Lenskart Story: ऑनलाइन चश्मा बेंचने वाली कंपनी Lenskart की गिनती देश के सफल स्टार्टअप्स में होती है। साल 2010 में बनी यह कंपनी 2.5 बिलियन डॉलर की हो चुकी है। कंपनी ने मार्च 2022 तक 2000 से अधिक लोगों को नौकरियां देने का ऐलान किया है। देश के महानगरों से लेकर मध्यम व छोटे शहरों तक पहुंचने के बाद अब Lenskart सिंगापुर, पश्चिम एशिया और अमेरिका में भी अपनी टीम को बढ़ा रही है। इस कंपनी का फॉर्मेट जितना अनोखा है, उतनी ही दिलचस्प इसकी कहानी भी है।
लेंसकार्ट की शुरुआत साल 2010 में पीयूष बंसल (Peyush Bansal) ने की थी। पीयूष साल 2007 तक यूएस में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में एक अच्छे पैकेज की नौकरी कर रहे थे। बढ़िया सैलेरी के बावजूद पीयूष कुछ अलग करना चाहते थे। IIM बैंगलोर से पढ़ाई करने के बाद उनके मन में तमाम आइडियाज थे, लेकिन नौकरी के साथ वह उन पर काम नहीं कर पा रहे थे। 2007 में पीयूष ने तय किया कि अब अपने देश जाकर सपनों को उड़ान देंगे। उनके इस फैसले से परिवार और दोस्त हैरान थे, काफी समझाने के बाद पीयूष नहीं माने और हिंदुस्तान आ गए।
बिजनेस स्टडीज के स्टूडेंट रहे पीयूष ने अपना स्टार्टअप शुरू करने से पहले रिसर्च करना शुरू किया। वह ऑनलाइन चश्मा बेचना चाहते थे लेकिन उनके पास इस काम का अनुभव नहीं था। उन्होंने बिजनेस से जुड़े सभी पहलुओं का कैलकुलेशन किया, यही कारण था कि उनका प्रयोग सफल रहा। दिल्ली के रहने वाले पीयूष ने कनाडा से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है।
पीयूष, जब भारत लौटे तो यहां उस वक्त ई-कॉमर्स का बाजार पनप रहा था। मार्केट को समझने के लिए उन्होंने एक क्लासिफाइड वेबसाइट ‘सर्च माइ कैंपस’ शुरू की। यहां छात्रों को किताबें, हॉस्टल, पार्ट टाइम जॉब और कारपुल जैसी चीजें ढूंढने में मदद की जाती थी। तीन साल तक पीयूष इस प्रोजेक्ट पर काम करते रहे और इसके जरिए इंडियन कस्टमर का बिहेवियर और रिक्वायरमेंट रीड करते रहे।
तीन साल बाद ग्राहकों की जरूरतों को समझते हुए पीयूष बंसल ने चार अलग-अलग वेबसाइट्स लॉन्च की। इनमें से आईवियर एक थी। बाकी की तीन कंपनियां यूथ को टारगेट करते हुए ज्वेलरी, घड़ी और बैग्स की थी। रिस्पॉन्स को देखते हुए उन्होंने आईवियर पर फोकस किया और लेंसकार्ट की सफलता यहीं से शुरू होने लगी।
लोकल-ग्लोबल के कॉन्सेप्ट को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने देश के छोटे बड़े शहरों में आउटलेट्स खोलने शुरू किए, जहां हर रेंज के चश्मों के साथ आंखों के चेकअप की सुविधा भी दी जाने लगी। साथ ही इन चश्मों को ऑनलाइन मार्केट में बेचना शुरू किया गया और ‘आई टेस्ट एट योर होम’ कॉन्सेप्ट को भी पहचान दिलाई। उनके इस यूनिक कॉन्सेप्ट को देखते हुए कई इंवेस्टर्स मिले। जिसमें केकेआर, सॉफ्टबैंक विजन फंड, प्रेमजीइन्वेस्ट और आईएफसी शामिल हैं।
एक इंटरव्यू के दौरान पीयूष ने बताया कि वह रिस्क लेने से नहीं डरते हैं और न ही फैसला लेने देर लगाते हैं। इसलिए मौके उनके हाथों से निकलते नहीं हैं। उनका मानना है कि अगर टीम मेंबर्स के बीच जिम्मेदारियां बांट दी जाएं और समय पर उन्हें अप्रिशियेट किया जाए तो टीम की प्रोडिक्टिविटी बढ़ जाती है।