर विचार करना चाहिए था।

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