लोकसभा चुनाव में इस समय भारतीय जनता पार्टी अति विश्वास के साथ आगे बढ़ती दिख रही है। वो मानकर चल रही है कि इस बार उसकी लहर नहीं आंधी है जिसमें समूचा विपक्ष उड़ जाएगा। उसका कॉन्फिडेंस इस कदर हाई चल रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों एनडीए और बीजेपी के लिए रिकॉर्ड सीटों का टारगेट सेट कर दिया है। एक तरफ बीजेपी के लिए 370 सीटों का टारगेट सेट किया गया है तो वहीं एनडीए के लिए 400 पार का नारा दे दिया गया है।

400 की राह इतनी मुश्किल क्यों?

अब राजनीति में किसी भी स्थिति को नकारा नहीं जा सकता, ये भी कहना गलत होगा कि एनडीए 400 पार नहीं जा सकती। लेकिन नारे और आंकड़ों वाली हकीकत में अंतर होता है। इसी वजह से सभी के मन में सिर्फ एक सवाल चल रहा है- क्या सही में एनडीए इस बार के लोकसभ चुनाव में 400 से ज्यादा सीटें पा सकती है, या पीएम मोदी द्वारा दिया गया नारा सिर्फ और सिर्फ पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए था? अब अगर इस 400 सीटों वाले टारगेट को डीकोड करने की कोशिश की जाए तो पता चलता है कि वर्तमान स्थिति में तो वहां तक पहुंचना एनडीए के लिए काफी मुश्किल है।

एनडीए नहीं अपना ग्राफ सुधारना होगा!

वहीं जो बीजेपी अपने के लिए 303 से 370 सीटों तक पहुंचने की बात कर रही है, वहां भी सवाल यही उठता है कि आखिर 67 अधिक सीटें कहां से जोड़ी जाएंगी। अब अगर 400 पार तक जाना है तो बीजेपी को ही ज्यादा से ज्यादा सीटें अपने दम पर जीतनी होगी, वो अपने सहयोगी दलों पर ज्यादा निर्भरता नहीं रख सकती है। अगर ज्यादा डिटेल में ना भी जाया जाए, एक सिंपल गणित तो ये कहता है कि बीजेपी को दक्षिण के राज्यों में अपनी स्थिति काफी ज्यादा सुधारना पड़ेगा।

दक्षिण में हालत पतली, कहां से निकलेंगी सीटें?

वर्तमान में अगर बात केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की हो, तो यहां से ही लोकसभा की 118 सीटें निकलती हैं। बीजेपी के पास सिर्फ चार सीटें हैं, वो भी सारी तेलंगाना से आई हैं। इसका मतलब साफ है अगर सीटों का ग्राफ बीजेपी को बढ़ाना है तो उसे हर कीमत पर दक्षिण में बड़ी सेंधमारी करनी होगी। अगर तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल और आंध्र प्रदेश से बीजेपी ने 10-10 सीटें भी निकाल लीं तो उसकी राह कुछ आसान बन सकती है। लेकिन वर्तमान सियासी हालात बताते हैं कि तेलंगाना छोड़कर दूसरे किसी राज्य में पार्टी की स्थिति उतनी मजबूत नहीं है।

उत्तर भारत में बीजेपी की कम होती स्कोप

बीजेपी और एनडीए के लिए एक मुश्किल ये भी बनी हुई है कि वो उत्तर भारत में अपना एक तरह से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर चुकी है। अगर पूरे उत्तर भारत की बात करें तो 320 सीटों में से बीजेपी ने 233 सीटों पर जीत दर्ज की थी। अब अगर ये बोल दिया जाए कि इस बाक कोई बड़ा चमत्कार करते हुए पार्टी सारी 320 सीटें जीत जाएगी, ऐसा नहीं लगता है। बीजेपी के सामने चुनावी पंजाब से सामने आने वाली है जहां से लोकसभा की 13 सीटें निकलती हैं, इस समय बीजेपी के पास सिर्फ दो खाते में हैं। यहां पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों ही काफी मजबूत हैं, वहीं अकाली की भी अपनी उपस्थिति है।

महाराष्ट्र से चाहिए 15 अतिरिक्त सीटें

महाराष्ट्र की बात करें तो वहां से 48 सीटें निकलती हैं, पिछली बार बीजेपी अपने दम पर 23 जीत पाई थी, वहीं कई सीटें शिवसेना (उद्धव ठाकरे के साथ) ने जीती थी। इसी वजह से आंकड़ा 40 के पार गया था। लेकिन जब राज्य में शिवसेना ही टूट चुकी है, उद्धव ठाकरे अलग हैं और बीजेपी के पास एकनाथ शिंदे का साथ है। ऐसे में कितनी सीटें बढ़ा पाते हैं, ये बड़ा सवाल चल रहा है। लेकिन अगर सपने 400 पार के देखे जा रहे हैं तो इस राज्य से भी बीजेपी को कम से कम 15 सीटें अपने दम पर और जोड़नी पड़ेगी। यानी कि उसका आंकड़ा 23 से बढ़कर 38 तक तो जाना ही चाहिए।

यूपी में क्या जुगाड़ फिट होगा?

इसी तरह देश का जो सबसे बड़ा राज्य है उत्तर प्रदेश, वहां से 80 सीटें आती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 62 अपने नाम की थीं, लेकिन अगर 370 तक या 400 तक पहुंचना है तो पार्टी को अपनी इस टैली में 10 से 12 सीटें तो और जोड़नी ही पड़ेंगी। वैसे भी जब बात प्रचंड बहुमत की हो रही है तो एक सीट भी मायने रहने वाली है। अब यूपी में बीजेपी को जिस टारगेट तक पहुंचना है, वो कागज पर ही आसान नहीं दिख रहा है। पिछली बार जब सपा-बसपा साथ आ गए थे, बीजेपी को अपनी ही टैली में 10 सीटों का नुकसान हुआ था।

370 हटने के बाद कश्मीर में असमंजस

इस बार कांग्रेस के साथ मंथन जारी है, वहीं बसपा अपनी सोशल इंजीनियरिंग चलाने का प्रयास कर ही रही है। बीजेपी के लिए सारी आस यूपी में राम मंदिर और सीएम योगी का चेहरा रहने वाला है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर की पिछली बार तीन सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं, लेकिन ये आंकड़ा तब का है जब 370 हटा नहीं था। 370 हटने के बाद से अभी तक जम्मू-कश्मीर में कोई चुनाव नहीं हुआ है, ऐसे में कैसा माहौल है, क्या चल रहा, किसी को कुछ नहीं पता। यानी कि असमंजस वाली स्थिति का फायदा बीजेपी को मिलता है या नहीं, इसी का इंतजार करना पड़ेगा।

ओडिशा में दोस्ताना, बंगाल में 2019 वाली बात नहीं

वैसे बीजेपी के लिए तो राह ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भी कोई खास मजबूत नहीं चल रही है, किसी बहुत बड़े उलटफेर की संभावना भी अभी तक तो दिखाई नहीं दे रही है। बात अगर ओडिशा की हो तो यहां से लोकसभा की 21 सीटें निकलती हैं, बीजेपी को यहां से आठ पर जीत मिली थी। इस बार वो कितना आंकड़ा यहां पर बढ़ा सकती है, इसी को लेकर सवाल है। ये बात किसी से नहीं छिपी है कि बीजेपी और बीजेडी दोनों एक दूसरे के कट्टर दुश्मन दिखाई नहीं देते हैं, बल्कि सहूलियत वाली राजनीति दोनों के बीच में कई सालों से चल रही है।

जितनी आक्रमक बीजेपी बंगाल में ममता के खिलाफ दिखती है, वो रवैया ओडिशा में आकर नरम पड़ जाता है। पीएम मोदी भी कई मौकों पर सीएम नवीन पटनायक की तारीफ कर चुके हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए यहां से और ज्यादा सीटें निकालना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। पश्चिम बंगाल में तो 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से काफी कुछ बदल चुका है, ये भी कहा जा सकता है कि बीजेपी ने अपनी बढ़त खो भी दी है। जितना मजबूत पार्टी का संगठन पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान लग रहा था, एक विधानसभा चुनाव हार ने उसे बिखेर दिया और इस समय कई बड़े नेता फिर टीएमसी में शामिल हो चुके हैं।

72 सीटों का खेल, बीजेपी बना सकती महा रिकॉर्ड

ऐसे में बीजेपी की ये वाली राह तो बिल्कुल भी आसान नहीं रहने वाली है, बल्कि कहना चाहिए इसका पूरा होना वर्तमान स्थिति में तो काफी मुश्किल दिखाई दे रहा है। पार्टी के लिए उम्मीद की किरण 2019 के चुनाव से जुड़ा एक आंकड़ा जरूर बन सकता है। असल में बीजेपी ने जब अपने दम पर पिछले चुनाव में 303 सीटें जीती थीं, तब देश की कुल 72 सीटें ऐसी थीं जहां पर वो दूसरे नंबर पर रही थी। यानी कि चुनाव तो हारी, लेकिन वो दूसरे रनर अप वाली स्थिति में रही। अगर इन सीटों पर और जान लगा दी जाए तो पार्टी कोई बड़ा खेल करने की स्थिति में आ सकती है।

वोट शेयर 50 फीसदी वाला

एक सिंपल गणित तो ये भी कहता है कि अगर एनडीए किसी तरह से अपना वोट शेयर 50 फीसदी कर ले, तब भी 400 पार की राह हासिल की जा सकती है। ये नहीं भूलना चाहिए कि जब कांग्रेस ने 412 सीटें जीती थीं, उसका वोटशेयर 48 फीसदी के करीब पहुंच गया था। ऐसे में इसके करीब या इससे ज्यादा वोट शेयर बीजेपी को हासिल करना पड़ेगा। इसके अलावा पीएम मोदी का गणित तो ये भी मानकर चल रहा है कि बीजेपी के खिलाफ कई सीटों पर विपक्ष एक प्रत्याशी नहीं उतार पाएगा और उसी वजह से वोटों का बंटवारा होगा, जिसका सीधा फायदा उन्हें तीसरी बार सत्ता में लाने का काम करेगा।