प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपीएसी के उस विज्ञापन पर रोक लगाने का फैसला किया जिसके जरिए लेटरल एंट्री की अनुमति दी गई थी। असल में बिना यूपीएसी की परीक्षा दिए ही कुछ पदों पर अधिकारियों की भर्ती होनी थी। लेकिन विपक्ष ने इसे आरक्षण विरोधी फैसला बताया, एनडीए के कुछ सहयोगियों ने भी आपत्ति जाहिर की और उसी वजह से फैसला वापस लेना पड़ा। अब एनडीए सरकार को तो जरूर घेरा जा रहा है, लेकिन कांग्रेस अपने कार्यकाल को भूल चुकी है या उसे याद नहीं करना चाहती है।

लेटरल एंट्री: नहीं भूलना चाहिए मनमोहन सरकार का फैसला

असल में यूपीए 2 के दौरान ही लेटरल एंट्री के जरिए 10 फीसदी जूनियर पदों पर नियुक्ति की बात कही गई थी। यानी कि तब मनमोहन सरकार खुद ऐसा मानती थी कि इस लेटरल भर्ती के जरिए कम समय में जरूरी नियुक्तियां हो सकती हैं। उस समय तो ना आरक्षण विरोधी वाला कोई नेरेटिव था ना ही कोई दूसरा बड़ा बवाल देखने को मिला। इंडियन एक्सप्रेस ने जब पुराने रिकॉर्ड खंगाले तो पता चला कि 2011 में मनमोहन सरकार ने ज्वाइंट सेकरेट्री के 10 फीसदी पदों को भरने के लिए लेटरल एंट्री के भर्ती को पूरा करने का प्रपोजल दिया था। असल में तब सिक्सथ सेंट्रल पे कमीशन ने ही सुझाव दिया था कि छोटे पदों पर लेटरल एंट्री के जरिए भी भर्तियां की जा सकती हैं।

तीसरे कार्यकाल में बदले-बदले से PM मोदी

2017 में लेटरल एंट्री को लेकर मोदी ने क्या फैसला लिया?

इसके बाद दो साल तक यह मामला ठंडा रहा, लेकिन फिर 2013 में Department of Expenditure और यूपीएसी ने सिक्सथ पे कमीशन के सुझावों पर मंथन किया और उसी आधार पर नियुक्तियां करने पर विचार किया। लेकिन सरकार के ही पुराने आंकड़े बताते हैं कि लोगों ने उस योजना को लेकर ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया और उस समय यह लेटरल एंट्री वाली प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई। इसके बाद 2017 में फिर यही लेटरल एंट्री वाला मुद्दा सुर्खियों में आया।

किन कानूनी चुनौतियों का सामना किया?

मोदी सरकार ने भी इस योजना पर विचार किया और इस तरह से नियुक्तियों को हरी झंडी दिखाने का फैसला लिया। बताया गया कि 2017 में पीएमओ की एक अहम मीटिंग हुई और उसमें ही हर पहलू पर मंथन हुआ। शुरुआती दिनों में फैसला लिया गया कि इन नियुक्तियों को यूपीएसी से बाहर रखा जाएगा। यहां तक कहा गया था कि कैबिनेट सेकरेट्री अपनी कमेटी बनाएंगे जो इस तरह की हायरिंग करेंगे। लेकिन फिर एक कानूनी पेच फंसा और सरकार को बताया गया कि UPSC (Exemption from Consultation) Regulation में बदलाव करने पड़ेंगे। ऐसे में मंथन करने के बाद लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती की जिम्मेदारी यूपीएसी को ही सौंप दी गई।

अभी क्या स्थिति चल रही है?

2018 तक में तो ऐसे प्रपोजल चल रहे थे कि यूपीएसी एक बार में सिर्फ किसी एक ही व्यक्ति की सिफारिश ऐसी नियुक्तियों के लिए करेगी और दो अन्य को रिजर्व रखा जाएगा। लेकिन अभी के लिए ना उस योजना को हरी झंडी मिली है और ना ही लेटरल एंट्री के जरिए भर्तियां हो पाई हैं।

 Jay Mazoomdaar की रिपोर्ट