कोटा के एक कोचिंग सेंटर में पढ़ने वाले 17 साल के स्टूडेंट ने हेल्पलाइन पर कॉल करके कहा कि वो सो नहीं पाता। उसे सपनों में दिखता है कि उसकी बायोलॉजी की किताबों से सांप और दूसरे जानवर बाहर निकलकर उस पर हमला कर रहे हैं। एक दूसरा स्टूडेंट हेल्पलाइन पर कॉल करने के मिनट भर बाद ही फूट-फूटकर रोने लगा।
हेल्पलाइन की लाइन एक्टिव होने के छह घंटे के भीतर 26 कॉल्स आ चुकी हैं। एक दिन में अंदाजन 100 कॉल्स आए। सभी एक ही कहानी कहती हैं। कोटा की कोचिंग फैक्टरी के स्टूडेंट्स अब टूट रहे हैं। कोटा में चल रहे 40 से ज्यादा कोचिंग संस्थानों के एक सामूहिक निकाय ने यह हेल्पलाइन शुरू की है। इस हेल्पलाइन में तनाव से निपटने में मदद करने वाले तीन एक्सपर्ट, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े 10 एक्सपर्ट और दो डॉक्टर शामिल हैं। हालांकि, यहां मेडिकल और इंजीनियर की तैयारी कर रहे 1.5 लाख स्टूडेंट्स के लिए यह नाकाफी है। बता दें कि पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक इस साल अब तक 24 स्टूडेंट्स आत्महत्या कर चुके हैं। इनमें से 17 एलन करियर इंस्टिट्यूट के हैं। हेल्पलाइन इसी संस्था के यहां स्थित है।
द इंडियन एक्सप्रेस ने स्टूडेंट्स के तनाव और शिकायतों की असल वजह को जानने के लिए हेल्पलाइन पर आने वाले कुछ कॉल्स को मॉनिटर किया। ये स्टूडेंट्स अधिकतर यहां के टॉप पांच संस्थानों-एलन, रेजोनेंस, बंसल, वाइब्रेंट और करियर प्वाइंट के थे। इसके बाद, जो चौंकाने वाले तस्वीर सामने आई, वो यह रही
प्रेशर: सारे कोचिंग संस्थानों का पूरा फोकस पढ़ाई पर होता है। यहां बच्चों पर अच्छा प्रदर्शन करने का जबरदस्त दबाव होता है। यहां पढ़ाई के अलावा ऐसे किसी दूसरे क्रियाकलापों के लिए कोई जगह नहीं है, जिससे बच्चों पर से दबाव कुछ कम हो।
शर्म: असफल होने वाले स्टूडेंट्स के लिए शर्मिंदगी के हालात। कम रैंक वाले बच्चों को पीछे की सीटों पर बैठने कहा जाता है। आरोप है कि टीचर टॉपर्स को ज्यादा तरजीह देते हैं।
अपराध बोध: जो बच्चे लाख कोशिशों के बावजूद अच्छे नंबर नहीं ला पाते, इस अपराध बोध से ग्रसित हैं कि वे अपने घरवालों और अध्यापकों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पा रहे।
सदमा: बहुत सारे बच्चों को कोचिंग कोर्स ढेरों किताबों और बिना छुट्टी की वजह से बहुत कठिन महसूस होता है। पूरे साल में दीवाली के वक्त एक हफ्ते की छुट्टी ही मिलती है। यहां संडे को भी टेस्ट होते हैं। इतना कुछ है कि अगर बच्चे से एक क्लास भी छूट जाए तो वो पिछड़ जाता है।
क्या बताया बच्चों ने
बिहार के अररिया के रहने वाले 17 साल के सावन कुमार ने कहा, ”मैं बहुत दबाव में हूं। मैं अपनी 12वीं और ऑल इंडिया प्री मेडिकल टेस्ट की एक साथ तैयारी कर रहा हूं।” सावन ने 2014 में यहां प्री मेडिकल कोचिंग कोर्स में दाखिला लिया था। अब उनके दोनों परीक्षाओं के लिए छह महीने से भी कम वक्त बचा है। सावन ने कहा, ”मैं सुबह नौ बजे उठ जाता हूं। दैनिक क्रियाओं से निपटने और पूजा आदि के बाद मैं दोपहर डेढ़ बजे तक पढ़ाई करता हूं। इसके बाद, दोपहर 2 बजे से रात आठ बजे तक एलन कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ाई करता हूं। रात के खाने के बाद फिर मैं रात नौ बजे से सुबह तीन बजे तक पढ़ाई करता हूं। इसके बावजूद, मुझे ऐसा लगता है कि ये कोशिश काफी नहीं है।”सावन के 10 फीट लंबे और 10 फीट चौड़े हॉस्टल के कमरे में कई पोस्टर लगे हैं, जिन पर प्रेरणादायी लाइनें लिखी हैं। बाहर दरवाजे पर लिखा है, ”देर रात पढ़ाई के वक्त डिस्टर्ब न करें।”
घरवालों की महत्वाकांक्षाएं, बढ़ती कुंठा
सावन के पिता दवा की दुकान चलाते हैं। वो डॉक्टर नहीं बन पाए, इसलिए चाहते हैं कि सबसे बड़े बेटे सावन समेत उनके तीनों बच्चे डॉक्टर ही बनें। सावन ने बताया, ”मेरी छोटी बहन अगले साल कोटा आएगी। मैं उसके साथ मेडिकल की कोचिंग नहीं कर सकता। यह बहुत ही शर्मनाक होगा।” सावन ने आगे बताया, ”सेंटर में दाखिले के बाद तीसरे हफ्ते में एक टेस्ट होता है। इसके नतीजों से यह तय होता है कि कौन सा बैच मिलेगा। मुझे टॉपर्स के बैच में जगह नहीं मिली। इसके बाद, मैं अपने दोस्तों का सामना नहीं कर पाया।” सावन के मुताबिक, ”हर संडे को अधिकतर टेस्ट ही होते हैं। इनके नतीजों को संस्थान के बाहर बोर्ड पर चस्पा कर दिया जाता है। नतीजों वाले दिन मैं क्लास करने नहीं जाता क्योंकि ज्यादा नंबर पाने वाले स्टूडेंट्स कम नंबर पाने वालों का मजाक उड़ाते हैं। यहां तक कि एक ही क्लास के अंदर स्पेशल रैंक ग्रुप्स बनाए गए हैं। इनमें क्लास के टॉपर स्टूडेंट्स को जगह मिलती है। ये बच्चे सबसे सामने वाली बेंचों पर बैठते हैं और टीचर उनका ज्यादा ख्याल भी रखते हैं। यह मेरे जैसे बच्चों के लिए शर्म से डूबकर मरने की बात है, जो पीछे बैठते हैं।”
समस्या बेहद गंभीर
कोटा के सरकारी मेडिकल कॉलेज में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉक्टर भारत सिंह शेखावत ने बताया कि उनके सामने बच्चों में तनाव और कुंठा से जुड़े छह से सात मामले हर रोज आते हैं। शेखावत ने बताया, ”इनमें से अधिकतर बच्चे पहली बार घर से बाहर निकले होते हैं। सभी की उनसे अपेक्षा होती है कि वे एक तयशुदा जीवनशैली में ढल जाएं। ऐसा करना इस बच्चों के लिए बेहद तकलीफ भरा होता है। बच्चों का आत्महत्या करना एक बड़ी समस्या है। वे अखबार खोलते हैं और जब टॉपर्स का चेहरा देखते हैं तो उनको धक्का लगता है। हद तो तब हो जाती है, जब लोग इन बच्चों को नजरअंदाज करना शुरू कर देते हैं।”
क्या कहना है कोचिंग संस्थानों का
बंसल क्लासेज के सीईओ प्रमोद बंसल ने कहा, ”माता-पिता को भी बच्चों का ख्याल रखना होगा। अगर कोई बच्चा स्कूली पढ़ाई में कमजोर था तो वह कोटा के कठिन शैक्षिक माहौल को कैसे झेल पाएगा?” वहीं, करियर प्वॉइंट के डायरेक्टर प्रमोद माहेश्वरी ने कहा, ”आत्महत्या करने वाले बच्चे भावनात्मक तौर पर कमजोर होते हैं। जब वे अपने घरवालों और अध्यापकों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाते तो उन्हें अपराध बोध होता है। आत्महत्या की वजह प्रेशर नहीं बल्कि यह अपराध बोध है।”
इस रिपोर्ट की पहली कड़ी ये है- 10 महीने में 24 खुदकुशी: कोचिंग हब से फैक्ट्री में तब्दील हुआ राजस्थान का कोटा