Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में सियासी हलचल काफी तेज है। मुंबई में भारी बारिश के बीच महाराष्ट्र सरकार के मंत्री छगन भुजबल अपनी पूर्व पार्टी के नेता और एनसीपी (Sharad Pawar) के मुखिया शरद पवार से उनके आवास पर मुलाकात की।
इस मीटिंग के बाद राज्य के सबसे बड़े ओबीसी नेताओं में से एक भुजबल ने कहा कि रिजर्वेशन को लेकर मराठों और ओबीसी के बीच बढ़ती दुश्मनी के बाद महाराष्ट्र में हालात और खराब होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इतनी तेजी से बढ़ता ध्रुवीकरण महाराष्ट्र जैसे राज्य के लिए सही नहीं है। शरद पवार जैसे बड़े और अनुभवी नेता को आगे आकर शांति बहाल करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। मराठा बनाम ओबीसी विवाद लगातार बढ़ता ही जा रहा है। यह महाराष्ट्र के कल्याण के लिए काफी नुकसानदायक है।
छगन भुजबल और शरद पवार के बीच यह मीटिंग उस समय हुई है जब छगन ने बारामती की एक रैली में एनसीपी (SP) पर निशाना साधा था। मंत्री ने रविवार शाम एनसीपी (SP) नेता पर तीखा हमला करते हुए कहा कि शाम 5 बजे बारामती से फोन आने के बाद विपक्षी नेता सर्वदलीय बैठक से दूर रहे। शरद पवार जैसे वरिष्ठ नेता को बैठक में आना चाहिए था और हमें अपने सुझाव देने चाहिए थे। बैठक का बहिष्कार करना और फिर सलाह देना किसी काम का नहीं है।
एक तीर से दो निशाने साध गए छगन भुजबल
दोनों नेताओं के बीच चर्चा से जुड़े लोगों का कहना है कि यह बैठक भुजबल द्वारा नुकसान की भरपाई के लिए की गई थी। एक सूत्र ने कहा कि भुजबल को एहसास हो गया है कि उन्हें इतना मुखर नहीं होना चाहिए था। इससे एनसीपी (SP) के कई लोग और यहां तक कि अजित पवार की एनसीपी भी नाराज हो गई। सूत्रों के अनुसार, शरद पवार से दखलअंदाजी करने के लिए कहकर भुजबल एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश कर रहे हैं। पहला उन्होंने विपक्ष को विवाद में लाने की कोशिश की है और इशारा किया कि मराठा-ओबीसी मामले में विपक्ष भी सरकार के जितना ही उनके साथ है। दूसरा उन्होंने यह इशारा करने की भी कोशिश की है कि राज्य में मराठा नेताओं में से एक एकनाथ शिंदे भी इस समस्या का हल निकालने में कामयाब नहीं रहे।
इस साल की शुरुआत में भुजबल ने आरक्षण विवाद पर महायुति के अंदर चल रहे मतभेदों को सामने लाने में किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने नवंबर 2023 में राज्य सरकार द्वारा ओबीसी कैटेगरी के तहत मराठा आरक्षण देने की कोशिशों के विरोध में सरकार से इस्तीफा दे दिया। उस समय यह माना जाता था कि बीजेपी को इस सबका समर्थन हासिल था क्योंकि वह यह तय करना चाहती थी कि ओबीसी किसी भी तरह नाराज ना हों। भले ही सीएम शिंदे मराठों को शांत करने की कोशिश कर रहे हों।
हाल ही के कुछ महीनों में भुजबल कई मुद्दों पर महायुति से सहमत नहीं दिखे। इससे अटकलें लगाई जा रही हैं कि वह पाला बदल सकते हैं। उन्होंने साफतौर पर कहा कि लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए के 400 पार के नारे ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया। वहीं, जब भारतीय जनता पार्टी ने मुंबई में होर्डिंग गिरने की घटना के लिए शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को दोषी ठहराया तो वे उनके समर्थन में उतर आए। इस घटना में 9 लोगों की मौत हो गई थी। इतना ही नहीं, उन्होंने प्रदेश के स्कूलों में मनुस्मृति को शामिल करने के सरकारी प्रस्ताव का भी विरोध किया। फिर नासिक लोकसभा टिकट या अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा को राज्यसभा सीट न मिलने पर उनके नाराज होने की खबरें भी सामने आईं।
छगन भुजबल की शरद पवार से मीटिंग पर क्या बोले महायुति के नेता
सोमवार को भुजबल के महायुति सहयोगियों ने पवार के साथ उनकी मीटिंग को लेकर ज्यादा कुछ भी बोलने से साफ मना कर दिया। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि भुजबल और पवार की बैठक राजनीतिक नहीं है। अगर अलग-अलग पार्टियों के दो नेता किसी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मिलते हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ विपक्षी नेताओं की मनगढ़ंत सोच है। शिवसेना के संजय शिरसाट ने भी बैठक को ज्यादा तवज्जों नहीं दी और कहा कि यह दो नेताओं के बीच राज्य के कुछ मामलों पर चर्चा के अलावा कुछ नहीं था।
शरद पवार के पास मुद्दों को संभालने का अनुभव
चार बार मुख्यमंत्री रह चुके शरद पवार को समुदायों के बीच विवादों को संभालने का एक्सीपीरियंस है। यह ऐसी चीज है जो महायुति भी सीख सकती है। 1992 में मंडल आयोग की रिपोर्ट से लेकर धनगर और वंजारी समुदायों के बीच विवादों को सुलझाने तक। पवार ने इस सभी मुद्दों को सुलझाने में काफी मदद की है। बंजारा मंच के पूर्व अध्यक्ष हरिभाऊ राठौड़ ने कहा कि शरद पवार ने 1990 के दशक की शुरुआत में हमसे काफी चर्चा की थी। धनगर और वंजारी के बीच विवाद था। हमने ओबीसी के तहत सब कैटेगरी का सुझाव दिया था और इसे मान भी लिया गया था।
महायुति के लिए यह भी एक सबक है कि समुदायों के बीच विवाद किस तरह सरकार गिरा सकता है। 14 फरवरी, 1994 को पवार के नेतृत्व वाली कैबिनेट ने मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर डॉ. बीआर अंबेडकर के नाम पर रखने को मंजूरी दे दी। इससे मराठवाड़ा में दंगे भड़क उठे। मराठा वोट बैंक कांग्रेस से इतना खफा हो गया था कि उसने एक ऑप्शन को सर्च करना शुरू कर दिया था। उस समय की अशांति को पवार के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिराने और शिवसेना-भाजपा को सत्ता में लाने के कारणों में से एक माना जाता है। उस समय शिवसेना मुखिया बाल ठाकरे ने रिजर्वेशन के खिलाफ मुखर रुख अपनाया था।