Madras High Court: मद्रास हाई कोर्ट ने मंदिर के पैसे से मैरिज हॉल बनाने के एक सरकारी आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मंदिर के पैसे को किसी सार्वजनिक या सरकारी पैसे के तौर नहीं देखा जा सकता। मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै पीठ ने कहा कि मंदिर का पैसा केवल भगवान का होता है, इसका इस्तेमाल सरकारी काम में नहीं किया जा सकता।
दरअसल, हाई कोर्ट के जस्टिस एस.एम. सुब्रमण्यम और जस्टिस जी. अरुल मुरुगन की खंडपीठ ने कहा कि मंदिरों को अर्पित की गई धनराशि और दान की गई संपत्ति देवता की है, इसलिए देवता ही इसके असली मालिक हैं। कोर्ट ने कहा मंदिर लाभ कमाने वाली संस्थाएं नहीं हैं और उनका धन हिंदू धार्मिक एवं धर्मार्थ बंदोबस्ती (एचआर एंड सीई) अधिनियम की विभिन्न धाराओं में उल्लिखित वैधानिक उद्देश्यों के दायरे में ही रहना चाहिए।
मंदिर के कामों का कहां हो इस्तेमाल?
हाई कोर्ट ने कहा कि यह अधिनियम सरकार को हिंदू धार्मिक संस्थाओं की निगरानी का अधिकार देता है लेकिन राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि मंदिरों के धन का उपयोग केवल भक्तों या दानदाताओं की इच्छानुसार धार्मिक उद्देश्यों के लिए ही किया जाए। अदालत ने कहा कि इस तरह के योगदान का उपयोग मंदिर के उत्सवों, रखरखाव या मंदिरों के विकास के लिए किया जाना चाहिए। इसका उपयोग सरकारी कामों के लिए नहीं होना चाहिए।
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कोर्ट ने की कानून की व्याख्या
हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने कहा कि व्याख्या का विस्तार करके मंदिर के धन का दुरुपयोग करने का सरकार का कोई भी प्रयास स्वीकार नहीं किया जाएगा और इसके परिणामस्वरूप हिंदुओं के अपने धर्म को चुनने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।
विधानसभा में शिक्षा मंत्री ने की थी घोषणा
इससे पहले मानव संसाधन एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री पीके शेखर बाबू ने विधानसभा में घोषणा की थी कि 80 करोड़ रुपये की लागत से 27 मंदिरों में विवाह भवन बनाए जाएंगे। इस पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने सरकारी आदेश को रद्द कर दिया और कहा कि मंदिरों के धन का इस तरह दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
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