ललित मोदी विवाद में फंसीं राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का भाजपा हाईकमान और संघ दोनों ही बचाव नहीं करना चाहते हैं। उनके बारे में अब तक हुए खुलासे को लेकर वे दोनों काफी नाराज हैं और उनका मानना है कि राजे अपनी लड़ाई खुद लड़ें। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने उनकी सफाई सुनने से इनकार कर दिया है व अपने समर्थक विधायकों को दिल्ली न भेजने की हिदायत दी है।
बुधवार की रात वसुंधरा राजे ने फोन पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से बात कर अपनी सफाई देने की कोशिश की थी। लेकिन शाह ने फोन पर आने से इनकार कर दिया। इसके बाद हाईकमान पर दबाव बनाने के लिए जब उन्होंने अपने समर्थक विधायकों को दिल्ली भेजने की कोशिश की तो उन्हें ऐसा न करने के लिए आगाह कर दिया गया। जयपुर में उनके प्रवक्ता ने बयान जारी करके इस बात से इनकार किया कि वे अध्यक्ष से बात करना चाहती थीं व विधायकों को दिल्ली भेज रही थीं।
पार्टी ने प्रवक्ताओं को निर्देश दिया है कि वे मुख्यमंत्री का बचाव करने के लिए किसी चैनल पर न जाएं और न ही कोई बयान दें। हालांकि इससे पहल सुषमा स्वराज के बचाव के लिए भाजपा के दो वरिष्ठतम मंत्री अरुण जेटली व राजनाथ सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस की थी। जबकि बुधवार को रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि मामले में अभी दस्तावेजों की प्रमाणिकता की पुष्टि नहीं हुई है।
वसुंधरा के बारे में जो तथ्य सामने आए हैं उसके बाद सुषमा स्वराज का मामला हल्का पड़ गया है। भाजपा नेतृत्व का मानना है कि ललित मोदी ने वसुंधरा राजे के बारे में जो तथ्य दिए हैं उसके बाद उनका बचाव कर पाना आत्मघाती साबित होगा। खास तौर से इस खुलासे के बाद कि उनके पक्ष में लंदन में दिए गए हलफनामे में वसुंधरा का यह कहना कि वे इस शर्त पर इसे दे रही हैं कि इसे भारत सरकार को न बताया जाए। इससे पार्टी की राष्ट्रभक्ति की छवि को धक्का पहुंचा है।
भाजपा के एक मंत्री के मुताबिक, ललित मोदी से उनके संबंधों व उनके उन पर किए अहसानों के बारे में सबको पता था। ललित मोदी कब क्या नया खुलासा करके उनकी व पार्टी की फजीहत करवा दें कुछ नहीं कहा जा सकता। उनके बेटे की कंपनी का दस रुपए का शेयर 96000 रुपए से अधिक के प्रीमियम पर खरीदने के बाद अब बचाव करने के लिए बचता ही क्या है। यह मामला तो रॉबर्ट वाड्रा जैसा ही है।

वसुंधरा राजे को ताकतवर बनाने में लालकृष्ण आडवाणी व प्रमोद महाजन का हाथ रहा था। वे इतनी ताकतवर हो गर्इं कि उन्होंने भाजपा तो क्या संघ तक की अनदेखी करनी शुरू कर दी। संघ के करीबी रहे वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी को मंत्री तक नहीं बनाया। ललित किशोर चतुर्वेदी, गुलाब चंद कटारिया को हाशिए पर ले आर्इं। हाल ही में चतुर्वेदी का निधन हो गया था।
ललित मोदी वसुंधरा राजे की पिछली सरकार में इतने ताकतवर हो गए थे कि वे रामबाग पैलेस होटल से ही सरकार चलाने लगे थे। वे घंटों मंत्रियों को इंतजार करवाते थे। ललित मोदी को बीसीसीआइ तक पहुंचाने के लिए राजे ने कानून तक बदल डाला और उन्हें राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनाया। जब वसुंधरा विपक्ष की नेता थीं तो उन पर ज्यादातर वक्त लंदन में ही रहने के आरोप लगते थे।
वसुंधरा ने अपनी शर्तों पर राज किया। जब भाजपा संसदीय बोर्ड ने रमेश पोखरियाल निशंक को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री व उन्हें विपक्ष के नेता पद से हटाने के फैसले किए तो निशंक ने इस्तीफा दे दिया। लेकिन वसुंधरा ने हटने से साफ इनकार कर दिया। हाईकमान को यह संकेत देने की कोशिश की कि वे अपने समर्थक विधायक लेकर अलग क्षेत्रीय दल बना लेंगी। उस समय राजनाथ सिंह पार्टी अध्यक्ष थे।
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पिछले चुनाव के दौरान मोदी व उनके बीच दूरी बढ़ने लगी। मोदी ने अरुण जेटली व राजस्थान के प्रभारी भूपेंद्र यादव पर टिकट बेचने के आरोप लगाए। चुनाव आने के बाद वसुंधरा ने बयान दिया कि सिर्फ मोदी लहर के कारण ही आम चुनाव नहीं जीता गया है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के विरोध पर हाईकमान नजर रखे हुए है। अगर हालात खराब हुए और मुख्यमंत्री बदलने की जरूरत पड़ी तो ओम माथुर उम्मीदवार बन सकते हैं।
दूसरी तरफ गुरुवार को राजस्थान में प्रदेश भाजपा की भीतरी राजनीति में खासी हलचल रही। केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से बढ़ते दबाव के बीच ही सूबे में संसदीय कार्य मंत्री राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि पार्टी और सरकार वसुंधरा राजे के साथ है। प्रदेश भाजपा में राठौड़ को मुख्यमंत्री का करीबी मंत्री माना जाता है। लेकिन भाजपा सूत्रों का कहना है कि इस बार केंद्रीय नेतृत्व बदला हुआ है और उसके वसुंधरा राजे से मधुर संबंध भी नहीं है। इसलिए वसुंधरा राजे अपने कदम सोच-समझ कर उठा रही हैं। राजे को मालूम है कि मौजूदा नेतृत्व किसी दबाव में आने वाला नहीं है। प्रदेश भाजपा के पदाधिकारियों ने मौन साध लिया है।