यूपीएसी ने एक विज्ञापन जारी कर कहा कि लेटरल एंट्री के जरिए सरकार में कई अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी। इस लेटरल एंट्री को लेकर ही सारा विवाद शुरू हो गया है। असल में जब लेटरल एंट्री के जरिए अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी तो उसमें यूपीएसी की परीक्षा देने की कोई जरूरत नहीं। इसके ऊपर किसी तरह का आरक्षण भी यहां लागू नहीं होता है। ऐसे में समान अवसर हर जाति और वर्ग के आदमी को मिलता है।

लेटरल एंट्री: कांग्रेस का क्या कहना है?

अब इसी लेटरल एंट्री को लेकर एक विवाद शुरू हुआ है। कांग्रेस का आरोप है कि सरकार अगर लेटरल तरीके से ही अधिकारियों की नियुक्ति करेगी, उस स्थिति में ओबीसी, एसी-एसटी वर्ग वाला आरक्षण प्रभावित हो जाएगा, इस समाज से आए लोगों को अधिकारी बनने का मौका नहीं मिलेगा। अब कई दिनों तक कांग्रेस इस बात को लेकर हमलावर रही, लेकिन अब बीजेपी ने भी आक्रमक रवैया अपना लिया है। पार्टी की तरफ से दो बिंदुओं को आधार बनाकर कांग्रेस पर निशाना साधा जा रहा है।

लेटरल एंट्री को लेकर क्या है विवाद

लेटरल एंट्री पर बीजेपी की सफाई

असल में बीजेपी का कहना है कि लेटरल एंट्री की प्रथा कोई आज की नहीं है बल्कि कांग्रेस राज में ही इसकी शुरुआत हो गई थी। दूसरा प्वाइंट यह है कि एक जमाने में मनमोहन सिंह से लेकर रघुराम राजन तक की सरकारी पदों के लिए लेटरल एंट्री हुई है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस बारे में विस्तार से बताया है। उनके मुताबिक 1971 में जब मनमोहन सिंह को विदेश मंत्रायल में आर्थिक सलाहकार बनाने की बात आई थी, तब उनकी लेटरल एंट्री ही करवाई गई। इसके अलावा अश्निनी वैष्णव ने सैम पित्रोदा, वी कृष्णमूर्ति, बिमल जालान, रघुराम राजन के नामों का भी जिक्र किया है। जोर देकर कहा गया है कि यह कांग्रेस का दोगलापन है कि वो इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है।

लेटरल एंट्री का पूरा कॉन्सेप्ट समझिए

वैसे लेटरल एंट्री को लेकर यह बात समझना जरूरी है कि इस प्रक्रिया से आए हुए लोग केंद्रीय सचिवालय का हिस्सा होंगे, जिसमें उस समय तक केवल अखिल भारतीय सेवाओं/केंद्रीय सिविल सेवाओं से आने वाले नौकरशाह ही सेवा दे रहे थे। लेटरल एंट्री से आने वाले लोगों को तीन साल के कांट्रेक्ट पर रखा जाएगा जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है।

पहले भी हुई लेटरल एंट्री से नियुक्ति?

सिफारिश के आधार पर, लेटरल एंट्री के जरिये पहली बार 2018 में खाली पदों के लिए विज्ञापन जारी किए गए लेकिन तब केवल ज्वाइंट सेक्रेट्री स्तर के पदों के लिए ही लोगों की मांग की गई थी। इसके बाद डायरेक्टर और डिप्टी सेक्रेट्री के पद भी इसमें शामिल किए गए। कैबिनेट की नियुक्ति समिति (एसीसी) द्वारा नियुक्त किये गये ज्वाइंट सेक्रेट्री, किसी भी विभाग में तीसरे सबसे बड़े ओहदे (सचिव और अतिरिक्त सचिव के बाद) पर होते हैं। ज्वाइंट सेक्रेट्री विभाग में एक विंग के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में काम करते हैं।