एनसीपी नेता शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने विधानसभा में विधायक पद की शपथ ले ली है। अजित पवार का नाम चर्चित सिंचाई घोटाले में काफी उछला था। अजित पवार पर जब इन घोटालों के छीटें पड़े थे तब उस वक्त वो कांग्रेस-एनसीपी सरकार में जल संसाधन मंत्री थे। इस कुर्सी पर रहते हुए अजित पवार विदर्भ सिंचाई विकास विभाग के अध्यक्ष का पद भी संभाल रहे थे। हालांकि शुरू में इस घोटाले से संबंधित किसी भी एफआईआर में अजित पवार का नाम नहीं था। इसके बाद एंटी करप्शन ब्यूरो के डायरेक्टर-जनरल संजय बार्वे ने नवंबर 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच से कहा कि अजित पवार की भूमिका इससे संबंधित ठेकों को दिये जाने में थी।
यह आरोप लगे थे: जून 2011 में महाराष्ट्र के जल संसाधन विभाग ने 48.26 लाख हेक्टेयर भूमि में सिंचाई की बात कही। इसमें पूरे हो चुके प्रोजेक्ट और जिन प्रोजेक्टों पर काम चल रहा था उनकी कुल संख्या 3,712 थी। जून 2012 तक कुल 32.51 लाख हेक्टेयर में सिचाई हुई। साल 2001-2002 और 2011-12 के बीच सीएजी ने अपनी कई रिपोर्टों के जरिए बताया कि इसमें लंबे समय की योजनाओं की कमी थी, प्रोजेक्ट्स की प्राथमिकताएं और उन्हें खत्म करने में देरी हुई तथा बिना वन विभाग की अनुमति के काम पूरा कर दिया गया।
पहली बार ऐसे लगा आरोप: साल 2012 में Maharashtra Engineering Training Academy के मुख्य इंजीनियर विजय पंडारे ने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और राज्यपाल के शंकरनारायण को इस संबंध में चिट्ठी लिखकर सिंचाई विभाग द्वारा विभिन्न ठेकों में हुए अनियमितताओं की जांच सीबीआई से कराने की मांग की। जब इन ठेकों में गड़बड़ी की बात सामने आई तब डिप्टी सीएम अजित पवार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और इस केस के पहले व्हीलसलब्लोअर को पुलिस सुरक्षा भी प्रदान की गई थी।
सरकार ने कुछ इस तरह दी प्रतिक्रिया: घोटाले के उजागर होने के बाद जब विधानसभा में आर्थिक सर्वे रिपोर्ट पेश किया गया तब यह बताया गया कि डैम प्रोजेक्ट्स पर 70,000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किया गया जबकि इसमें सिंचाई के अंतर्गत आने वाले महज 0.1फीसदी क्षेत्र का ही इस्तेमाल किया गया था। उस वक्त विपक्ष ने जोरशोर से इसकी जांच की मांग उठाई थी। जिसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अगस्त 2012 में इस मामले में व्हाइट पेपर बनाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद सितंबर में अजित पवार कैबिनेट से अलग हो गए। लेकिन दिसंबर में जब व्हाइट पेपर सामने आया तब विपक्ष ने इसे पक्षपात पूर्ण जांच बताया। इसके बाद 21 दिसंबर 2012 को कांग्रेस-एनसीपी सरकार ने एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बना कर मामले की जांच की बात कही।
इस कमेटी के अध्यक्ष पूर्व जल संसाधन सचिव माधन चितले थे। जून 2014 में इस कमेटी ने विधानसभा के पटल पर अपनी जो रिपोर्ट रखी उसमें अजित पवार को क्लीन चिट दिया। साल 2014 में सीएजी ने सिंचाई प्रोजेक्ट्स के प्रबंधन की परफॉरमेंस ऑडिट संबंधित रिपोर्ट पर काम शुरू किया। इस रिपोर्ट से पता चला कि महाराष्ट्र के जल संसंधान रेगुलेटरी अथॉरिटी ने 2007-2013 के बीच 189 प्रोजेक्ट पूरे किये। लेकिन प्रोजेक्ट्स को पूरा करने की प्राथमिकतओं में गड़बड़ी थी जिससे यह साफ हुआ कि नॉन बैकलॉग जिलों से नए प्रोजेक्ट लिए गए थे।
रिपोर्ट में जून 2013 में 601 ऐसे चालू प्रोजेक्ट्स के बारे में बताया गया जिसका बैलेंस कॉस्ट 82,609.64 करोड़ रुपया है। यह बैलेंस कॉस्ट 2012-13 विभाग को दिये गये कुल बैलेंस कॉस्ट से 9 गुना ज्यादा था। इस बात का भी जिक्र था कि काम शुरू होने से पहले जमीन का अधिग्रहण भी नहीं किया गया था। इसके अलावा सीएजी की रिपोर्ट में सिंचाई विकास कॉरपोरेशन पर Maharashtra Public Works Manual के उल्लंघन का आरोप भी लगा था।
विपक्ष में रहते हुए भारतीय जनता पार्टी के नेता देवेंद्र फडणवीस इस मामले की जांच की डिमांड करने वालों में सबसे आगे थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने सिंचाई विभाग के इस घोटाले में अजित पवार की भूमिका की जांच कराने की बात कही थी।