विस्थापित कश्मीरी पंडितों ने बेंगलुरु में ऐसा कार्यक्रम आयोजित करने को लेकर एमनेस्टी इंटरनेशनल पर रविवार (21 अगस्त) को निशाना साधा जिसमें कथित तौर पर राष्ट्रविरोधी नारेबाजी की गई तथा मांग की कि भारत में उसकी गतिविधियों की केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच करायी जाए। कश्मीरी पंडितों ने एनजीओ को चुनौती दी कि वह ‘लश्करे तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन और बुरहान वानी जैसे उनके अनुगामियों द्वारा किए गए मानवाधिकार उल्लंघनों और अत्याचारों पर एक रिपोर्ट प्रकाशित करे।’

कश्मीरी हिंदू कल्चरल वेल्फेयर ट्रस्ट (केएचसीडब्ल्यूटी) के अध्यक्ष आर के मट्टू ने कहा, ‘एक केंद्रीय एजेंसी को मानवाधिकार उल्लंघनों के विरोध में चुनिंदा होने के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल की सभी गतिविधियों की जांच करनी चाहिए।’ मट्टू ने कहा, ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल को सामने आना चाहिए और स्वयं द्वारा आयोजित कार्यक्रम में की गई नारेबाजी की खुले तौर पर निंदा करनी चाहिए।’

इस सप्ताह के शुरू में ट्रस्ट ने गत 13 अगस्त को उस कार्यक्रम में राष्ट्रविरोधी नारे लगाने ‘देने’ के लिए एनजीओ के खिलाफ एक शिकायत दर्ज कराई थी जिसका आयोजन उसने (एनजीओ) स्वयं किया था।’ उन्होंने कहा, ‘एमनेस्टी इंटरनेशनल की ‘डिनाइड: फेल्यर्स इन अकाउंटैबिलिटी फॉर ह्यूमन राइट्स वायलेशंस बाई सिक्युरिटी फोर्स पर्सनल इन जम्मू एंड कश्मीर’ शीर्षक वाली रिपोर्ट एक पक्षपाती परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करती है और घाटी में मानवाधिकारों के संरक्षण में नकारात्मक योगदान करती है।’

उन्होंने एक बयान में कहा, ‘इसलिए एमनेस्टी को तत्काल आत्मविश्लेषण करना चाहिए और अपनी रिपोर्ट बनाने की प्रक्रिया की जांच करनी चाहिए।’ उन्होंने नारेबाजी के घटनाक्रम का उल्लेख किया और कहा, ‘कार्यक्रम को शुरू में कश्मीरी पंडितों को शामिल करने के लिए नहीं बनाया गया था। यद्यपि जब मैंने उन्हें फेसबुक के माध्यम से सवाल किया तो उन्होंने मुझे बोलने के लिए बुलाया।’

उन्होंने कहा, ‘मैं 1989-1990 में इस्लामी आतंकवादियों द्वारा 800 कश्मीरी पंडितों की नृशंस हत्या के बाद पांच लाख कश्मीरी पंडितों के पलायन पर बोला।’ मट्टू ने कहा, ‘भारतीय सेना के बारे में मेरी सकारात्मक टिप्पणियों को दर्शकों में शामिल कुछ लोगों ने चिल्लाकर दबा दिया।’