जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों पर 10 साल बाद हुए चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन ने बहुमत हासिल किया। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 42 और कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत दर्ज की है। बीजेपी इस चुनाव में 29 सीटें ही जीत पाई। वहीं, इस साल जम्मू-कश्मीर चुनाव में एक्स फैक्टर माने जा रहे जमात-ए-इस्लामी ने बेहद खराब प्रदर्शन किया है। करीब चार दशक बाद चुनावी राजनीति में वापसी करने वाले इस संगठन के 10 में से आठ उम्मीदवार, जिन्होंने निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा था अपनी जमानत जब्त करा बैठे हैं।

जमात का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कुलगाम और जैनापोरा सीटों पर रहा, जहां इसके उम्मीदवार सयार अहमद रेशी और ऐजाज अहमद मीर क्रमशः 8,000 और 13,000 वोटों से हारकर दूसरे स्थान पर रहे। सोपोर से जमात के उम्मीदवार मंजूर अहमद कालू को सिर्फ 406 वोट मिले हैं।

गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत प्रतिबंधित, 1987 के चुनावों के बाद चुनावी मैदान में उतरने के जमात के कदम का स्वागत और आलोचना दोनों हुई थी।

चुनाव में कभी प्रभावी नहीं रही जमात

70 के दशक की शुरुआत में चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के बाद से चुनावी आंकड़ों पर नज़र डालने से पता चलता है कि जमात-ए-इस्लामी कभी भी अपने सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव को वोटों में तब्दील नहीं कर पाया। 1987 के चुनावों को छोड़कर, जब इसने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट (MUF) के बैनर तले 16 से ज़्यादा संगठनों के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था और गठबंधन ने चुनावों में भारी धांधली के आरोपों के बावजूद 30% से ज़्यादा वोट हासिल किए थे, इसका वोट शेयर कभी भी अपने आप में दोहरे अंकों तक नहीं पहुंचा।

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जमात-ए-इस्लामी का गठन नेशनल कॉन्फ्रेंस की धर्मनिरपेक्ष राजनीति और मुस्लिम कॉन्फ्रेंस द्वारा समर्थित मुस्लिम राष्ट्रवाद से मोहभंग के माहौल में हुआ और इसने विभाजन के बाद कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की वकालत की। इसी पृष्ठभूमि में जमात ने बाद में नेशनल कॉन्फ्रेंस की राजनीति के खिलाफ जनमत तैयार किया।

जमात-ए-इस्लामी ने 1972 के विधानसभा चुनाव से शुरुआत की थी

पार्टी ने 1972 में विधानसभा चुनाव में अपनी शुरुआत की थी, जिसमें इसने 22 उम्मीदवार उतारे थे (तब जम्मू-कश्मीर में 75 सीटें थीं), जिनमें से पांच जीते। इसके उम्मीदवारों को कुल 7% वोट मिले। हालांकि, जिन सीटों पर जमात ने चुनाव लड़ा, वहां इसे लगभग 24% वोट मिले। यह नौ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही।

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जमात के लिए कैसे रहे 1977 के चुनाव?

1977 के चुनावों में एनसी फिर से सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जिसने 47 सीटें जीतीं, उसके बाद जनता पार्टी (13) और कांग्रेस (11) रहीं। जमात की सीटों और वोट शेयर में भारी गिरावट देखी गई।

19 सीटों पर चुनाव लड़कर उसे केवल एक सीट पर जीत मिली, जिसमें सैयद अली शाह गिलानी ने अपनी सोपोर सीट बरकरार रखी। 1972 में इसका कुल वोट शेयर 7% से घटकर सिर्फ़ 4% रह गया, जबकि जिन सीटों पर इसने चुनाव लड़ा, उनमें इसका वोट शेयर भी घटकर सिर्फ़ 13% रह गया। इस बार यह सिर्फ़ पाँच सीटों पर दूसरे स्थान पर रहा।

1983 के चुनाव में जमात का प्रदर्शन

1983 के चुनाव जमात के लिए और भी बुरे साबित हुए। जबकि एनसी ने अपनी पिछली सीटों की संख्या और वोटशेयर को लगभग बरकरार रखा और कांग्रेस ने इसमें सुधार किया, जमात 26 सीटों में से एक भी नहीं जीत पाई, हालांकि इसने अपना वोट शेयर लगभग 4% बरकरार रखा।

1987 के चुनाव में MUF एक प्रमुख राजनीतिक ताकत के रूप में उभरा। हालाँकि गठबंधन ने केवल चार सीटें जीतीं, लेकिन इसका वोट शेयर 30% से अधिक था। 2024 के चुनावी मैदान में उतरने से पहले ये आखिरी चुनाव थे, जिनमें जमात ने हिस्सा लिया था।