प्लास्टिक के बढ़ते कचरे का एक बहुत बड़ा हिस्सा टेट्रा पैक का भी है। टेट्रा पैक भी एक सिंगल यूज प्लास्टिक है जो धरती की सांसे अवरुद्ध और पानी को विषैला कर रही है। हर साल भारत में 630 करोड़ फेंके हुए टेट्रा पैक एकत्र नहीं किए जाते हैं। भारत में प्लास्टिक कचरे का 42 फीसद हिस्सा बहु-परतीय पैकेजिंग से निकलता है। कई तरह के पदार्थों (मल्टी मैटेरियल) को मिला कर तैयार होने वाली पैकेजिंग धरती पर खतरनाक रसायनों को छोड़ने के लिए अधिक संवेदनशील है।

क्या है टेट्रा पैक: टेट्रा पैक्स को पॉलीथिन प्लास्टिक (20 फीसद), कागज (75 फीसद )और एल्यूमिनियम (5 फीसद ) की पतली परतों को आपस में चिपकाकर बनाया जाता है, जिसके कारण इन्हें परत दर परत अलग कर पुनर्चक्रित करना काफी कठिन है। ऊर्जा व संसाधन संस्थान (टीईआरआइ)के अनुमान के अनुसार भारत में हर साल 900 करोड़ टेट्रा पैक का इस्तेमाल किया जाता है जिनमें से मात्र 270 करोड़ (30 फीसद ) पैकेट ही पुनर्चक्रित किए जाते हैं। बचे हुए 630 करोड़ पैकेट्स जो कि 94500 मैट्रिक टन कचरे के बराबर हैं (15 ग्राम प्रति पैक), हर साल कचरा भराव क्षेत्रों और पानी को प्रदूषित करते हैं।

जटिल व महंगा है इनका पुनर्चक्रण: भारत में प्रत्येक मिनट लगभग 15,000 टेट्रा पैक खरीदे और फेंके जाते हैं। विश्व की सबसे बड़ी टेट्रा पैक निर्माता कंपनी (टेट्रा पैक) की ओर से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक भारत में टेट्रा पैक को पुनर्चक्रित करने के लिए मात्र चार इकाइयां आइटीसी पेपर, डीलक्स रिसाइकलिंग, ईस्टर्न कार्गो और खातेमा फाइबर्स हैं। देश में टेट्रा पैक्स को एकत्र करने और उन्हें पुनर्चक्रित करने की प्रणाली अत्यंत कमजोर है और पुनर्चक्रण से पूर्व परतों को अलग करने के लिए अत्यंत उच्च स्तर की तकनीक की आवश्यकता होती है। वर्तमान में भारत में प्रतिदिन इस्तेमाल किए जाने वाले टेट्रापैक, ब्रिक्स के डिब्बों की भारी संख्या को एकत्र करने के लिए सिर्फ 33 कलेक्शन सेंटर काम कर रहे हैं। टेट्रा पैक संगठन 2010 से गो ग्रीन मुहिम चला रहा है लेकिन अब तक मात्र 26 लाख फेंके हुए टेट्रा पैक ही एकत्र कर सका है।

सच्चाई व भ्रांति: टेट्रा पैक को लेकर कई तरह की भ्रांतियां है। हममें से अधिकतर सोचते हैं कि टेट्रा पैक कागज से बनाए जाते हैं और इसलिए वे पर्यावरण के प्रति अनुकूल हैं। लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है। यह ऐसी पैकेजिंग है जिसमें कई सामग्रियों का प्रयोग होता है और इस कारण इसे पुनर्चक्रित करना काफी कठिन है। इनका घर पर दोबारा इस्तेमाल नहीं हो सकता है और पुनर्चक्रण शृंखला में इसकी कीमत मामूली है। टाक्सिक वाच आलायंस के संयोजक गोपाल कृष्ण ने कहा कि वर्तमान में भारत में प्लास्टिक कचरे में से 42 फीसद बहु-परतीय पैकेजिंग से होता है। कंपनियां इसे री साइकिल करने का दावा तो करती है लेकिन दरअसल वह डाउन साइकिलिंग होता है यानी हर बार चक्रित किए जाने के साथ इसकी गुणवत्ता उत्तरोत्तर खराब होती जाती है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पैकेजिंग, मुंबई के पूर्व अपर निदेशक और शोध व विकास कार्य के मुखिया डा संजय के चट्टोपाध्याय ने कहा कि टेट्रा पैक नॉन-रिसाइक्लेबल लैमिनेट हैं और जैविक तौर पर पूरी तरह से अपघटित नहीं होते। हालांकि कागज का गत्ता जैविक तौर परअपघटित हो जाता है लेकिन प्रिंटिंग इंक पर्यावरण में जाती है।

समस्त पैकेजिंग, जिसमें प्लास्टिक की परत होती है, यदि लंबे समय तक पर्यावरण में पड़ी रहती है, तो यह पर्यावरण प्रदूषण और स्वास्थ्य खतरों को उत्पन्न कर सकती हैं। यदि हम इस्तेमाल के बाद पुनर्चक्रण की बात करें तो ये व्यवहारिक नहीं है कि टेट्रा पैक में मौजूद पॉलीएथलीन, कागज के गत्ते और एल्यूमिनियम की अत्यंत पतली परतों को अलग किया जा सके और इसलिए ये पुनर्चक्रण के लिए उपयुक्त नहीं है।

हालांकि,आजकल टेट्रा पैक के कागजी भाग को पृथक कर पैनल बोर्ड और छत की शीट्स जैसे पुनर्चक्रित उत्पादों का निर्माण किया जा रहा है। लेकिन असली गुणवत्ता वाले पुनर्चक्रित उत्पाद टेट्रा पैक के तत्वों से नहीं बनाए जा सकते। इसलिए यह प्रणाली रेखीय यानी एक बार प्रयोग लायक ही रहती है न कि चक्रीय, जिससे इसे सस्टेनेबल बनाया जा सके।

टेट्रा पैक बनाने वाली कंपनियों के आंकड़े बताते हैं कि वैश्विक तौर पर हर साल 189 बिलियन टेट्रा पैक्स का उत्पादन किया जाता है जिसमें से 26 फीसद पुनर्चक्रित किए जाते हैं, अर्थात 139 बिलियन पैक्स पूरे विश्व में एकत्र नहीं किए जाते। पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति संस्थान ने यह मांग भी की है कि इस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। संस्थान के अध्यक्ष व पं दीनदायल उपाध्याय के भतीजे वनोद शुक्ल ने कहा कि टेट्रा पैक के निर्माण में प्रयोग आने वाला प्लास्टिक पतली पॉलीथिन बनाने में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक की तरह ही होता है जो मानव स्वास्थ्य और धरती मां के लिए अन्यंत हानिकारक होता है।