हर किसी के जेहन में यह सवाल आता है कि आखिर तेल की कीमतें कैसे तय होतीं हैं। कीमतें दो मुख्य चीजों पर निर्भर करतीं हैं। एक अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल की कीमत और दूसरा सरकारी टैक्स। क्रूड ऑयल के रेट पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है, मगर टैक्स सरकार अपने स्तर से घटा-बढ़ा सकती है। यानी जरूरत पड़ने पर सरकार टैक्स कम कर बढ़े दाम से कुछ हद तक जनता को फायदा पहुंचा सकती है।पहले देश में तेल कंपनियां खुद दाम नहीं तय करतीं थीं, इसका फैसला सरकार के स्तर से होता था। मगर जून 2017 से सरकार ने पेट्रोल के दाम को लेकर अपना नियंत्रण हटा लिया गया। कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिदिन उतार-चढ़ाव के हिसाब से कीमतें तय होंगी।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की खरीद बैरल के हिसाब से होती है। एक बैरल में करीब 162 लीटर तेल होता है।

अमूमन जिस रेट पर हम तेल खरीदते हैं, उसमें करीब पचास प्रतिशत से ज्यादा टैक्स होता है। इसमें करीब 35 प्रतिशत एक्साइज ड्यूटी और 15 प्रतिशत राज्यो का वैट या सेल्स टैक्स। दो प्रतिशत कस्टम ड्यूटी होती है, वहीं डीलर कमीशन भी जुड़ता है। तेल के बेस प्राइस में कच्चे तेल की कीमत,उसे शोधित करने वाली रिफाइनरीज का खर्च शामिल होता है। हर राज्य में पेट्रोल और डीजल के अलग-अलग रेट हैं, वजह कि राज्यों में वबिक्री कर या वैट की दर 17 से 37 प्रतिशत तक है।
यूं बढ़ जाता है दामः अगर सिर्फ दिल्ली की बात करें तो 21 मई को पेट्रोल की कीमत 76.57 रुपये रही। इसके दाम का विश्लेषण करें तो बेस प्राइस 37.19 रुपये रहा, जबकि सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी 19.48, वैट और बिक्री कर 16.28, तीन रुपये 62 पैसे डीलर कमीशन कुल मिलाकर जोडे़ं तो 76.57 रुपये बैठता है। बता दें कि सरकार ने डीजल, केरोसिन और एलपीजी की कीमतों का नियंत्रण अपने हाथ में रखा है, बाकि पेट्रोल की कीमत अंतरराष्ट्रीय मार्केट में उतार-चढ़ाव के हिसाब से तय होती है।