Kumbh 2025 Indian Railway Train Over Congestion: महाकुंभ जाने की आस में इस समय ज्यादातर लोग भारतीय रेल का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। इस वजह से रेलवे पर दबाव काफी ज्यादा है, ट्रेनों में जरूरत से ज्यादा लोग हैं और स्टेशन पर भगदड़ जैसी स्थिति बन रही है। हाल ही में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भी ऐसा ही हाल देखने को मिला जब ओवरक्राउडिंग ने 18 लोगों की जान ले ली। इसके लिए रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के लिए सुरक्षा के इंतजाम को लेकर दोष दिया जा रहा है। लेकिन एक बड़ी सच्चाई यह है कि भारतीय रेल की ऐसी हालत कोई कुंभ के दौरान शुरू नहीं हुआ है, यहां तो पिछले कई दशकों से ऐसा ही हाल चलता आ रहा है।
75 साल में स्टेशन बढ़े आधे, आबादी फुड स्पीड में
असल में भारत में जनसंख्या तो काफी तेजी से बढ़ी है, लेकिन उसकी तुलना में कभी भी ट्रेनों की संख्या नहीं बढ़ी। देश में लोगों ने ट्रेनों से ज्यादा सफर तो किया, लेकिन स्टेशनों पर उतने लोगों को संभालने की क्षमता नहीं बनाई। कॉमर्स मिनिस्ट्री के ट्रस्ट इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन का एक आंकड़ा बताता है कि वर्तमान में देश में रोज 22,593 ट्रेनें चल रही हैं, यहां भी 13,452 यात्री ट्रेनें हैं। अब समझने वाली बात यह है कि इस समय देश में 13452 यात्री ट्रेने हैं, लेकिन उनसे सवारी करने वाले यात्री प्रतिदिन 2.40 करोड़ है। इसका मतलब यह है कि इस देश में आजादी के 75 सालों बाद भी 1800 के करीब यात्रियों पर एक ट्रेन है। यह बताने के लिए काफी है कि ट्रेनों में भीड़ ज्यादा क्यों रहती है, आखिर क्यों कई बार टिकट लेने के बाद भी यात्री ही धक्के खाता है।
एक और आंकड़ा हैरान कर सकता है, इस देश में 1951 में जब आबादी सिर्फ 36 करोड़ के करीब थी, रेलवे स्टेशनों की संख्या 6000 थी। लेकिन समय के साथ देश की आबादी फुल स्पीड से बढ़ती गई, लेकिन नए स्टेशन बनने की रफ्तार कम होती गई। एक आंकड़ा कहता है कि देश में 2025 तक रेलवे स्टेशनों की संख्या सिर्फ 7461 पहुंच पाई है और इस समय देश की आबादी चल रही है 145 करोड़, यानी कि आबादी 36 करोड़ से 145 करोड़ तक पहुंच गई, लेकिन स्टेशनों की संख्या बढ़ी सिर्फ 1461। यह ट्रेंड काफी चिंताजनक है क्योंकि इससे पता चलता है कि देश के आम आदमी को भीड़ में फंसना ही है। चाहे वो टैक्स देता हो, चाहे वो ईमानदारी से काम करता हो, लेकिन बात जब ट्रेन में सफर करने की आएगी, उसे असुविधाका सामना करना ही पड़ेगा।
भारतीय रेल की सबसे बड़ी समस्या क्या?
2023 में जनसत्ता ने इसी भारतीय रेल की स्थिति को लेकर Indian Railway Service of Engineers (IRSE) के अधिकारी आलोक कुमार वर्मा से खास बातचीत की थी। उन्होंने उस समय भी कहा था कि भारतीय रेल की सबसे बड़ी समस्या या कहना चाहिए बीमारी Over Congestion की है। उन्होंने कहा था कि हमे तो ओवरक्राउडिंग की चिंता करनी चाहिए। ये सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक है। यात्रियों का भी इसमें नुकसान ही है, वो पूरी टिकट का पैसा देते हैं, लेकिन कितनी खराब स्थिति में उन्हें ट्रैवल करना पड़ता है। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारे ट्रंक रूट्स बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहे हैं, उन पर काफी आवाजाही है। मैं तो यहां तक कहूंगा कि हम एक तरह से अपने ट्रैक्स का शोषण कर रहे हैं, जितनी क्षमता नहीं है, उससे कई ज्यादा ट्रेनें चलाई जा रही हैं। जब आप जरूरत से ज्यादा ट्रेनें चलाएंगे, तब इंस्पेक्शन, डायग्नोस्टिक, मैंटेनेंस के काम पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाएगा।
अब यह 2023 की बात है, लेकिन अभी जब कुंभ चल रहा है, यही ओवर क्राउडिंग की समस्या सबसे ज्यादा उभरकर सामने आई है। इससे लोगों की जान पर भी खतरा बन आया है और रेल अधिकारियों के लिए चुनौतियां ज्यादा बढ़ रही हैं। वैसे भारतीय रेल का जब जिक्र होता है, बात सिर्फ ट्रेन और रेलवे स्टेशन की नहीं है, कितना ट्रैक बिछाया जा रहा है, यह भी एक बड़ा मुद्दा है। पिछले साल मई में एक आरटीआई दायर की गई थी, उसमें पूछा गया था कि भारतीय रेल प्रतिदिन कितना नया ट्रैक बिछा रहा है, जो आंकड़े सामने आए, वो बताने के लिए काफी थे कि समय के साथ यहां भी रेलवे ने अपनी रफ्तार खो दी है। रेल मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2022-2023 में 3901 किमी ट्रैक बिछाया गया था, जो 2023-24 में घटकर 2966 किमी पहुंच गया।
ट्रेनों की रफ्तार कम, पुराने ट्रैक पर बढ़ रहा बोझ
अगर इसे प्रतिदिन के हिसाब से देखें तो 2023-24 में सिर्फ 8.12 किलोमीटर ही ट्रैक बिछाया गया है। इसके ऊपर भारत में ट्रेनों की औसत रफ्तार आज भी काफी कम है। अगर यात्री ट्रेन की बात करें तो औसत रफ्तार आज भी 50 किलोमीटर प्रतिघंटे की चल रही है, वही अगर मालगाड़ियां देखें तो वो तो सिर्फ 25 किमोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही हैं। यह हाल बताने के लिए काफी है कि क्यों देश में ट्रेनें इतनी लेट होती हैं, आखिर क्यों हर बार यात्रियों को ज्यादा समय ट्रेन में बिताना पड़ जाता है। हैरानी की बात यह है कि इन पैसेंजर्स ट्रेन की रफ्तार क्योंकि कम है, इसका सीधा असर प्रीमियम ट्रेनों पर भी पड़ रहा है।
यात्रियों के 1.10 करोड़ मिनट हो गए बर्बाद
सरकार कई सारी वंदे भारत लॉन्च कर रही है, लेकिन ट्रैक तो उतने ही हैं, ऐसे में जब तक यह पुरानी ट्रेनें अपनी रफ्तार नहीं बढ़ा लेतीं या फिर जब तक इनकी जगह दूसरी नई ट्रेनें नहीं आ जाती, यह प्रीमियम ट्रेनें भी अपनी असल रफ्तार नहीं पकड़ सकतीं। इसके ऊपर इस धीमी रफ्तार की वजह से भारत में बेहिसाब ट्रेनें लेट हो रही हैं, यात्री कई घंटों की देरी से अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच रहे हैं। आरटीआई दायर कर एक आंकड़ा मिला है कि भारत में साल 2022-23 में कुल 142897 ट्रेनें लेट हुई थीं, इस वजह से 1.10 करोड़ मिनट यात्रियों के बर्बाद हुए।
अब चुनौतियां अनेक हैं, लेकिन कई सबक भी सीखे जा सकते हैं। भारत का पड़ोसी देश चीन इस मामले में काफी विकास कर चुका है, वहां भी भारत के आसपास ही आबादी है, लेकिन ना वहां ट्रेनें लेट होती हैं और ना ही वहां पर इस तरह भगदड़ जैसी स्थिति स्टेशनों पर देखने को मिलती है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि चीन ने तकनीक का इस्तेमाल बेहतर तरीके से किया है।
चीन से भारत क्या सीख सकता है?
चीन में रेलवे स्टेशनों पर भीड़ को काबू में करने के लिए AI तकनीक का इस्तेमाल होता है। इसका मतलब यह है कि संभावित भीड़ के आने से पहले ही ऐसे हॉटस्पॉट तैयार कर लिए जाते हैं जहां पर ज्यादा कजेक्शन हो सकता है। ऐसा एलगौरिथम होता है जो यह सारी जानकारी इकट्ठा करता है और फिर स्टेशन स्टाफ को अलर्ट भेजता रहता है। इसके अलावा चीन में रेलवे स्टेशनों पर एंट्री और एग्जिट प्वाइंट्स पर सेंसर लगे होते हैं, यह सेंसर ही बता देते हैं कि एक स्टेशन पर एक वक्त पर कितने यात्री हैं और उस स्टेशन की असल क्षमता कितनी है। इसी तरह चीन के स्टेशनों पर जगह-जगह Heatmap visualization दिख जाएंगे, इसका मतलब यह होता है कि बड़े डिजिटल बोर्ड लगे है जहां पता चलता रहता है कि स्टेशन के किस कोने पर अभी ज्यादा भीड़ है और कहां कम चल रही है, ऐसे में स्टाफ के लिए क्राउड डायवर्ट करना आसान रहता है।
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