चांद धरती से जितना समतल दिखाई देता है उतना है नहीं। इस पर मौजूद गड्ढे (क्रेटर) बेहद गहरे हैं। बड़े-बड़े क्रेटर के भीतर कई और क्रेटर मौजूद हैं। इस कारण यहां की सतह पर उतरना (लैंडिंग) बेहद मुश्किल हो जाती है। रूस के यान लूना-25 के चांद की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद यह बहस तेज हो गई है। चांद के दक्षिणी ध्रुव पर रूस अपना लूना-25 यान उतारना चाहता था। अब रूस की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। रूस का लूना- 25 यान चांद की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। रूसी स्पेस एजंसी रोसकोसमोस ने इसकी आधिकारिक पुष्टि की है।

लूना-25 यान का 19 अगस्त को सतह पर उतरने से पहले संपर्क टूट गया था

लूना-25 यान 19 अगस्त को सतह पर उतरने से पहले की (प्री लैंडिंग) अंडाकार कक्षा बनाने के लिए बढ़ रहा था। तभी उसका मास्को से स्थानीय समय के मुताबिक 14.57 बजे संपर्क टूट गया। भारत का चंद्रयान-2 भी सतह पर उतरने से ठीक पहले दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। ऐसे में सवाल उठता है कि चांद पर यान को उतारना इतना कठिन क्यों है?

चांद के दक्षिणी ध्रुव को सबसे कठिन इलाकों में से एक माना जाता है

चांद के दक्षिणी ध्रुव को सबसे कठिन इलाकों में से एक माना जाता है। यहां पर लैंडिंग को आसान नहीं माना जाता। यही कारण है कि अपने चंद्रयान-3 मिशन में इसरो हर सावधानी बरत रहा है। चांद पर उतरने के लिए एक साथ कई चीजों का सटीक होना जरूरी है। चांद पर उतरने के लिए सटीक नौवहन दिशानिर्देश (पिनपाइंट नेविगेशन गाइडेंस), सटीक उड़ान (फ्लाइट डायनामिक्स), समतल जगह की जानकारी, सटीक समय पर थ्रस्टर का चलना और सही समय पर थ्रस्टर की गति को कम करना जरूरी होता है। इनमें से अगर किसी भी चीज में समस्या होती है तो पूरा मिशन फेल हो सकता है।

चांद पर जब भी कोई यान उतरता है तो वह एक तरह से गिर रहा होता

चांद पर जब भी कोई यान उतरता है तो वह एक तरह से गिर रहा होता है। इसरो के वैज्ञानिकों के मुताबिक, जब लैंडर प्रापल्शन (प्रणोदक) माड्यूल से अलग हो जाता है तो यह धीरे-धीरे चांद की सतह के करीब जाने लगता है। इस दौरान उसके नीचे जाने और निर्धारित दिशा की ओर जाने को नियंत्रित किया जाता है। चांद की सतह पर उतरने (साफ्ट लैंडिंग) के लिए लैंडर की गति तीन मीटर प्रति सेकंड तक कम करने की जरूरत होती है। इस गति के लिए ‘थ्रस्टर’ इंजन चालू किया जाता है। इसी साल जापान का हकुतो-आर लैंडर गलत गणना के कारण समय पर धीमा नहीं हो सका, जिसके कारण वह चांद की सतह पर टूट गया।

अब तक चांद के लिए जो भी मिशन भेजे गए हैं वो चांद के उत्तर में या फिर मध्य में सतह पर उतरने के लिए भेजे गए हैं। इन हिस्सों में जगह समतल है और सूरज की सही रोशनी भी आती है। लेकिन दक्षिणी ध्रुव चांद का वो इलाका है, जहां रोशनी नहीं पहुंचती। साथ ही इस जगह पर चांद की सतह पथरीली, ऊबड़-खाबड़ और गड्ढों से भरी है। 

यहां पहुंचने वाली सूरज की किरणें तिरछी होती हैं। चांद का अधिकतर हिस्सा अपेक्षाकृत समतल है, लेकिन दक्षिणी हिस्से में सूरज की रोशनी के कारण गड्ढों की परछाईं बहुत लंबी होती है। इस कारण यहां गड्ढों और ऊबड़-खाबड़ जमीन की पहचान कर पाना बेहद मुश्किल है। चांद के दक्षिणी ध्रुव से जुड़ी कम ही तस्वीरें उपलब्ध हैं। यहां सिग्नल भी कमजोर है। देखा जाए तो चांद पर वायुमंडल जैसा कुछ नहीं है, जिससे उतरने वाले यान की गति कम करने के लिए उचित घर्षण नहीं मिल पाता।

पृथ्वी की तुलना में चांद पर गुरुत्वाकर्षण 16.6 फीसद है। धरती की तरह चांद पर सैटलाइट सिग्नल का नेटवर्क नहीं है। ऐसे में बेहद सामान्य सिग्नल के आधार पर चांद पर यान उतारा जाता है। यही कारण है कि चंद्रयान-3 के लैंडर को उतारने के लिए इसरो चंद्रयान-2 आर्बिटर का इस्तेमाल कर रहा है।