Mira Patel

ब्रिटेन को आज अपना नया सम्राट मिलने वाला है, किंग चार्ल्स तृतीय की ताजपोशी एक भव्य कार्यक्रम के जरिए संपन्न होने वाली है। भारत की तरफ से उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पहले ही लंदन पहुंच चुके हैं। लेकिन आज किस्सा किंग चार्ल्स या जगदीप धनखड़ का नहीं, बल्कि 70 साल पुरानी उस घटना का जिसका कनेक्शन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से है। साल 1953 में रानी एलिजाबेथ II की ताजपोशी हुई थी, तब भी लंदन में अलग ही माहौल था, राज परिवार ने बड़ी तैयारियां की थीं और भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू।

नेहरू का 1953 वाला लंदन दौरा और विवाद

ये वो समय था जब देश अंग्रेजों की चंगुल से मुक्त हुआ ही था, सिर्फ 6 साल हुए थे और गरीबी से लेकर कई चुनौतियां सिरदर्द बढ़ा रही थीं। ऐसे में जब जवाहर लाल नेहरू, रानी एलिजाबेथ II की ताजपोशी में गए तो इस पर जमकर बवाल हुआ, विवाद देखने को मिला। उस विवाद का अहसास ब्रिटेन में बैठी मीडिया को भी था। ऐसे में जब वहां पहुंचकर नेहरू ने ब्रिटेन के नेशनल ब्रॉडकास्टर बीबीसी को पहला इंटरव्यू दिया, उसमें इस सवाल पर एक विस्तृत जवाब भी दिया। नेहरू ने कहा था कि विवाद तो होंगे ही, लेकिन उन विवादों का असल में कोई मतलब नहीं होगा, उनकी कोई नींव नहीं होगी। नेहरू ने यहां तक कहा था कि उनके आने की वजह से भी विवाद हुआ और जब वे वापस भारत जाएंगे, तब भी विवाद तो होगा ही।

वैसे उसी इंटरव्यू में जवाहर लाल नेहरू से सवाल किया गया था कि क्या भारत ने ब्रिटेन को काफी जल्दी माफ कर दिया, क्या भारत गुलामी वाली बात भूल गया? इस पर नेहरू ने बड़ी बात कही थी, उन्होंने जोर देकर कहा था कि यहीं महात्मा गांधी की लेगेसी है। लेकिन ये तमाम तर्क उस समय काम नहीं आए थे क्योंकि एक वर्ग को ये बात हजम नहीं हो रही थी नेहरू को उस ब्रिटेन जाने की क्या जरूरत थी जिसने इतने साल देश पर गुलाम किया। अब जो बात तब लोग नहीं समझ पा रहे थे, इतिहासकार बीआर नंदा, नेहरू की उस विचारधारा को भी समझ रहे थे और उनके फैसलों के पीछे के कारण को भी डीकोड कर पाए थे।

अंग्रेजी पढ़ाई लेकिन देशभक्ति का अहसास, नेहरू का कैसा चरित्र?

उन्होंने अपने जर्नल में लिखा था कि नेहरू एक ऐसे परिवार से आए थे, जहां पर अंग्रेजी कल्चर पर काफी फोकस था, टेबल मैनर्स से लेकर शिक्षा तक, हर डिपार्टमेंट में उसकी छाप दिखती थी। लेकिन ऐसा नहीं था कि वे अंग्रेजों की हुकूमत भारत पर चाहते थे। उन्होंने हमेशा पूर्ण आजादी की बात कही थी, उन्होंने ही ब्रिटेन के Dominion status को खारिज कर दिया था। वे तो चाहते थे कि अंग्रेज, पूरी तरह से भारत को मुक्त करें और उनकी धरती को छोड़ दें। उस समय भारत के वायसरॉय ने भी इस बात की तस्दीक की थी, जब उन्होंने कहा था कि नेहरू भारत की आजादी को लेकर किसी भी तरह के समझौते को तैयार नहीं थे।

वैसे खास बात ये है कि जब 1953 में जवाहर लाल नेहरू लंदन गए थे, तब भारत के लिए ताजपोशी कोई बहुत बड़ा इवेंट नहीं था क्योंकि ऐसी ही तैयारी साल 1877, 1903 और फिर 1911 में देखी जा चुकी थी। उन तीनों ही मौकों पर जिस स्तर पर जश्न की तैयारी की गई थी, उसे देखते हुए 1953 में पहले ही कार्यक्रम की भव्यता को लेकर अंदाजा लगाया जा चुका था। लेकिन तब नेहरू का वहां जाना बड़ा विवाद बना जिस पर आज भी कई मौकों पर चर्चा होती दिख जाती है।