Kanwar Yatra 2025: हर साल कांवड़ यात्रा निकाली जाती है, उस यात्रा में लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं, देश के कोने-कोने से भोले के भक्त आते हैं। अब वैसे तो इन कांवड़ियों के लिए सरकारें सारे इंतजाम करती हैं, उनके लिए जगह-जगह शिविर भी लगाए जाते हैं, लेकिन एक शिकायत हर साल दिख जाती है- लगातार होती हिंसा, लगातार होती मारपीट, लगातार सड़कों पर होता उपद्रव।
कांवड़ यात्रा और दो तरह के लोग
अब इन्हीं घटनाओं की वजह से दो तरह के लोग एक्टिव हो जाते हैं- एक तो वो रहते हैं जो इन सभी घटनाओं को कांवड़ियों को बदनाम करने की साजिश से जोड़ देते हैं, वहीं एक वर्ग ऐसा भी सामने आता है जो कांवड़ियों के खिलाफ सख्त एक्शन की मांग करता है। इस साल फिर वैसी ही स्थिति बन चुकी है, कई राज्यों से खबरें आ रही हैं कि कांवड़ियों ने मारपीट की है, डंडे चले हैं, सड़क पर बवाल काटा गया है।
कांवड़ियों ने कहां-कहां किया हंगामा?
हरिद्वार की शंकराचार्य चौक का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल चल रहा है। उस वीडियो में दिख रहा है कि एक युवक का कुछ कांवड़ियों के साथ झगड़ा हो जाता है। हालात ऐसे बन जाते हैं कि सभी कांवड़ियों ने मिलकर युवक को पीट दिया। हैरानी की बात यह है कि जब दूसरे लोगों ने रोकने की कोशिश की तो उन कांवड़ियों ने उन्हें भी धमकाने की कोशिश की।
मिर्जापुर से भी ऐसी ही घटना सामने आई जहां पर रेलवे स्टेशन पर एक सीआरपीएफ जवान को बुरी तरह पीटा गया। टिकट को लेकर एक मामूली से नोक-झोंक हुई, लेकिन कांवड़ियों ने उस जवान को घेर काफी मारा। जिस समय यह सब हो रहा था, स्टेशन पर कई लोग मौजूद थे, लेकिन किसी ने भी मदद नहीं की या उस जवान को बचाने की कोशिश नहीं की। कांवड़ियों की तरफ से जब मारा जा रहा था, जवान का बेटा सबकुछ वहां खड़ा देख रहा है, वो पूरी तरह बेबस था।
इसी तरह ऋषिकेश से भी हिंसा की घटना सामने आई जहां पर कुछ कांवड़ियों ने बीच सड़क पर एक कार युवक को पीट डाला। कांवड़ियों का आरोप था कि चालक ने शराब पी रखी थी। वायरल वीडियो में कांवड़ियों ने उस युवक की गाड़ी को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया था। जिस समय यह बवाल हुआ, दूर-दूर तक पुलिस दिखाई नहीं दी।
हर बार ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं?
अब इन सभी हिंसक घटनाओं के बाद सवाल उठता है कि हर साल ऐसी स्थिति कैसे बन जाती है? प्रशासन तो इतने इंतजाम करता है, फिर कैसे तकरार देखने को मिलती है। जानकार इसके कई कारण मान रहे हैं। सबसे पहले तो समझने वाली बात यह है कि इतने सालों बाद भी छोटे शहरों में ऐसी व्यवस्था नहीं बन पाई है जहां पर कांवड़ियों के लिए एक पूरा अलग मार्ग तैयार किया गया हो। बड़े शहरों में तो फिर भी कुछ जगह ऐसा देखने को मिल जाता है, लेकिन छोटे शहरों में जहां से कांवड़ यात्रा निकलती है, सामान्य ट्रैफिक भी वहीं से गुजरता है।
अब समझने वाली बात यह है कि कांवड़ को काफी पवित्र माना जाता है, यह एक बांस या लकड़ी से बना डंडा होता है, उसे रंग-बिरंगे पताकों से बांधा भी जाता है। उसके दोनों ही सिरों पर गंगाजल से भरे कलश भी होते हैं। अब ऐसी मान्यता है कि उन कलश को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता, ऐसा करने से वे अपवित्र हो जाएंगे। इसी वजह से कांवड़ियों को सबसे ज्यादा चिंता अपने इन कलश की होती है। अगर ये खंडित हो जाते हैं तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। ज्यादातर मामलों में भी यही देखा गया है कि कांवड़ खंडित होने की वजह से ही बवाल शुरू होता है।
क्या कोई समाधान है या नहीं?
ऐसे मामलों में हिंसा ज्यादा इसलिए भी देखने को मिल जाती है क्योंकि कांवड़ यात्रा के दौरान सभी शिव भक्त समूह बनाकर चलते हैं, ऐसा नहीं होता कि वे अकेले निकलते हैं। ऐसे में अगर किसी एक के साथ भी कुछ गलत होता है तो पूरा समूह ही साथ आ जाता है। यह भी एक कारण है कि मामूली से मामला भी ज्यादा तूल पकड़ लेता है। अब कई सालों से एक सुझाव दिया जा रहा है कि सरकार को पूरा कांवड़ मार्ग ही अलग कर देना चाहिए। जैसे विदेशों में साइकिल मार्ग रहता है, वैसा ही कांवड़ मार्ग भी बन सकता है। अभी यह व्यवस्था हर जगह देखने को नहीं मिलती है।
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