मोदी-शाह को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामले में क्लीन चिट दिए जाने का विरोध करने वाले निर्वाचन आयुक्त ने आयोग को लेकर कई खुलासे किए हैं। निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच के मामले में देरी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इस संबंध में शिकायतों का पारदर्शी तरीके और समयबद्ध निस्तारण करने का निर्देश दिया था।

15 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण के मामले में नेताओं के खिलाफ कार्रवाई पर पूछा था कि क्या निर्वाचन आयोग सवालों की तलाश कर रहा है।  इसके बाद ही चुनाव आयोग ने बसपा प्रमुख मायावती, सपा नेता आजम खान और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ, भाजपा सांसद मेनका गांधी के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पणी के लिए चुनाव प्रचार पर अस्थायी प्रतिबंध का आदेश जारी किया था।

अशोक लवासा ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के इस रुख के तीन दिन बाद ही मैंने आदर्श आचार संहिता के मामले से निपटने की प्रक्रिया को मजबूत और सुचारू करने के लिए नोट लिखा था। इसके बावजूद इस दिशा में कार्रवाई नहीं हुई। उन्होंने कहा कि अपनी सलाह पर कार्रवाई नहीं होने के विरोध में ही मैंने आदर्श आचार संहिता पर होने वाली बैठकों में शामिल होने से इनकार कर दिया था।

मंगलवार को निर्वाचन आयोग की होने वाली बैठक की पूर्व संध्या पर अशोक लवासा ने अपने उस बात को सही ठहराया जिसमें उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग के अंतिम फैसलों में अल्पसंख्यक मत को भी शामिल किया जाना चाहिए। लवासा ने कहा, ‘यदि निर्वाचन आयोग का निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जाता है तो उसमें यदि आप अल्पसंख्यक का मत शामिल नहीं करते हैं तो उस मत का क्या मतलब रह जाता है?’ सभी बहु सदस्यीय और वैधानिक संस्थाओं के काम करने की प्रक्रिया निर्धारित है।

चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय हौ और इसे इस प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। सबसे पहले इंडियन एक्सप्रेस ने ही खबर दी थी कि अशोक लवासा ने पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को आदर्श आचार संहिता के मामले में क्लीन चिट दिए जाने का 5 अवसरों पर विरोध किया था। इससे पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने कहा था कि निर्वाचन आयोग के सभी सदस्यों के मत अलग-अलग हो सकते हैं। इस विवाद से बचा जा सकता था।