तीन महीने तक चली 1999 की कारगिल जंग का इतिहास रक्षा मंत्रालय लिखवा रहा है। यह प्रोजेक्ट पिछले साल शुरू हुआ था और दो साल में पूरा होगा। इस काम की जिम्मेदारी इतिहासकार श्रीनाथ राघवन को दी गई है। लेकिन सेना मंत्रालय के इतिहास विभाग को इस जंग से जुड़ी ऑपरेशनल जानकारियां नहीं दे रही है। हालांकि सेना की उत्तरी कमांड और डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस(डीजीएमओ) की एक्शन रिपोर्ट के बाद छह वॉल्युम इतिहास विभाग को भेज दिए। लेकिन अन्य किसी फाइल में हिस्सा लेने से मना कर दिया। इसमें युद्ध में भाग लेने वाली सभी डिवीजंस और ब्रिगेड की वॉर डायरी भी शामिल हैं।
डीजीएमओ ने अपनी वॉर डायरी को भी शेयर करने से मना कर दिया। सूत्रों के अनुसार सेना का मानना है कि इन दस्तावेजों में वर्तमान में होने वाले ऑपरेशंस की काम की चीजें शामिल हैं और इन्हें अभी सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। पूर्व डीजीएमओ रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने बताया, ”कारगिल युद्ध का इतिहास लिखा जाना जरूरी है लेकिन प्रत्येक जानकारी शेयर नहीं की जा सकती। 1999 में जो कूछ हुआ उसके अनुसार कई ठिकानों पर सेना को तैनात किया गया है। डीजीएमओ उन्हें शेयर नहीं कर सकता। साथ ही जो रणनीति अपनाई गई और ऑपरेशन के लिए जो लॉन्चपैड थे उनकी जानकारी नहीं दी जा सकती। हमारी ऑपरेशनल और लॉजिस्टिक्स प्रकिया, सामान को रखने की जगह ये सब सैन्य क्षमता का हिस्सा है इसलिए इन्हें सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।”
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सूत्रों ने बताया कि कारगिल युद्ध का इतिहास लिखने का आइडिया साल 2014 में रक्षा मंत्रालय ने अागे आगे बढ़ाया। अभी तक अन्य लड़ाइयों का इतिहास मंत्रालय के आधिकारिक इतिहासकारों ने लिखा था लेकिन कारगिल के लिए बाहरी इतिहासकार को भी जोड़ा। श्रीनाथ राघवन पूर्व में सैन्य अफसर रहे हैं और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च दिल्ली में सीनियर फैलो हैं। उन्हें दिसंबर 2014 में चुना गया। रक्षा मंत्रालय में इतिहास विभाग की शुरुआत 1953 से हुई। वह अब तक 20 वॉल्यूम पब्लिश कर चुकी है। इनमें 1948 कश्मीर जंग, 1965 भारत- पाकिस्तान युद्ध और 1971 बांग्लादेश युद्ध शामिल है। 1962 भारत-चीन युद्ध, सियाचीन विवाद और भारत के श्रीलंका में ऑपरेशन(1987-1990) को सार्वजनिक व पब्लिश नहीं किया गया है।
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