भारत के एक प्रमुख चर्च ने आधिकारिक रूप से कहा है कि बिहार में महागठबंधन की जीत पंथ आधारित राजनीति (sectarian politics) के खिलाफ दिया गया निर्णय था। साथ ही, इसे जनमानस द्वारा इस रूप में देखा गया कि जाति के आधार पर बांटने की राजनीति, धार्मिक कट्टरता और पंथवादी सोच को प्रचार का औजार बनाने की प्रवृत्ति को जनता समर्थन नहीं देगी। चर्च की ओर से आधिकारिक तौर पर ऐसा लिखने का मामला विरले ही सामने आया है। यह बात फरीदाबाद-दिल्‍ली सायरो मालाबार चर्च के आर्कबिशप के. भरनाइकुलंगर ने अपने ‘पैस्‍टोरल लेटर’ (बिशप द्वारा अपने समर्थकों को लिखी जाने वाली चिट्ठी) में लिखी है। उन्‍होंने लिखा है कि हाल के कुछ घटनाक्रम से ऐसा लगता है कि कुछ अति धार्मिक कट्टरवादी लोग भारतीय संविधान के मूल पर चोट कर रहे हैं। इससे देश खंडित होगा और पंथवाद मजबूत होगा। यह किसी को मंजूर नहीं होगा कि किसी पर इस बात के लिए अंगुली उठाई जाए कि वह क्‍या खाता है, कौन सा धर्म मानता है या किस जाति का है। आर्क बिशप की मलयालम में लिखी चार पेज की इस चिट्ठी को रविवार को दिल्‍ली-फरीदाबाद के सभी चर्चों में प्रार्थना के दौरान पढ़ा गया।

आर्कबिशप ने पुरानी बात याद करते हुए लिखा- एक इस्‍लामिक मुल्‍क में मैं रहा था। वहां की सरकार ने लड़कियों, महिलाओं सहित सभी लोगों के लिए ड्रेस कोड लागू कर दिया। सरकार को लोगों के खान-पान, पहनावे, धर्म आदि की पसंद-नापसंद में कोई दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए। यह मंजूर नहीं किया जा सकता कि सरकार अवाम पर कोई खास सिद्धांत थोपने की कोशिश सिर्फ इसलिए करे ताकि चुनाव में भारी बहुमत से जीत मिल जाए। अगर सरकार संविधान बदलने के लिए सत्‍ता में आने लगे तो देश में स्‍थायित्‍व नहीं रह सकता। सरकार का चाहे जो भी सिद्धांत हो, उसे संविधान का सम्‍मान करना चाहिए और देश को संविधान की मूल भावना के मुताबिक ही आगे बढ़ाना चाहिए। चिट्ठी में हाल ही में देश में हुई ‘असहिष्‍णुता की घटनाओं’ का जिक्र भी किया गया है। इनमें दादरी में बीफ खाने के आरोप में हुई मो. अखलाक की हत्‍या, अवॉर्ड वापसी, एम.एम. कुलबर्गी जैसे बुद्धिजीवियों की कत्‍ल, सनपेड़ा में दो दलित बच्‍चों की हत्‍या, पंजाब में गुरू ग्रंथ साहिब के पन्‍ने फाड़े जाना आदि घटनाओंं का जिक्र है।

आर्कबिशप ने लिखा है कि वह चाहते हैं कि देश में सहिष्‍णुता बढ़े और लोग धार्मिक सहिषुणता का महत्‍व समझें। साथ ही, बड़ा राजनीतिक नजरिया अपनाएं। उन्‍होंने लिखा- धार्मिक सहिष्‍णुता भारतीय संविधान की आत्‍मा है। भारत की अवधारणा न तो एक राज्‍य-एक धर्म की है और न ही सत्‍ताधारी पार्टी के धर्म की है। संविधान सबको बराबरी का हक देता है। धर्मांतरण और घर वापसी पर मचने वाले शोर के प्रति भी आर्क बिशप ने ईसाई समुदाय का ध्‍यान खींचा है। साथ ही, मुसलमानों और ईसाइयों की जनसंख्‍या पर लगाम लगाने के लिए जनसंख्‍या नीति बदलने की आरएसएस की मांग का भी जिक्र किया है।

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