बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि पति के देर से घर लौटने या बाहर खाना खाने पर पत्नी से हुए झगड़े को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498 A के तहत क्रूरता का आरोप नहीं माना जा सकता है। जस्टिस केआर श्रीराम की सिंगल बेच ने पिछले सप्ताह यह फैसला दिया। हाईकोर्ट 1997 में पारित ट्रायल कोर्ट के एक उस आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोपी पति को बरी कर दिया गया था। पति पर अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकदमा दर्ज किया गया था।
महाराष्ट्र की सोलापुर पुलिस ने आरोप लगाया था कि पत्नी ने क्रूरता का आरोप लगाते हुए अपने पति के घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। आईपीसी की धारा 498A (पति या पति के रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के खिलाफ क्रूरता) और 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) के तहत सजा दिलाने के लिए पति, उसकी मां, पिता और उसके भाई पर मुकदमा दर्ज किया गया था। सुनवाई के दौरान सोलापुर के मैजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालयों ने आरोपी को बरी कर दिया।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट के सामने आरोपी पति के द्वारा दिए गए बयान अधिक संभावित थे। उसने कोर्ट में दावा किया कि पत्नी को बच्चे चाहिए थे और वह शादी के सात-आठ साल बाद भी गर्भ धारण नहीं कर पाई थी। इसी वजह से उसने खुदकुशी की।
‘बार एंड बेंच’ की रिपोर्ट के मुताबिक इस संबंध में न्यायमूर्ति श्रीराम ने टिप्पणी करते हुए कहा, “वह (पत्नी) अपने पति के घर देर से लौटने या बाहर खाने के कारण दुखी थी। इस दौरान पति और पत्नी के बीच में झगड़े होते थे, लेकिन बाहर खाना या झगड़ना, आईपीसी की धारा 498 के तहत उत्पीड़न या क्रूरता नहीं माना जा सकता है। बेशक, तात्कालिक मामले में कोई सबूत नहीं है कि आत्महत्या से पहले उसके साथ कोई क्रूरता की गई थी।”
न्यायालय ने मामले में आगे कहा, “किसी भी वैवाहिक जीवन में साधारण नोक-झोक होती होती है, लेकिन उसे क्रूरता या उत्पीड़न नहीं माना जा सकता। यह तय कानून है कि हर प्रकार के उत्पीड़न या हर प्रकार की क्रूरता, आईपीसी की धारा 498 A या धारा 306 के संदर्भ में लागू नहीं होती। गवाहों ने उत्पीड़न के जो सबूत दिए हैं वो सिर्फ मृत पत्नी के द्वारा उन्हें बताए गए हैं।”