भारत और फ्रांस के बीच राॅफेल लड़ाकू विमान सौदे के बाद देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस मोदी सरकार पर लगातार हमलावर है।  कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार द्वारा विमान खरीदने के इस सौदे से देश को 41 हजार 205 करोड़ का नुकसान हुआ है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि अगले 50 वर्षों तक देश के करदाता 36 रॉफेल विमानों के रख-रखाव के लिए भुगतान करेंगे। यह सदी का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। यह घोटाला कर्ज में डूबे कॉरपोरेट मित्रों को उबारने के लिए किया गया है। इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक अहम जानकारी सामने आयी है। वो यह है कि एक इंटरनल नोट्स के माध्यम से यह पता चला है कि यूपीए सरकार द्वारा 126 लड़ाकू विमान के लिए किए गए करार को क्यों रद्द किया था। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूपीए सरकार द्वारा लड़ाकू विमान की खरीद के लिए किए गए करार को रद्द करने के पीछे की वजह यह थी कि इनमें से कुछ विमानों को देश में बनाने के लिए हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के कॉमर्शल ऑफर को शामिल करने पर डसाॅल्ट इस प्रोजेक्ट के लिए सबसे कम बोली लगाने वाल कंपनी का दर्जा गंवा देती। ऐसी परिस्थति में ईएडीएस का यूरोफाइटर विमान डील में आगे निकल जाती।

यूपीए के समय के राफेल डील को रद्दे किए जाने के बारे में दस्तावेज में यह बताया गया है कि, “डसॉल्ट और ईएडीएस के मैन ऑवर के 2.7 के फैक्टर को शामिल करने के बाद कुल लागत के आधार पर नेट प्रेजेंट वैल्यू रेशियों में बड़ा बदलाव आता। ऐसी स्थिति में डसॉल्ट इस डील की रेस में पिछड़ जाती।” दस्तावेज में यूपीए शासन में हुई राफेल डील रद्द करने की सात वजहें बताई गई है। इनमें से एक यह भी है कि एचएएल के कैलकुलेशन को शामिल करने के बाद लड़ाकू विमान की लागत कम पड़ती। इसमें जहाज के देश में निर्माण को भी ध्यान में रखा गया था। एक बात यह भी है कि जर्मनी ने वर्ष 2014 में इन जहाजों की कीमत को और 20 प्रतिशत कम करने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन भारत की ओर से किसी तरह का जवाब नहीं दिया गया। सस्ते लड़ाकू जहाजों पर विचार नहीं किया गया। यूपीए सरकार की डील रद्द करने की अन्य जो वजहें सामने आयी है उनमें यह बताया गया है कि डसॉल्ट की ओर से परफॉर्मेंस बॉन्ड नहीं दिया गया था।

 

बता दें कि यूपीए 2 के शासन काल में अप्रैल 2011 में भारतीय वायु सेना ने लड़ाकू विमानों के लिए डसॉल्ट राफेल और यूरोफाइटर टाइफून को चुना गया। जनवरी 2012 में इसके लिए बोली लगी। राफेल की बोली सस्ती थी, लेकिन तत्कालिन सरकार और डसॉल्ट के बीच मतभेद थे, इस वजह से बात नहीं बन पायी। इसके बाद वर्ष 2014 में मोदी सरकार बनी। मोदी सरकार बनने के बाद यूरोफाइटर ने 20 प्रतिशत डिस्काउंट देने का ऑफर दिया लेकिन सरकार ने किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दी। 10 अप्रैल 2015 को पीएम मोदी पैरिस गए और नई डील के तहत 36 राफेल खरीदने की घोषणा की। 24 जून को रक्षा मंत्रालय ने पूर्ववर्ती सरकार की राफेल डील को रद्द किया और फिर 23 सितंबर 2016 को नए डील पर हस्ताक्षर किया गया।