उत्तर प्रदेश के पश्चिमी छोर पर बसा आखिरी जिला अपने इतिहास के लिए लोगों के बीच जाना जाता है। सहारनपुर का पुरातन इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से माना जाता है। सहारनपुर की स्थापना अकबर के समय हुई थी। जब सहारनपुर की जागीर को राजा सहा रणवीर सिंह को सम्मानित किया गया जिन्होंने सहारनपुर शहर की स्थापना की थी। ये शहर मुख्य रूप से लकड़ी पर नक्काशी की कला की वजह से काष्ठ नगरी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
वैसे तो देश भर में लाखों मदरसे चल रहे हैं। जहां इस्लाम और कुरान की पढ़ाई होती है। लेकिन सहारनपुर में एक ऐसी मदरसा है जिसे इस्लामी तालीम के प्रचार-प्रसार के देश ही ही नहीं दुनिया भर में अलग तरीके से जाना जाता है। जिसे लोग दारुल उलूम देवबंद के नाम से जाना जाता है।
1857 में हुई दारुल उलूमा की स्थापना
अंग्रेजों के भारत में आने के साथ ही भारत में मुगल शासन पूरी तरह से समाप्त हो गया। जिसके बाद धीरे-धीरे मुस्लिम संगठन भी बंद होने लगे या दिशाहीन रूप से काम कर रहे थे। ऐसे में मुस्लिमों को इस्लामी तामील देने के लिए 1857 में देवबंद में दारुल उलूम की स्थापना की गई। जिसे विश्व-भर के मुस्लिम शिक्षा संस्थानों में विशेष स्थान प्राप्त हुआ था।
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गंगा और यमुना के दोआब में बसा सहारनपुर मुख्य रूप से लकड़ी की नक्काशी के लिए जाना जाता है। सहारनपुर जिले का लकड़ी का काम विश्व प्रसिद्ध है। जो दुनिया के यूएसए, यूके, सिंगापुर, स्वीडन और कुवैत सहित कई पश्चिमी देशों में निर्यात किए जाते हैं।
शाकंभरी देवी की महिमा का पुराणों में मिलता है वर्णन
सहारनपुर धार्मिक कारणों से भी काफी प्रसिद्ध है। शाकंभरी देवी मंदिर लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर काफी प्राचीन है। स्कंद पुराण के अनुसार इस मंदिर की स्थापना महाभारत काल से पूर्व हुई थी। इस मंदिर की मूर्तियां भी काफी प्राचीन हैं लेकिन सिंदूर और अन्य तत्वों से लिप्त होने के कारण मूर्तियों का मूल रूप स्पष्ट नहीं हो पाता। हालांकि कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि मराठा काल के दौरान मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था।
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कुछ विद्वानों का मानना है कि आदि शंकराचार्य ने अपनी तपस्या यहीं किया था। ऐसी मान्यता है कि मां शाकंभरी देवी ने दुर्गम महादैत्य को मारा था और लगभग 100 साल तक तपस्या की थी जबकि वह महीने में केवल एक बार अंत में शाकाहारी भोजन ग्रहण किया करती थी। स्कंद पुराण, महाभारत, शिव पुराण,देवी पुराण, मार्कंडेय पुराण और ब्रह्म पुराण में इस पीठ की महिमा का वर्णन है।