करीब दो साल पहले सऊदी अरब में एक प्रवासी भारतीय इंजीनियर वीकेंड के दौरान कम्प्यूटर पर फेसबुक देख रहा था। एक मिनट के भीतर वह बिल्कुल जड़ सा हो गया। उसने अपने भांजे के फेसबुक पेज पर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से जुड़े फोटो और सीरिया युद्ध से जुड़े वीडियो देखे। इंजीनियर ने तुरंत अपना कम्प्यूटर बंद किया और मुंबई फोन मिलाया।
इंजीनियर की भांजे ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि जिस क्षण मैंने फोन उठाया उन्होंने मुझपर चिल्लाना शुरू कर दिया। उसने कहा, ‘मेरे मामा जानना चाहते थे कि मैं इन सब में कैसे पड़ गया।’ उन्होंने कहा, ‘तुम इन सब में कैसे पड़ गए। तुम कहीं नहीं जा रहे हो, ठीक है। वह चिल्लाएं।’
इसके बाद अगला फोन सऊदी अरब से उसकी मां का था। कुछ दिन के भीतर ही एंटी टेररिस्ट स्कवॉड (एटीएस) इंजीनियर के भांजे के घर पहुंच गई। इंजीनियर का 21 वर्षीय भांजा बीबीए की पढ़ाई कर रहा था। परिवार में से ही किसी ने एटीएस को फोन कर दिया था।
इंडियन एक्सप्रेस ने बृहस्पतिवार को खबर छापी थी की किस तरह एटीएस के डि-रेडिकलाइजेशन प्रोग्राम से 120 युवा आईएस के चंगुल में फंसने से बच गए। इनमें 6 महिलाएं भी शामिल थीं। इस कार्यक्रम में शामिल एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि आम धारणा है कि जांच के बाद हम ऐसे लोगों तक पहुंचते हैं। वास्तव में एक दर्जन मामले ऐसे थे जिसमें परिवार के लोगों ने खुद हमें इसकी जानकारी दी।
परिवारवालों ने बताया कि उनका बेटा या भतीजा या बेटी बड़ी मुश्किल में फंस सकती है। सऊदी-मुंबई का केस एक बेहतरीन उदाहरण है कि परिवार किस तरह से इस मामले में सक्रिय हो सकता है। यह बीबीए स्टूडेंट अब डि-रेडिकलाइजेश प्रोग्राम पूरा कर चुका है और नौकरी की तलाश कर रहा है।
लड़के के पिता कहते हैं कि मुझे नहीं पता कि इसके किस अंकल ने फोन किया लेकिन मैं हमेशा उसका ऋृणी रहूंगा। इस बारे में लड़के का कहना है कि जब नवंबर 2017 को मेरी मां ने पुलिस के अपने घर देखा तो वह सदमे में पहुंच गईं। मेरे पिता मेरे पर बहुत गुस्सा हुए। तब मुझे चिंता हुई कि यदि मैं गिरफ्तार हो गया तो मेरे परिवार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पुलिस वालों ने बेहद ही गोपनीय तरीके मेरी काउंसलिंग की। इसके बारे में मेरे पास-पड़ोस को भी कुछ पता नहीं है।