सुप्रीम कोर्ट में भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधान की सुनवाई करने वाली संविधान पीठ का नेतृत्व करने वाले जस्टिस अरुण मिश्रा ने अपने खिलाफ सोशल मीडिया पर किए गए पोस्ट को लेकर दर्द बयान किया। सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए जस्टिस मिश्रा पर पक्षपात का संदेह जाहिर करते हुए मामले की सुनवाई से अलग करने के लिए कहा गया था। मंगलवार को जस्टिस अरुण मिश्रा ने इसे अदालत का अपमान बताया। उन्होंने कहा, “मेरा विवेक स्पष्ट है, मेरी ईमानदारी ईश्वर के सामने स्पष्ट है, मैं नहीं हटने वाला।” गौरतलब है कि उनकी यह टिप्पणी वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान की अपील पर थी, जिसमें दीवान ने कहा था कि अगर मिश्रा मामले (भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधान की व्याख्या) की सुनवाई करते हैं तो कुछ गड़बड़ हो सकती है।
जस्टिस मिश्रा ने पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का नेतृत्व कर रहे हैं। इस संविधान पीठ में जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एस रविंद्र भट शामिल हैं। इन सभी न्यायमूर्तियों पर भूमि अधिग्रहण में उचित मुआवजे एवं पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास अधिनियम 2013 ( भूमि अधिग्रहण कानून 2013) के सेक्शन 24 के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए दो परस्पर विरोधी फैसलों को सही करने का जिम्मा है। गौरतलब है कि इन दो में से एक का फैसला जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने दिया था। इसमें जस्टिस एके गोयल और मोहन एम शांतनगौदर भी शामिल थे। जबकि, दूसरा फैसला अन्य तीन जजों की बेंच ने दिया था। जिसमें, चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा, जस्टिस मदन बी लोकुर और कुरियन जोसेफ (जो सेवानिवृत्त हो चुके हैं) शामिल थे।
सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट के टॉप वकील भी शामिल हैं। इन लोगों ने संविधान पीठ में जस्टिस मिश्रा की मौजूदगी पर सवाल खड़े किए। इसके जवाब में जस्टिस मिश्रा ने कहा, “क्या यह अदालत को बदनाम करना नहीं है? यदि आपने इस पर मुझसे बात की होती तो मैं निर्णय लेता। लेकिन, क्या आप मुझे और भारत के चीफ जस्टिस को बदनाम करने के लिए इसे सोशल मीडिया में उछाल रहे हैं? क्या यह अदालत का वातावरण हो सकता है? यह ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता। मुझे एक भी जज के बारे में बताइए जिसने इस बारे में अपनी राय नहीं रखी हो। क्या इसका मतलब यह है कि हम सभी अयोग्य हैं? यह मामला मेरे सामने सूचिबद्ध नहीं किया जाना चाहिए था। लेकिन, अब यह मेरे समक्ष है, लिहाजा मेरी निष्ठा पर सवाला उठाया गया है।”
जस्टिस मिश्रा ने कहा, “मेरे विचार को लेकर मेरी आलोचना की जा सकती है, मैं हीरो नहीं हो सकता हूं और मैं एक कंलकित व्यक्ति हो सकता हूं। लेकिन, यदि मैं संतुष्ट हूं कि मेरा विवेक सही है, मेरी निष्ठा ईश्वर के समक्ष साफ है, तो मैं हटने वाला नहीं हूं। यदि मुझे लगता है कि मैं किसी भी बाहरी कारणों से प्रभावित हो जाऊंगा तो सबसे पहले मैं खुद को यहां से अलग कर लूंगा।”