श्रीनगर के प्रिसिंपल सेशंस जज ने अपने अप्रत्याशित आदेश में एक जमानत याचिका पर पिछले सोमवार को सुनवाई करने में असमर्थता जाहिर की। जज का दावा है कि उनके पास जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के जज के पास फोन कॉल आया और इस मामले में बेल न देने के लिए निर्देश दिया गया।
सात दिसंबर, 2020 के आदेश में प्रिंसिपल सेशंस जज अब्दुल राशिद मलिक ने कहा था, “यह याचिका मेरे पास आज सुनवाई के आई थी। सुबह नौ बज कर 51 मिनट पर अंडर साइन्ड (मेरे पास) के पास फोन आया, जो कि तारिक अहमद मोटा का था। वह जस्टिस जावेद इकबाल वानी के सेक्रेट्री हैं।” यह बात मलिक ने उस जमानत याचिका का हवाला देते हुए कही, जिसमें शेख सलमान नाम के शख्स पर रणबीर पेनल कोर्ट की धाराओं (सेक्शन 307 शामिल, जो हत्या की कोशिश पर लगाई जाती है) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
ऑर्डर में आगे बताया गया, “मोबाइल में ये चीजें कहीं गईं- मुझे जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने आपको यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिया है कि शेख सलमान को किसी भी सूरत में बेल न मिले। अगर कोई अग्रिम जमानत याचिका लंबित है, तब भी ऐसा (बेल न दी जाए) ही होना चाहिए।”
जम्मू और कश्मीर कोर्ट के ज्यूडीशियल रजिस्ट्रार को जमानत याचिका आगे बढ़ाते (चीफ जस्टिस के समक्ष इसे रखने की गुजारिश को लेकर) हुए जस्टिस मलिक ने कहा, “ऐसे में जो कारण पहले बताया गया है, उसकी वजह से मैं सुनवाई करने में असमर्थता जाहिर करता हूं। यह याचिका संबंधित ज्यूडीशियल रजिस्ट्रार (हाईकोर्ट ऑफ जम्मू एंड कश्मीर) के पास जमा की गई है, जिसमें गुजारिश की गई है कि इसे चीफ जस्टिसों के समक्ष रखा जाए, क्योंकि इस मामले में किसी व्यक्ति की आजादी शामिल है। केस में याचिकाकर्ता का वकील जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के ज्यूडीशियल रजिस्ट्रार के समक्ष श्रीनगर में आज हाजिर हो।”
सूत्रों ने बताया कि जमानत याचिका वाला मामला चीफ जस्टिस के पास उसी दिन बढ़ा दिया गया था, जब गीता मित्तल चीफ जस्टिस के तौर पर रिटायर हो रही थीं। पर उसे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के पास बाद में रेफर किया गया, जहां से आवेदक को बेल मिल गई।
प्रिंसिपल सेशंस जज मलिक से जब इस मसले पर प्रतिक्रिया के लिए संपर्क साधने की कोशिश की गई तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। ज्यूडीशियल रजिस्ट्रार मसरत शाहीन ने बताया कि वह इस पर कुछ भी नहीं कहेंगी।
जस्टिस वानी (जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट के बार एसोसिएशन अध्यक्ष मियां अब्दुल कय्यूम के दामाद) की नियुक्ति इसी साल जून में हाईकोर्ट के जज के तौर पर हुई थी। इस अप्वॉइंटमेंट से पहले उन्होंने अपने ससुर की रिहाई का विरोध किया था, जो कि पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत धरे गए थे। जस्टिस वानी इससे पहले सीनियर एडिश्नल एडवोकेट जनरल भी रह चुके हैं।
शेख सलमान का केस हमले की एक घटना से जुड़ा है, जो सुनवाई के लिए प्रिंसिपल सेशंस जज के पास आया था। पुलिस सूत्रों ने बताया कि सलमान ने किसी युवक की पिटाई की थी और फिर उसने इस बात का बखान सोशल मीडिया पर किया था कि कैसे उसने ‘लड़के को सबक सिखाया’। हमले का शिकार हुए युवक ने आरपीसी की धाराओं के तहत मामले में एफआईआर दर्ज कराई थी।