बाल मजदूरी को लेकर गुजरात से चौंकाने वाले आंकड़ें सामने आए हैं। प्रदेश में पिछले पांच सालों में जगह-जगह छापेमारी कर रिकॉर्ड 1,269 बच्चों को बाल मजदूरों की कैद से आजाद कराया गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में सबसे अधिक बाल मजदूरी की घटनाएं सूरत जिले से सामने आईं। यहां कुल बचाए गए बच्चों में अकेले 38 फीसदी से ज्यादा बच्चे इसी जिले में मिले।
साल 2013 से 2018 के बीच गुजरात में चाइल्ड लेबर एक्ट (1986) के तहत 2,997 जगह छापेमारी की गई। मनसा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक सुरेशकुमार पटेल द्वारा लिखित में सवाल के जवाब में गुजरात सरकार ने लिखित में इस बात की जानकारी दी। इसके मुताबिक 1 अक्टूबर 2013 से 30 सितंबर 2018 के बीच सबसे ज्यादा छापेमारी वडोदरा (146), अहमदाबाद (137) और सूरत (129) में की गईं।
छापेमारी के दौरान रिकॉर्ड सबसे ज्यादा 490 बच्चे सूरत से बचाए गए जबकि इस मामले में अहमदाबाद दूसरे स्थान पर रहा, जहां से 157 बच्चों को बाल मजदूरी की कैद से आजाद कराया गया। लिस्ट में तीसरे नंबर 117 बच्चों के साथ राजकोट तीसरे नंबर रहा। खास बात है कि इस जिले में एक साल के भीतर यानी अक्टूबर-सितंबर 2018 के बीच 80 बच्चों को बाल मजदूरी कैद से आजाद कराया गया।
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गुजरात सरकार में श्रम और रोजगार विभाग के अतिरिक्त महासचिव विपुल मित्रा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘हर एक जिले में एक सेल है जो छापेमारी करती है। आमतौर पर सड़क के किनारे ढाबे या भोजनालयों में अधिक संख्या में बाल श्रमिकों को रोजगार मिलता है।’ उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ बच्चे टेक्सटाइल यूनिट में मजदूरी कर रहे थे।
बता दें कि गुजरात में बाल श्रमिकों को रोजगार देना जारी है, इसके बावजूद मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने राज्य से बाल श्रम का सफाया करने के लिए 2015 में बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था।
गंतर के सुखदेव पटेल (गुजरात में बाल अधिकारों के लिए काम करने वाला एक गैर सरकारी संगठन) बताते हैं कि राज्य सरकार के “साहियारी कूच” चलाने के बावजूद, जिसमें 14 साल से कम उम्र के बच्चों को रोजगार देने के खतरे को दूर करने की एक पहल की गई गई, गुजरात में बाल श्रम ‘प्रचलित है।