Kawar Yatra Name Plate: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार के उस निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी है जिसमें राज्य सरकारों ने कांवड़ यात्रा के दौरान उसके रूट में दुकादारों को अपने नाम डिस्प्ले करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट में योगी सरकार के आदेश के खिलाफ तीन याचिकाएं दायर हुईं थी। इन याचिकाओं को जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवी भट्टी की बेंच ने सुना। इस दौरान भट्टी ने खुद से जुड़ा हुआ एक किस्सा भी सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एसवीएन भट्टी ने सोमवार को कहा कि वह पहले केरल में मुख्य न्यायधीश रह चुके हैं। उन्होंने कहा कि मेरे पास केरल में रहने का अनुभव और ज्ञान है। मैं इस कोर्ट का जज होने के नाते खुलकर नहीं बता सकता। शहर का नाम बताए बिना मैं बता दूं कि वहां पर दो शाकाहारी होटल होते थे। एक को हिंदू चलाता था और दूसरे का संचालन एक मुसलमान करता था। उन्होंने कहा कि वह हमेशा मुसलमान के होटल में जाते थे। वहां पर इंटरनेशनल लेवल की साफ-सफाई होती थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि उस होटल का मालिक दुबई से लौटा था। वह बोर्ड पर सब कुछ दिखाता था।
आजादी से पहले से चली आ रही कांवड़ यात्रा
तृणमूल कांग्रेस की लोकसभा सांसद महुआ मोइत्रा की तरफ से पेश हुए वकील अभिषेक सिंघवी ने कहा कि आपने नाम के आधार पर नहीं बल्कि मेन्यू कार्ड के आधार पर इसका चुनाव किया। जस्टिस रॉय ने सुनवाई के दौरान पूछा था कि कांवड़िया क्या चाहते हैं? क्या वे यह सब चाहते हैं कि उन्हें खाने का सामान बनाने वाला, परोसने वाला किसी एक खास समुदाय से हो?
सिंघवी ने कहा कि कांवड़ यात्रा दशकों से चली आ रही है और अलग-अलग धार्मिक आस्थाओं इस्लाम, ईसाई और बौद्ध धर्म के लोग कांवड़ियों की मदद करते रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुओं द्वारा चलाए जा रहे कई शाकाहारी होटलों और रेस्टोरेंट में मुस्लिम और दलित कर्मचारी काम करते हैं। मैं हरिद्वार रूट पर कई बार गया हूं। वहां हिंदुओं द्वारा चलाए जाने वाले कई शुद्ध शाकाहारी रेस्टोरेंट हैं। लेकिन अगर उनमें मुस्लिम या दलित कर्मचारी हैं, तो क्या मैं कह सकता हूं कि मैं वहां नहीं जाऊंगा और न ही खाऊंगा? क्योंकि भोजन को किसी न किसी तरह से वे (मुस्लिम कर्मचारी) छूते हैं। ये निर्देश बिना किसी कानूनी अधिकार के जारी किए गए हैं, वे चालाकी कर रहे हैं।