मोहाली की जिला अदालत ने गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई को 13 साल पुराने एक मामले में बरी कर दिया है। मारपीट से जुड़े इस मामले को लेकर अदालत ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन लॉरेंस बिश्नोई का दोष साबित करने में विफल रहा। ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (फर्स्ट क्लास) नेहा जिंदल ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन आरोपों को साबित करने में बुरी तरह से विफल रहा।
उन्होंने ऑब्जर्व किया, “लॉरेंस बिश्नोई के खिलाफ कोई सबूत मौजूद नहीं है।” उन्होंने कहा कि प्रॉसिक्यूशन आरोपों को साबित करने में विफल रहा है, इसलिए आरोपी को बरी किया जाता है। उसके बेल बांड्स को डिस्चार्ज कर दिया गया है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि दो सह – आरोपी नवप्रीत सिंह उर्फ नितार और तरसेम सिंह उर्फ साहिबा को ‘घोषित अपराधी’ घोषित किया गया था और वो ट्रायल का सामना नहीं कर रहे थे। उनके केस उनकी गिरफ्तारी या वॉलंटियरी सरेंडर के बाद निपटाए जाएंगे। ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (फर्स्ट क्लास) नेहा जिंदल के फैसले में स्पष्ट किया गया है कि लॉरेन्स बिश्नोई को बरी करने के फैसले से घोषित अपराधियों के खिलाफ भविष्य की कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी।
‘कच्चा चबा जाऊंगा बे, तेरी अकड़…’, अब पप्पू यादव-लॉरेंस के गुर्गे का AUDIO आया सामने
गवाह लॉरेंस बिश्नोई को पहचान नहीं पाए
कोर्ट में प्रॉसिक्यूशन कीतरफ से दो चश्मदीदों – शिकायती सतविंदर सिंह और चश्मदीद कविन सुशां को को पेश किया गया। ये दोनों ही कोर्ट में अपने बयान से पलट गए और लॉरेंस बिश्नोई को पहचानने में असफल रहे।
ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (फर्स्ट क्लास) नेहा जिंदल ने फैसले में आपराधिक मुकदमे में आरोपी की पहचान स्थापित करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “बिना स्पष्ट पहचान के किसी भी व्यक्ति पर केस नहीं लगाया जा सकता। चूंकि शिकायतकर्ता और प्रत्यक्षदर्शी ने प्रॉसिक्यूशन का समर्थन नहीं किया, इसलिए अन्य औपचारिक गवाहों की आगे की जांच निरर्थक होगी।”
क्या था मामला?
अपनी गवाई में सतविंदर सिंह ने साल 2011 की घटना को याद करते हुए बताया, “फरवरी 2011 में मैं अपने दोस्त कविन के साथ घर पर था, जब छह हथियारबंद लोग बोलेरो कार में आए और मुझ पर हमला किया, जिससे मेरी कलाई, उंगली और पीठ पर चोटें आईं। हालांकि, मैं हमलावरों की पहचान नहीं कर सका, न ही मैं कोर्ट में आरोपी को पहचान सका।”
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट ने टिप्पणी की, “यह गवाह लॉरेंस बिश्नोई को पहचानने में विफल रहा है।” इसके बाद कोर्ट ने लॉरेंस बिश्नोई को संदेह का फायदा देते हुए, उसे बरी कर दिया।