कोरोना विषाणु संक्रमण के प्रकोप को फैलने से रोकने के लिए देश में 21 दिन की पूर्णबंदी लगाई गई है जिसके छह दिन बीत गए हैं। ऐसे में कैबिनेट सचिव का कहना है कि इस बंदी को आगे बढ़ाया जाएगा या नहीं इसके बारे में अभी कुछ भी नहीं सोचा गया है। विषाणु विज्ञानी और विशेषज्ञों का मानना है कि इस बंदी से कोरोना विषाणु संक्रमण के प्रसार की रफ्तार को कुछ दिनों के लिए कम करना है। इससे सरकार और स्वास्थ्य एंजसियों को इस बीमारी से लड़ने की तैयारी का समय मिल रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि संक्रामक बीमारियों से लड़ने में पूर्णबंदी एक बेहतर उपाय है और इसका सकारात्मक असर भी देखा गया है।
भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु के विषाणु विज्ञानी डॉ शशांक त्रिपाठी ने बताया कि देश में पूर्णबंदी का निर्णय अन्य देशों के अनुभवों के आधार पर लिया गया। यह फैसला संक्रामक बीमारी को तेजी से फैलने से रोकने में सबसे बेहतर उपाय है। उन्होंने बताया कि बंदी से संक्रमण के फैलने की रफ्तार में कमी आएगी न कि यह संक्रमण पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। संक्रमण फैलने की गति में कमी आने से सरकार को आगे आने वाली परिस्थितियों के लिए तैयारी का समय मिल जाएगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) दिल्ली के बायोलॉजिकल साइंस के प्रोफेसर बिस्वजीत कुंदू ने अपनी व्यक्तिगत राय में कहा कि कोरोना विषाणु संक्रमण को राकने के लिए पूर्णबंदी से अच्छा कोई उपाय नहीं है। यह सोच-समझकर लिया गया निर्णय है। उन्होंने बताया कि इस विषाणु का इंक्यूबेशन पीरियड 12 से 14 दिन है और अगर संक्रमित व्यक्ति में लक्षण आने होंगे तो 21 दिन में आ जाएंगे। उन्होंने कहा कि अगर इस 21 दिनों के दौरान सभी संक्रमित व्यक्ति को पृथक करके इलाज किया जाता है तो इसके संक्रमण को काफी हद तक रोका जा सकता है। प्रोफेसर कुंदू ने बताया कि हमारे देश में अभी बहुत कम जांच हो रही हैं। इन्हें बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सही तरह से जांच होगी तो संक्रमितों की संख्या काफी अधिक होगी।
जीन इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी अंतरराष्ट्रीय केंद्र, दिल्ली के विज्ञानी नील सरोवर भावेश ने बताया कि पूर्णबंदी के दौरान विषाणु के प्रसार पर रोक लगेगी और साथ में सरकार को व्यवस्थाएं सही करने का मौका भी मिलेगा। इससे उन क्षेत्रों का भी पता चलेगा जहां यह विषाणु तेजी से फैल रहा है। ऐसे में बाद में उन क्षेत्रों को पहचान कर बंद किया जा सकता है। नील ने बताया कि बंदी विषाणु का इलाज नहीं है। इलाज तो दवाई ही होती है। यह रोकने का प्रयास है। उनका कहना है कि वर्तमान परिस्थितियों में हमारे देश के पास पूर्णबंदी के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं था।
डॉक्टर त्रिपाठी का कहना है कि भारत की अधिक जनसंख्या और कम सुविधाओं की वजह से हमने दक्षिण कोरिया या सिंगापुर के मॉडल नहीं अपनाया। इन देशों ने एक सप्ताह के अंदर अपने अधिकतर नागरिकों की जांच पूरी कर ली और जिन्हें लक्षण दिखे उन्हें पृथक करके इलाज करना शुरू कर दिया। 130 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले देश में ऐसा करना एक सप्ताह में संभव नहीं था। क्योंकि जांच की सुविधाओं में सरकार ने काफी बढ़ोतरी कर ली है, अब बड़ी संख्या में लोगों की जांच संभव है।
डॉ त्रिपाठी ने कहा कि अभी इस बात का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है कि 21 दिन की बंदी के बाद भी कुछ दिनों की बंदी की आवश्यकता होगी। यह नया विषाणु है और इसके बारे में हर रोज नई-नई चीजें सामने आ रही हैं। उन्होंने कहा कि अभी बंदी का एक सप्ताह होने वाला है और जिस हिसाब से मामले नियंत्रित हैं, वह बंदी के सकारात्मक पक्ष को ही दिखाता है।
गरमी में प्रसार कम हो सकता है
प्रोफेसर कुंदू ने बताया कि कोरोना विषाणु के ऊपर पॉटीन और लिपिड होता है। साबुन से यह लिपिड खुल जाता है और उसकी वजह से यह विषाणु नष्ट हो जाता है। गरमी में पॉटीन की संरचना खराब हो जाती है जिसकी वजह से विषाणु नष्ट हो जाता है। डॉ त्रिपाठी ने बताया कि विषाणु संक्रमण गरमी में कम होता है। ऐसे में माना जा रहा है कि कोरोना विषाणु संक्रमण का प्रसार भी गरमी में कम हो सकता है। हालांकि इसके बारे में हमारे पास कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। उन्होंने बताया कि लेकिन ऐसा नहीं है कि गरमी आने के बाद यह विषाणु खत्म हो ही जाएगा।
