Lok Sabha Elections 2024 Expenditure Limit: लोकसभा चुनाव 2024 की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। चुनावी प्रक्रिया के दौरान चुनाव आयोग की यह जिम्मेदारी होती है कि सियासी दलों और उम्मीदवारों द्वारा खर्चे को मॉनिटर करे। चुनाव आयोग अपने पर्यवेक्षकों के जरिए और राज्य व केंद्रीय एजेंसियों चुनाव में किए जा रहे खर्चे पर नजर भी रखता है।
चुनाव में एक दल कितने रुपये खर्च कर सकता है, इसकी तो कोई सीमा नहीं है लेकिन लोकसभा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों के लिए यह रकम 95 लाख रुपये तय की गई है। इसी तरह विधानसभा चुनाव में एक प्रत्याशी 40 लाख रुपये तक खर्च कर सकता है। कुछ छोटे राज्यों और UTs में खर्चे की सीमा 75 लाख रुपये (लोकसभा चुनाव) और 28 लाख रुपये (विधानसभा चुनाव) तय की गई है।
समय – समय पर बढ़ती रही है खर्चे की सीमा
लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों द्वारा किए जाने वाले खर्चे की सीमा चुनाव आयोग समय – समय पर बढ़ाता रहा है। साल 2019 में एक प्रत्याशी लोकसभा चुनाव में 70 लाख रुपये और विधानसभा चुनाव में 28 लाख रुपये तक खर्च कर सकता था।
खर्चे में क्या- क्या शामिल है?
चुनाव आयोग एक प्रत्याशी को प्रचार के लिए बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टरों, बैनरों और वाहनों पर खर्च करने की कानूनी अनुमति देता है। सभी उम्मीदवारों को चुनाव खत्म होने के 30 दिनों के अंदर अपने खर्चे का विवरण चुनाव आयोग को देना जरूरी होता है। चुनाव आयोग अक्सर चुनाव में खर्च सीमा को संशोधित करता है। यह मुख्य रूप से कॉस्ट फैक्टर्स और वोटर्स की बढ़ती संख्या पर बेस्ड होता है।
साल 2022 में जब चुनाव आयोग ने आखिरी बार जब खर्चे की सीमा को संशोधित किया गया था, तब एक समिति बनाई थी और राजनीतिक दलों, मुख्य चुनाव अधिकारियों और चुनाव पर्यवेक्षकों से सुझाव आमंत्रित किए थे और पाया गया था कि 2014 के मुकाबले वोटर्स की संख्या और कॉस्ट इनफलेशन इंडेक्स में इजाफा हो रहा है।
कॉस्ट इनफलेशन इंडेक्स (CFI) का उपयोग मुद्रास्फीति की वजह से साल-दर-साल वस्तुओं की कीमतों में होने वाली वृद्धि का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। CFI 2014-15 में ‘240’ से बढ़कर 2021-22 में ‘317’ हो गई थी।
पहले लोकसभा चुनाव में क्या थी खर्च सीमा
साल 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में एक प्रत्याशी को 25,000 रुपये खर्चे करने की अनुमति थी जबकि उत्तर पूर्वी राज्यों में यह लिमिट 10,000 थी। साल 1971 तक खर्चे की इस लिमिट में कोई बदला नहीं किया। 1971 में ज्यादातर राज्यों के लिए यह लिमिट बढ़ाकर 35000 कर दी गई।
साल 1980 में खर्चे सीमा में फिर इजाफा किया गया है। 1980 में प्रत्याशियों को चुनाव में एक लाख रुपये तक खर्च करने की अनुमति दी गई। 1984 में यह सीमा कुछ राज्यों में बढ़ाकर 1.5 लाख कर दी गई है। छोटे राज्यों में खर्चे की सीमा 1.3 लाख थी। जिन राज्यों में एक या दो लोकसभा सीटें थीं, वहां प्रत्याशी को एक लाख रुपये खर्चे करने की अनुमति दी गई जबकि चंडीगढ़ जैसी UT में खर्चा की लिमिट 50 हजार तय की गई।
इसके बाद अगला बदलाव 1996 में किया गया। 1996 में खर्चे की सीमा को तीन गुना बढ़ाकर 4.5 लाख रुपये कर दिया गया। 1998 के चुनाव में यह सीमा बढ़ाकर 15 लाख और फिर 2004 में 25 लाख रुपये कर दी गई। चुनाव खर्च सीमा में अगला बदलाव 2014 में किया गया और चुनाव में खर्च की जाने वाली धनराशि दोगुने से ज्यादा बढ़ाकर 70 लाख रुपये कर दी गई।
जिला लेवल पर चुनाव आयोग तय करता है वस्तुओं के दाम
डिस्ट्रिक्ट लेवल राज्य चुनाव आयोग चुनाव में खर्चे के लिए कई वस्तुओं की रेट लिस्ट प्रकाशित करते हैं। इस लिस्ट में उम्मीदवारों के लिए आवास, ट्रांसपोर्ट और होर्डिंग से लेकर टेंट, माला, झंडे और रैलियों के लिए भोजन तक शामिल है। अभी फिलहाल ज्यादातर जिलों ने अभी अपनी वेबसाइटों पर रेट लिस्ट प्रकाशित नहीं की है। उदाहरण के लिए जबलपुर चुनाव में चाय, कॉफी और बिस्किट पर होने वाला खर्चे की कीमत 7 रुपये से ज्यादा नहीं हो सकती जबकि भोजन की एक थाली पर 97 रुपये तक ही खर्च किए जा सकते हैं।
सियासी दलों का खर्चा भी बढ़ रहा है
चुनाव में सियासी दलों के खर्चे में भी इजाफा हो रहा है। 2019 में चुनाव के दौरान 32 राष्ट्रीय और राज्य के दलों द्वारा आधिकारिक तौर पर खर्च किए गए कुल 2,994 करोड़ रुपये में से 529 करोड़ रुपये एकमुश्त राशि के रूप में उम्मीदवारों को दिए गए थे। ADR का एक विश्लेषण बताता है कि सांसदों की अपनी घोषणा के अनुसार, पांच राष्ट्रीय दलों के 342 विजयी उम्मीदवारों को कुल मिलाकर 75.6 करोड़ रुपये मिले। 2009 में, छह राष्ट्रीय दलों के 388 सांसदों ने कुल 14.2 करोड़ रुपये प्राप्त करने की जानकारी दी थी।