कालीन नगरी के नाम से मशहूर भदोही का नाम देश ही नहीं दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहां की कालीन की दुनियाभर के बाजारों में खूब मांग रहती है। भदोही को इसी वजह से पूर्वांचल का मैनचेस्टर भी कहा जाता है। यहां पर कालीन का निर्माण काफी समय से हो रहा है। जानकारी के अनुसार भदोही में कालीन बनाने का काम मुगल काल में हुआ था। इसके साथ ही भदोही का धार्मिक महत्व भी खूब है। यहां पर माता सीता का समाहित स्थल है। जो हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए इस स्थान की काफी मान्यता है। भदोही की गिनती यूपी के सबसे छोटे जिलों में होती है।
1994 में यूपी का 65वां जिला बना था भदोही
इतिहास की बात करें तो भदोही बिलकुल ही नया शहर है। इसकी स्थापना 30 जून 1994 को यूपी के 65वें जिले के रूप में हुआ था। लेकिन यहां की कालीन का इतिहास मुगल काल है। ऐसा बताया जाता है मुगल शासक अकबर के दरबार में कुछ कालीन बुनकर फारस से पहुंचे थे। उन सभी ने अकबर को कालीन भेंट की। अकबर कालीन से बहुत प्रभावित हुआ और दिल्ली, आगरा, बंगाल और लाहौर में कालीन की बुनाई और प्रशिक्षण एवं उत्पादन केंद्र खोल दिये। आगरा से बंगाल जा रहे बुनकरों का एक दल रास्ते में भदोही के इलाके के पास रात होने के बाद रुक गया।
रात में ही भदोही में रुकने के दौरान बुनकर कारीगरों ने वहां के स्थानीय जुलाहों की मदद से यहां भी कालीन की सुविधा प्राप्त कर ली। जिसके बाद से यहां पर कालीन निर्माण का कार्य तेजी से फलने फूलने लगा। अंग्रेजों के समय में यहां की बनी हुई कालीन दुनिया के बाजारों में बेहतरीन प्रदर्शन की। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कालीन 6 मुख्य उत्पादक देशों में भारत ईरान और चीन के बाद तीसरे नंबर पर है।
सीतामढ़ी में है माता सीता का समाहित स्थल
गंगा किनारे स्थित इस शहर की धार्मिक मान्यता भी खूब है। भदोही के सीतामढ़ी में ही माता सीता ने भू समाधि ली थी। जो हिन्दुओं के लिए आस्था का केंद्र है। त्रेतायुग के दौरान भगवान राम ने जब माता सीता को जंगल के छोड़ दिया था। उस दौरान माता सीता इसी के आसपास के जंगलों में रहकर समय व्यतीत करती थीं। हालांकि ऐसा माना जाता है कि यहीं पर माता सीता जमीन की समा गई थी। इस स्थान को राम पथ गमन के तहत भी विकसित किया जा रहा है।