लखीमपुर खेरी मामले के आरोपी आशीष मिश्रा की जमानत को लेकर हो रही सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछा कि क्या हत्या के हर मामले के आरोपी को एक साल की कस्टडी के बाद जमानत मिल जाती है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से पूछा था कि वो कितने समय में लखीमपुर मानले की सुनवाई को पूरा कर लेगी।
सुनवाई के दौरान दुष्यंत दवे करा कहना था कि अगर सुप्रीम कोर्ट हत्या करे हर मामले में आरोपियों को एक साल की कस्टडी के बाद रिहा करने का नियम बना दे तो वो सिर झुकाकर सलाम करेंगे। उनकरा कहना था कि आम तौर पर अगर किसी की जमानत याचिका लोअर कोर्ट या हाईकोर्ट से खारिज हो जाती है तो सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं देता। उन्होंने ये दलील उस समय दी जब सुप्रीम कोर्ट आशीष की बेल एप्लीकेशन पर विचार कर रहा था। कोर्ट का कहना था कि आशीष को कस्टडी में काफी समय हो चुका है। ऐसे में उसे कितने समय तक जेल में रखा जाना चाहिए।
दवे का कहना था कि आशीष के पिता और केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी ने पहले भी कई दफा किसान आंदोलन को लेकर तीखे बयान दिए थे। उससे लगता है कि जिस वारदात में पांच किसानों की मौत हुई वो पहले से सोची समझी साजिश के तहत अंजाम दी गई थी। उनका कहना था कि आखिर क्या वजह थी कि आशीष अपने दोस्तों को लेकर उस जगह पहुंचा जहां किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। उसे क्या जरूरत थी जो उसने 100 किमी की रफ्तार से कार चलाई जिससे पांच किसानों की मौत हो गई। दवे का कहना था कि आशीष के अपराध को नजरंदाज नहीं कर सकते।
उनका कहना था कि हम इस तथ्य तो नही भुला सकते कि मामले को लगातार दबाने की कोशिश की जा रही है। दो गवाहों पर जानलेवा हमला हो चुका है। उनका कहना था कि अदालत को ये तथ्य ध्यान में रखना चाहिए कि क्या किसी भी ऐसे शख्स की हत्या केवल इस वजह से की जा सकती है कि वो केवल किसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा है। ऐसे तो जंगलराज कायम हो जाएगा। लोकतंत्र का क्या मतलब रह जाएगा। हालांकि आशीष के वकील मुकुल रोहतगी का कहना था कि वो उस वक्त वारदात की जगह पर मौजूद नहीं था। दोनों की दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो उस मामले का पोस्टमार्टम नहीं कर रहे बल्कि केवल आशीष की जमानत पर सुनवाई कर रहे हैं।
