सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति संबंधी कानून में संशोधन करने वाले एक विधेयक को आज लोकसभा ने विरोध के बीच मंजूरी दे दी। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि इसका उद्देश्य चयन प्रक्रिया से विपक्ष को बाहर रखना है जिसका कि सरकार ने पूरी दृढता से इंकार किया। कार्मिक राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन (संशोधन) विधेयक 2014 को चर्चा के लिए पेश करते हुए इस बात पर जोर दिया था कि इसमें कोई ‘‘निहित स्वार्थ’’ नहीं है और इस संशोधन का उद्देश्य सीबीआई प्रमुख के चयन की प्रक्रिया को ‘सुगम’ बनाना है।
विधेयक में सीबीआई प्रमुख का चयन करने वाली तीन सदस्यीय चयन समिति में लोकसभा में मान्यता प्राप्त विपक्ष का नेता नहीं होने की स्थिति में सदन के सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को शामिल करने का प्रावधान किया गया है। चयन समिति में प्रधानमंत्री के अलावा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अन्य सदस्य हैं। तीसरे सदस्य के रूप में लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता होंगे।
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम में दूसरा संशोधन यह किया गया है कि चयन समिति में कोई स्थान रिक्त रहने या किसी के अनुपस्थित होने से सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति अमान्य नहीं होगी।
दिल्ली विशेष पुलिस स्थापन (संशोधन) विधेयक 2014 को हालांकि ध्वनिमत से पारित कर दिया गया लेकिन विधेयक को मत विभाजन के जरिये चर्चा के लिए मंजूरी दी गई। साथ ही विधेयक पर बीजू जनता दल के तथागत सतपथी की ओर से पेश संशोधिन प्रस्ताव को भी मत विभाजन के जरिये नामंजूर कर दिया गया।
कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार से इस विधेयक को वापस लेने और एक व्यापक संशोधन विधेयक पेश करने की मांग की। बीजद के तथागत सतपथी और उनके दल के भर्तृहरि महताब ने इसका समर्थन किया।
कांग्रेस नेता ने सरकार पर विपक्ष को कमजोर करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अगर इस को लाने के पीछे इरादा सबसे बड़े विपक्षी दल को बाहर रखने का है तो यह इरादा ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि हम झुकने वाले नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘सर कट जायेगा झुकने वाला नहीं।’’
संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि खड़गे की बात का विरोध करते हुए कहा कि कोई सिर कटने वाला नहीं है। लोकतंत्र में विपक्ष को मजबूत करना या नहीं करना यह जनता तय करती है। लोकतंत्र की भावना को ध्यान में रखकर हमने यह संशोधन विधेयक लाया है। नायडू ने यह भी कहा कि यह विधेयक सीबीआई के कामकाज को मजबूत बनाने के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि सरकार और संशोधन लाने पर बाद में विचार कर सकती है।
कार्मिक राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने इस बात को गलत बताया कि कोई अप्रत्याशित काम किया गया है या कोई निहित इरादा है। उन्होंने कहा कि इसी तरह के प्रावधान कुछ दूसरे कानूनों में भी है जिनमें राष्ट्रीय न्यायिक आयोग से संबंधित कानून भी शामिल है। बीजद के मेहताब का कहना था कि यह कानून शीर्ष अदालत की समीक्षा में नहीं टिक पायेगा। उनके दल के साथी सथपथी का कहना था कि इस कानून के भविष्य में दुरुपयोग होने की आशंका है।
मोइली ने कहा कि यह संशेधन लाने की बजाय सरकार सीधे सीधे सीबीआई प्रमुख के चयन के लिए सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को आमंत्रित कर सकती थी। उन्होंने कहा कि लेकिन सरकार ने इससे इंकार करके अड़ियल रूख अपना लिया। उन्होंने कहा कि ऐसा आचरण केवल तानाशाही में होता है लोकतंत्र में नहीं।
कांग्रेस नेता ने कहा कि इस तरह का आचरण करने से देश के लोकतांत्रिक संस्थानों के कामकाज पर दीर्घकालीन प्रतिकूल असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि विभिन्न संस्थान एक दूसरे के विरूद्ध खड़े हैं और सरकार कोई कार्रवाई करने के बजाय मजे ले रही है। उन्होंने कहा कि सीवीसी बनाम सीबीआई, उच्चतम न्यायालय बनान सीबीआई और सीबीआई बनाम सीबीआई की मोर्चा बंदी चल रही है। हम कहां जा रहे हैं।
जदयू के कौशलेन्द्र कुमार ने कहा कि सरकार दस प्रतिशत के आंकड़े से खेल रही है। उनका इशारा 543 सदस्यीय लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा पाने के लिए इस बार कांग्रेस सहित किसी दल को दस प्रतिशत सीट प्राप्त नहीं होने से था। उन्होंने कहा कि वैसे भी अंतत: यह पद कांग्रेस को ही जायेगा क्योंकि वह सबसे बड़ा विपक्षी दल है।
कांग्रेस अधीर रंजन चौधरी ने इस विधेयक के उस प्रावधान पर सख्त आपत्ति जताई जिसमें तीन सदस्यीय चयन समिति में से एक सदस्य की रिक्तता या अनुपस्थिति में भी सीबीआई के प्रमुख का चयन किया जा सकेगा और वह अमान्य नहीं होगा। वाईएसआर कांग्रेस के मिथुन रेड्डी और अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने भी चर्चा में हिस्सा लिया।