विवादास्पद भूमि संशोधन विधेयक को मंगलवार को लोकसभा की मंजूरी मिल गई जिसे पारित कराने के लिए सरकार ने इसमें नौ संशोधन शामिल किए और सत्तारूढ़ राजग के सहयोगी दलों को साथ आने को राजी किया हालांकि सरकार में शामिल शिवसेना ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी दल, राजद, सपा ने विधेयक के पारित होने के समय सदन से वाकआउट किया जबकि बीजू जनता दल के सदस्य विधेयक पर खंडवार चर्चा के दौरान ही वाकआउट कर गए थे और शिवसेना ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। राजग के अन्य दल स्वाभिमानी पक्ष ने एक संशोधन पेश किया जिसे अस्वीकार कर दिया गया।

सरकार ने इस विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि उसने पुराने कानून में आत्मा डालकर इसे ग्रामीण विकास और किसानों के उत्थान का महत्वपूर्ण माध्यम बनाया है। सरकार ने साथ ही आश्वासन दिया कि वह किसानों के हक में विपक्ष सहित किसी भी ओर से दिये गए अन्य सुक्षावों को भी अपनाने को तैयार है।

विपक्ष के कड़े विरोध का सामना कर रही सरकार ने बीच का मार्ग निकालते हुए जहां विपक्ष एवं सहयोगी दलों की कुछ सुझावों को नए संशोधनों के जरिये विधेयक का हिस्सा बनाया और उसमें दो नए उपबंध जोड़े। विपक्ष ने हालांकि आरोप लगाया कि सरकार ने उसकी ओर से रखे गये संशोधनों में से किसी को भी स्वीकार नहीं किया गया और और न ही इस विधेयक को स्थायी समिति में भेजने की उसकी मांग को माना गया।

सदन ने विपक्ष की ओर से रखे गए संशोधनों को अस्वीकार करते हुए और सरकारी संशोधनों को मंजूर करके भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्रव्यस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार संशोधन विधेयक 2015 पर अपनी मुहर लगा दी।

लोकसभा में पूर्ण बहुमत रखने वाली राजग सरकार को अब इस विधेयक को राज्य सभा में पारित कराने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी जहां वह अल्पमत में है और विपक्ष एकजुट है। विपक्ष का साथ पाने के प्रयास में ग्रामीण विकास मंत्री ने आज सदन में आश्वासन दिया कि उन्होंने पहले ही कुछ नए संशोधनों को लाकर विपक्ष और अन्य दलों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की है और किसानों के हितों में अगर और भी कुछ सुझाव होंगे तो सरकार उन्हें भी स्वीकार करने को तैयार है।

लोकसभा में आज चर्चा का उत्तर देते समय विपक्षी सदस्यों के साथ कभी तीखी नोकझोंक तो कभी हास्य विनोद के साथ ग्रामीण विकास मंत्री ने किसानों और देश के व्यापक हित में इसे पारित कराने का आग्रह किया। यह विधेयक इस संबंध में जारी अध्यादेश का स्थान लेने के लिए लाया गया है।

सरकारी संशोधनों में मूल कानून में औद्योगिक गलियारे को परिभाषित किया गया है और यह स्पष्ट किया गया है कि अधिग्रहण सरकार की ओर से या उसके किसी बोर्ड की ओर से किए जाएंगे। औद्योगिक गलियारा का दायरा राजमार्ग एवं रेलवे लाइन के एक किलोमीटर तक होगा और किसी निजी इकाई को देने के लिए अधिग्रहण नहीं होगा।

मंत्री ने कहा कि हमने सामाजिक आधारभूत संरचना शब्द को निकाल दिया है ताकि यह बात नहीं चली जाए कि अधिग्रहण के बाद कोई व्यक्ति कालेज एवं अस्पताल जैसे निजी संस्थाओं को खोल सकता है जो कारोबारी माडल है।