Kerala High Court: तलाक के एक मामले की सुनवाई के दौरान केरल हाई कोर्ट ने नई पीढ़ी के युवाओं को लेकर अहम टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि नई पीढ़ी के युवाओं का मुक्त जीवन जीने का आनंद लेने का कल्चर और शादी से परहेज कर लिव-इन संबंध में रहना समाज पर भारी पड़ेगा। केरल उच्च न्यायालय ने “यूज एंड थ्रो की संस्कृति” की निंदा करते हुए 51 वर्षीय व्यक्ति की तलाक याचिका को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि नई पीढ़ी विवाह को बोझ के रूप में देखती है। लिव-इन रिलेशनशिप बढ़ रहे हैं, यह “समाज की अंतरात्मा” पर चिंता की लकीरें खींचता है। अदालत ने कहा कि आजकल युवा पीढ़ी को लगता है कि अगर वे शादी के बंधन में बंधते हैं तो उनकी आजादी छिन सकती है।

कोर्ट ने कहा कि ‘यूज एंड थ्रो’ के कल्चर ने हमारे वैवाहिक संबंधों को भी प्रभावित किया है। समाज में लिव-इन-रिलेशनशिप बढ़ रही है। जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और सोफी थॉमस की एक डिवीजन बेंच ने 24 अगस्त को तलाक के मामले में फैसला सुनाते हुए कथित “वैवाहिक क्रूरता” पर तलाक की अपील को खारिज कर दिया।

क्या है मामला:

दरअसल 2018 से अपनी पत्नी से अलग हो चुके एक व्यक्ति ने केरल हाई कोर्ट में तलाक की याचिका दायर की थी। जिसकी जांच करते हुए केरल हाई कोर्ट ने कहा कि केरल कभी अपने अच्छे पारिवारिक संबंधों को लेकर जाना जाता था लेकिन अब इसकी संस्कृति भी खराब हो रही है।

जस्टिस मोहम्मद मुस्तक और सोफी थॉमस की बेंच ने कहा कि कभी केरल को ईश्वर की धरती कहा जाता था। पारिवारों के बीच प्यार यहां अच्छे संबंधों का उदाहरण दिया जाता था। लेकिन यहां के ट्रेंड में अब बदलाव देखने को मिल रहा है। आज के हालात में छोटे फायदों और स्वार्थी कारणों के चलते विवाह के बाद तलाक लेने का ट्रेंड हो गया है।

अदालत ने कहा कि ट्रेंड ऐसा हो चला है कि लोग अपने बच्चों की परवाह न करते हुए तलाक ले रहे हैं। अदालत ने कहा कि जब झगड़ा करने वाले दंपती, लाचार बच्चे और हताश तलाकशुदा हमारी आबादी में बढ़ने लगते हैं तो इससे हमारे सामाजिक जीवन की शांति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे हमारे समाज का विकास रुक जाएगा।