सिद्धार्थ और सतेंद्र कुमार आंतिल पर सुप्रीम कोर्ट के दिए फैसलों से अब ट्रेनी जज सीख लेंगे। शीर्ष अदालत ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि दोनों ही मामलों को स्टेट जूडिशियल एकेडमी के पाठ्यक्रम में शामिल कराया जाए और ट्रेनी जजों को तफसील से इनके बारे में बताया जाए। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि दोनों ही मामले न्यायपालिका के लिए एक नजीर हैं। ट्रेनी जजों के लिए इनको जानना बेहद ज्यादा जरूरी है।

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चार्जशीट दाखिल करते समय हर आरोपी को अरेस्ट करना जरूरी नहीं

सिद्धार्थ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम गाइडलाइन जारी की थी। अदालत ने कहा था कि चार्जशीट दाखिल करते समय ऑफिसर इन चार्ज के लिए जरूरी नहीं है कि वो हर आरोपी को अरेस्ट करे। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हरिकेश राय की बेंच ने अपने फैसले में सीआरपीसी (CRPC) की धारा 170 का हवाला देते हुए कहा कि ये पुलिस अधिकारी को ऐसा करने से रोकती है। इस धारा में प्रावधान है कि ऑफिसर इन चार्ज के लिए जरूरी नहीं है कि वो सभी आरोपियों की धर पकड़ करे। बेंच का कहना था कि कुछ ट्रायल कोर्ट आरोपियों की अरेस्ट पर जोर देती हैं। लेकिन उनका तरीका सीआरपीसी की धारा 170 का उल्लंघन है। उन्हें ऐसा करने से बचना चाहिए। ये चीज कानूनन ठीक नहीं है।

मशीनी अंदाज में न हो आरोपी का रिमांड पर रिमांड

सतेंद्र कुमार आंतिल बनाम सीबीआई के केस में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एके ओका की बेंच ने विचाराधीन कैदियों से भरी जेलों पर चिंता जताई थी। बेंच का कहना था कि बेल की कंडीशंस सरल की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कुछ गाइड लाइंस भी जारी की थीं, जिससे जमानत हासिल करना आसान हो सके। बेंच का मानना है कि मशीनी अंदाज में आरोपी का रिमांड पर रिमांड देना पूरी तरह से गलत है। बेंच ने अपने फैसले में ये भी कहा था कि केंद्र सरकार को एक बेल एक्ट तैयार करना चाहिए, जिससे बेल हासिल करने में बाधा न उत्पन्न हो।

आज शुक्रवार को जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एके ओका की बेंच ने कहा कि सतेंद्र कुमार आंतिल मामले में जारी दिशा निर्देशों का राज्य के साथ हाईकोर्ट पूरी तरह से पालन करें। हाईकोर्ट देखें कि कौन से विचाराधीन कैदी जमानत की शर्तों को पूरी नहीं कर सकते। आंतिल मामले के अमीकस क्यूरी और सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने बताया कि चार हाईकोर्ट्स के साथ सीबीआई ने इस मसले पर अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया है। कुछ स्टेट्स भी इस श्रेणी में शामिल हैं। कोर्ट ने चार सप्ताह का समय देकर सुनवाई की अगली तारीख 21 मार्च तय की है।

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First published on: 03-02-2023 at 13:58 IST