इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में साफ किया है कि यदि कोई महिला और पुरुष वयस्क हैं और उन्होंने शादी नहीं की है, तो भी वे अपनी मर्जी से साथ रह सकते हैं। कोर्ट ने इसे संविधान के तहत मिलने वाला अधिकार बताया और पुलिस को ऐसे मामलों में सुरक्षा देने का निर्देश दिया है।

याचिका में बताया गया है कि 2018 से साथ रह रहे हैं दोनों

यह फैसला एक अंतरधार्मिक जोड़े के 1 साल 4 महीने (यानी सोलह महीने) के बच्चे की याचिका पर आया। याचिका में बच्चे की ओर से कहा गया कि उसके माता-पिता ने भले ही शादी न की हो, लेकिन वे 2018 से साथ रह रहे हैं और उसी रिश्ते से उसका जन्म हुआ है। बच्चे की दलील थी कि उसकी परवरिश के लिए मां और पिता का साथ रहना जरूरी है।

मामला तब अदालत तक पहुंचा जब महिला ने आरोप लगाया कि उसके ससुराल पक्ष की तरफ से उसे और उसके साथी को लगातार धमकियां मिल रही हैं। कई बार उन पर हमला करने की कोशिश भी की गई, लेकिन पुलिस ने न तो एफआईआर दर्ज की और न ही कोई ठोस कार्रवाई की।

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इस पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस शेखर सर्राफ और जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित शामिल थे, ने कहा कि भारत के संविधान के तहत वयस्कों को अपनी इच्छा से साथ रहने का अधिकार है, चाहे उन्होंने शादी की हो या नहीं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में पुलिस को तुरंत एफआईआर दर्ज करनी चाहिए और यदि पीड़ित पक्ष सुरक्षा चाहता है, तो वह भी प्रदान की जानी चाहिए।

हाईकोर्ट का यह फैसला केवल इस परिवार के लिए राहत नहीं है, बल्कि यह लिव इन रिलेशनशिप, बच्चों के अधिकार और अंतरधार्मिक जोड़ों से जुड़े मामलों में भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।

कोर्ट ने संभल जिले के एसपी को निर्देश दिया कि मामले में एफआईआर दर्ज की जाए और यदि महिला और पुरुष सुरक्षा की मांग करें, तो उन्हें और उनके बच्चे को सुरक्षा दी जाए। कोर्ट ने साफ किया कि पुलिस को इस आदेश का पालन अनिवार्य रूप से करना होगा।

महिला की ओर से दी गई याचिका में यह भी बताया गया कि उसके पहले पति की मृत्यु के बाद उसने नए रिश्ते की शुरुआत की और इसी रिश्ते से बच्चा पैदा हुआ। अब जब उस रिश्ते को खतरा है, तो महिला और पुरुष ने अदालत से साथ रहने का अधिकार और धमकी देने वालों से सुरक्षा की मांग की थी।